
*आदिकाल से इस धरा धाम पर प्रतिष्ठित होने वाला एकमात्र धर्म सनातन धर्म मानव मात्र का धर्म है क्योंकि सनातन धर्म ही ऐसा दिव्य है जो मानव मात्र के कल्याण की कामना करते हुए एक दूसरे को पर्व त्योहारों के माध्यम से समीप लाने का कार्य करता है | सनातन धर्म में वर्ष के प्रत्येक माह में कुछ ना कुछ पर्व ऐसे मनाए जाते हैं जो स्वयं में दिव्य है | इनमें विशेष कार्तिक मास में मनाए जाने वाले पर्व एवं त्योहार धराधाम को प्रकाशित करने वाले तो है ही साथ ही मानव मात्र के कल्याण में भी सहायक है | धरती पर प्रकाश फैलाने का पर्व दीपावली अभी एक पखवारे के पहले मनाया गया है और आज कार्तिक मास का अंतिम पर्व "कार्तिक पूर्णिमा" के नाम से बहुत ही हर्षोल्लास के साथ पूरे देश में ही नहीं बल्कि विश्व में भी मनाया जा रहा है | हमारे शास्त्रों में निर्देश है कि वर्ष भर यदि गंगा स्नान का लाभ नहीं ले पाए हैं तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से वर्ष भर के गंगा स्नान का लाभ प्राप्त हो जाता है | "कार्तिक पूर्णिमा" को "त्रिपुरी पूर्णिमा" भी कहा जाता है | आज के ही दिन भूतभावन भोलेनाथ ने अंतरिक्ष में विद्यमान दिव्य महा मायावी असुरों की तीन नगरियों का विनाश अर्थात त्रिपुरासुर का संहार एक ही वाण से किया था इसीलिए इसको "त्रिपुरी पूर्णिमा" भी कहा जाता है | त्रिपुरासुर के संहार से प्रसन्न होकर देवताओं ने काशी जी में देव दीपावली मना करके , भगवान शिव का दीपदान करके , असंख्य दीपों से उनकी आरती करके देवताओं ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी | तब से लेकर आज तक काशी जी में "कार्तिक पूर्णिमा" के दिन देव दीपावली बहुत ही भव्यता के साथ मनाई जाती है | सनातन धर्म के प्रत्येक पर्व एवं त्योहार में कोई न कोई मान्यता या कोई अद्भुत घटना अवश्य जुड़ी होती है जो कि मानव मात्र को पथ प्रदर्शक के रूप में निर्देशित करती रहती है यही सनातन धर्म की दिव्यता है |*
*आज "कार्तिक पूर्णिमा" के दिन विश्व भर में श्रद्धालु दिव्य नदियों में स्नान करके वर्ष भर के गंगा स्नान का फल तो प्राप्त ही करेंगे साथ ही आज के दिन दान की भी बहुत बड़ी महत्ता है | आज के दिन दिया गया दान अक्षय होता है | आज समस्त विश्व में "कार्तिक पूर्णिमा" के पावन अवसर पर स्नान दान करते हुए श्रद्धालु जन देखे जा सकते हैं | काशी में मनाई जाने वाली "देव दीपावली" का दर्शन करने के लिए विश्व के अनेक देशों से आज भी श्रद्धालु जन काशी पधारते हैं | देव दीपावली के विषय में मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" एक कथानक और बताना चाहूंगा की देवोत्थानी एकादशी के दिन जब भगवान श्री हरि निद्रा से उठे तो देव दीपावली के दिन देवताओं ने उनका प्रथम पूजन किया | एकादशी को उठने के बाद पूर्णिमा को उनका पूजन क्यों किया गया ? इसके विषय में पुराणों में वर्णन मिलता है कि जिस प्रकार मनुष्य निद्रा से जागने के बाद थोड़ी देर तक आलस्य में रहता है उसी प्रकार भगवान श्री हरि विष्णु भी तीन दिन तक आलस्य में रहे और कार्तिक पूर्णिमा के दिन आलस्य रहित होकर अपने पद पर पदासीनन हुए तब देवताओं ने महालक्ष्मी के साथ असंख्य दीपों से उनका पूजन किया उनकी आरती उतारी और देव दीपावली का पर्व बन गया | आज हम भले ही कितने प्रगतिशील हो गए हो परंतु हमारी पौराणिक मान्यताएं आज भी देदीप्यमान है | इन पर्वों के माध्यम से हमें पुराणों के अध्ययन करके दिव्य कथानक प्राप्त होते हैं | मानव मात्र आज सनातन के पूर्वजों का ऋणी है जिनके कारण उनके द्वारा संकलित किए गए दिव्य ग्रंथों का अध्ययन हम कर पा रहे हैं , और अपने सनातन संस्कृति के विषय में ज्ञानार्जन कर पा रहे हैं | सनातन धर्म इसीलिए दिव्य है क्योंकि जो प्राचीनता एवं दिव्यता , मानव मात्र के कल्याण की भावना हमें सनातन धर्म में प्राप्त हो जाएगी वह अन्यत्र कहीं ढूंढने से भी नहीं मिलेगी | हमें गर्व है कि हम सनातन की संतान हैं |*
*आज सनातन धर्मी अपनी मान्यताओं को त्याग करके दूसरों की ओर देख रहा है तो उससे बड़ा दुर्भाग्यशाली और कौन हो सकता है ? एक बात सदैव ध्यान रखना चाहिए कि जिस दिन हम अपने सनातन धर्म के गुणों को जानने लगेंगे उसी दिन हमको यह आभास हो जाएगा कि हम श्रेष्ठ थे ! हम श्रेष्ठ हैं !! और सदैव श्रेष्ठ रहेंगे !!!*