*इस धराधाम पर आकर मनुष्य का परम उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति ही होता है | *ईश्वर को प्राप्त करने के लिए मनुष्य अनेकों प्रकार के साधन करता है , भिन्न-भिन्न उपाय करके वह भगवान को रिझाना चाहता है | *भगवान को प्राप्त करने के चार मुख्य साधन हमारे शास्त्रों में बताए गए हैं जिन्हें "साधन चतुष्टय" कहा जाता है | *यह चारों साधन हैं :- नाम , रूप , लीला एवं धाम | भगवान को प्राप्त करने के लिए सबसे प्रथम उपाय भगवान नामस्मरण बताया गया है | *भगवान्नाम की अमोघ शक्ति है इसके द्वारा मनुष्य शीघ्र ही कल्याण को प्राप्त कर सकता है | *भगवान के रूप का दर्शन हुआ हो या ना हुआ हो , भगवान की लीला देखी हो या ना देखी हो , भगवान के धामों में मनुष्य पहुंच पाए या न पहुंच पाए परंतु जहां भी बैठा हो वहीं से यदि भगवान्नाम उच्चारण करता रहे तो उसको सारे साधन सुलभ हो जाते हैं , और अंततोगत्वा वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है | *भगवान्नाम उच्चारण करने के अनेक भाव मनीषियों ने अपने ग्रंथों में लिखा है परंतु नाम उच्चारण करते समय प्रत्येक मनुष्य में सात मुख्य भाव होने चाहिए | *१- नाम में विश्वास , २- नाम में आदर बुद्धि , ३- नाम में निष्काम प्रेम ४- निष्काम भाव , ५- नाम का आत्मचिंतन ६- निरंतरता और ७- गोपनीयता | यह सात मुख्य भाव है | *इन भावों से युक्त होकर भगवान्नाम के सहारे चलने वाले मनुष्यों को भगवान का ही नाम चमत्कारी सिद्ध हो जाता है और अंततोगत्वा वह मनुष्य भगवान का दर्शन भी पा जाता है और मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है | सबसे बड़ी सुगमता यह है कि भगवान का नाम उच्चारण करने के लिए ना तो किसी नियम की आवश्यकता है और ना जी किसी निर्देश की जहां भी जिस हाल में हो भगवानन्नाम *उच्चारण का फल प्राप्त किया जा सकता है |*
*आज मनुष्य आधुनिकता की अंधी दौड़ में दौड़ा चला जा रहा है वह धर्मग्रंथों का अध्ययन तो खूब करता है परंतु उनके सार को ग्रहण नहीं कर पाता | आज मनुष्य भगवान के नाम का उच्चारण तो करता है परंतु दूसरे ही क्षण उसका विश्वास डगमगा जाता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि भगवान की ही तरह भगवान के नाम में जब तक प्रेम नहीं होगा , जब तक भगवान के नाम के प्रति आदर बुद्धि नहीं होगी तब तक नाम जप का फल नहीं प्राप्त किया जा सकता है | कुछ लोग भगवान का नाम लेने से कतराते रहते हैं परंतु वे भगवान की लीला धामो का दर्शन खूब करते हैं ऐसे सभी लोगों को विशेष रूप से यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि भगवान के नाम और भगवान में कोई भेद नहीं है | नाम जप करते समय प्रत्येक मनुष्य को यह अनुभव करते रहना चाहिए कि मैं जो भगवान का नाम जप कर रहा हूं यह नाम जप नहीं बल्कि भगवान का ही स्पर्श है ! परंतु आज के युग में ऐसा होता संभव नहीं दिखाई पड़ रहा है | लोग ऊंचे आसनों पर बैठकर भगवान की लीलाओं का गुणानुवाद तो बड़े प्रेम से करते हैं परंतु नाम जप करने के नाम पर तरह-तरह के भजन गाने लगते हैं | समस्त मानव समाज को भगवान्नाम के महत्व को समझना चाहिए क्योंकि भगवान को प्राप्त करने का प्रथम साधन है भगवान का नाम ही है | यह बात सबको समझनी चाहिए कि भगवान ने गिने-चुने भक्तों का उद्धार किया परंतु भगवान के नाम में अनेकों भक्तों को उद्धरित किया है | इसलिए भगवान से बढ़कर भगवान के नाम की व्याख्या हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है | प्रत्येक मनुष्य को प्रेम पूर्वक सदैव भगवान्नाम उच्चारण करते रहना चाहिए |*
*साधन चतुष्टय में प्रथम को छोड़कर अन्य तीन साधनों के पीछे भागने वाले कभी भी भगवान को नहीं प्राप्त कर सकते | इसलिए प्रथम कक्षा अर्थात भगवन्नाम से ही अपने साधन का श्री गणेश करना चाहिए*