*इस समस्त सृष्टि में ईश्वर कण कण में समाया हुआ है | कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां ईश्वर की उपस्थिति ना हो | संसार में समस्त जड़ चेतन की रचना ईश्वर ने ही की है | ईश्वर के लिए सभी समान है इसीलिए भी ईश्वर को समदर्शी कहा गया है | ईश्वर कभी भी भेदभाव नहीं करता बल्कि सबको समान रूप से वायु , सूर्य का प्रकाश एवं जल प्रदान करने वाला वह परमपिता परमात्मा पशु एवं मानव में , जड़ एवं चेतन में भेदभाव नहीं रखने वाला है | यही भाव दर्शाने के लिए परमपिता परमात्मा ने समय-समय पर अनेक रूपों में इस धरती पर अवतार लिया है | इसी अवतार के क्रम में ईश्वर ने पशु एवं मानव का संयुक्त रूप धारण किया | जब हिरणाकश्यप अपने बालक प्रहलाद पर अत्याचार करता जा रहा था और उसे मारने के लिए खंभे में बांध दिया तब अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए ईश्वर ने पशु एवं मानव का संयुक्त स्वरूप अर्थात नरसिंह का अवतार लिया | हिरणाकश्यप को वरदान ही ऐसा मिला था कि वह न पशु के हाथों मारा जाएगा और ना ही मनुष्य के इसलिए परमात्मा ने नरसिंह का अवतार धारण किया | परम स्वतंत्र परमात्मा यदि किसी के बस में है तो वह है उनके भक्त ! जो उनको अपने बस में करने की क्षमता रखते हैं | भक्त के बस में हो करके भगवान को ऐसा - ऐसा रूप धारण करना पड़ा है , ऐसे - ऐसे कार्य करने पड़े हैं जिनका वर्णन सुखद अनुभूति प्रदान करता है | इसीलिए उस परमसत्ता को भक्तवत्सल कहा जाता है | भगवान ने स्वयं घोषणा की है कि मैं अपने भक्तों की रक्षा उसी प्रकार करता हूं जिस प्रकार एक माता अपने अबोधबालक की रक्षा करती है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने यही भाव मानस में लिखा है :- "करहुँ सदा तिन्ह कर रखवारी ! जिमि बालक राखइ महतारी !!" अपने भक्तों के लिए भगवान ने अपने सुंदर स्वरूप का त्याग करके अनेकानेक स्वरूप धारण किए हैं , इसीलिए उनको परम दयालु एवं कृपालु कहा जाता है |*
*आज वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन ही अपने भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु ने नरसिंह का अद्भुत अवतार धारण किया था | एक तरफ तो भगवान जो कि इस संसार के पालक हैं , अपने जनों को बचाने के लिए विकृत एवं विचित्र अवतार धारण करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं वहीं दूसरी ओर आज के समाज में कुछ थोड़ी सी भी प्रभुता पाकर लोग नित्य अपने स्वरूप को संवारा करते हैं | तरह-तरह के भौतिक संसाधनों से अपने चेहरे की चमक बढ़ाने का प्रयास करते रहते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज में देख रहा हूं कि लोग स्वयं तो चमकते रहते हैं और अपने अधीन कार्य करने वालों की दीन दशा उनको नहीं दिखाई पड़ती | बड़े-बड़े मंदिरों में जाकर के लाखों का दान करने वाले अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की ओर नहीं देखना चाहते हैं | ऐसे लोगों का दान परमात्मा स्वीकार करेगा कि नहीं करेगा यह तो परमात्मा ही जाने परंतु ऐसे लोगों को भगवान श्री हरि विष्णु से एवं उनके चरित्रों से शिक्षा अवश्य ग्रहण करनी चाहिए | अपने अधीनस्थ भक्तों की रक्षा के लिए , उनके पालन पोषण के लिए श्री हरि भगवान ने क्या क्या किया है इसका वर्णन हमारे पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है आवश्यकता है उनके चरित्रों के अनुसरण करने की | क्योंकि कोई भी पूजा तब तक नहीं सफल मानी जा सकती है जब तक कि अपने आराध्य देव के चरित्रों का अनुसरण न किया जाय , परंतु आज ऐसा देखने को बहुत कम ही मिलता है | अपने आराध्य देव के विपरीत कर्म करके उनकी कृपा प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले इस बात पर विचार करें कि उन्हें अपने आराध्य की कृपा भला कैसे प्राप्त हो सकती है ? क्योंकि कृपा तभी प्राप्त होगी जब ईश्वर प्रसन्न होगा और ईश्वर तभी प्रसन्न होता है जब हम उसके बताए गए मार्गों का अनुसरण करते हैं |*
*भगवान नरसिंह के प्राकट्योत्सव की पावन बेला पर संध्या काल में उनकी पूजा आराधना करके उनके चरित्रों का अनुसरण करने का संकल्प प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य करना चाहिए अन्यथा पूजा आराधना करना व्यर्थ ही जाएगा |*