*सनातन धर्म में प्रत्येक माह के प्रत्येक दिन या प्रत्येक तिथि को कोई न कोई पर्व या त्यौहार मनाया जाता रहा है , यह सनातन धर्म की दिव्यता है कि वर्ष भर नित्य नवीन पर्व मनाने का विधान बनाया गया है | इसी क्रम में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को एक विशेष पर्व मनाने का विधान हमारे सर ग्रंथों में वर्णित है | सनातन धर्म का कोई भी कार्य बिना पवित्री के नहीं संपन्न होता है और पवित्री पवित्र कुशा से बनाई जाती है | कोई भी पूजा पाठ हो या श्राद्ध पिंडदान आदि कर्म , बिना कुशा के संपन्न नहीं हो सकता | सनातन धर्म में कुशा का विशेष महत्व है और आज के दिन अर्थात भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या को "कुशोत्पाटिनी अमावस्या" या "कुशग्रहणी" अमावस्या के नाम से जाना जाता है | भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को उखाड़ा गया कुशा वर्ष भर पूजा पाठ काम आता है | यह सनातन धर्म की दिव्यता एवं मुहूर्त का ही प्रभाव है की की भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को उखाड़ा गया कुशा वर्ष सड़ता नहीं है और यदि भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को सोमवार दिन पड़ जाय तो इस दिन का संग्रहित किया हुआ कुशा बारह वर्ष तक काम आता है | वैसे तो अमावस्या पितरों की तिथि कही गई है परंतु भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या को किया गया पितृकार्य सीधा पितरों को प्राप्त होता है | आज के दिन कुछ प्रांतों में "पिथौरा व्रत" भी किया जाता है | "पिथौरा व्रत" माताएं अपनी संतान की सुरक्षा एवं दीर्घायु की कामना तथा परिवार की सुख शांति के लिए देवी दुर्गा का पूजन करती हैं | इस प्रकार भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या का मानव जीवन में विशेष महत्व है , परंतु हम ज्ञान के अभाव में इनके महत्व को जान नहीं पाते हैं और कुछ विशेष कर पाने का अवसर गंवा देते हैं इसका एक ही कारण है कि हम सनातन की दिव्यता को भूलते चले जा रहे हैंं |*
*आज यदि किसी भी सनातन धर्मी से सनातन के पर्व त्योहारों के विषय में पूछ लिया जाए तो शायद ही सभी लोग सभी पर्वों के विषय में बता पाएंगे , क्योंकि आज का मनुष्य सनातन के पर्व एवं विशेष दिनों को ढोंग ढकोसला कहने से भी नहीं चूकता है | स्वयं को आधुनिक मानने वाला आज का मनुष्य अपनी दिव्यता को भूल गया है | संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप , संसार के प्रत्येक धर्म , सनातन धर्म की ही शाखा हैं | प्रत्येक धर्म में कहीं न कहीं सनातन धर्म से मिलते जुलते कार्य एवं व्यवहार देखने को मिल जाते हैं , परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज को देख रहा हूं कि वह अपने घर को ना देखकर दूसरों के घर में झांकने की प्रवृति से ग्रसित हैं | आज मनुष्य पर उपदेश करके स्वयं को विद्वान मानने में व्यस्त है | किसी को भी उपदेश देने से पहले मनुष्य को स्वयं उस उपदेश पर कार्य करना चाहिए अन्यथा उपदेश देने का कोई अर्थ नहीं है | संसार का कोई भी कार्य ऐसा नहीं है जिसका वर्णन सनातन धर्म में ना मिलता हो परंतु आज मनुष्य उन्नति एवं प्रगति की लालसा में दूसरों की ओर आशा भरी दृष्टि से देखता रहता है ` जबकि यदि वह हमारे ग्रंथों का अध्ययन कर लें एवं धर्म ग्रंथों में वर्णित विषयों पर कार्य करने लगे तो शायद कुछ भी कर पाना असंभव नहीं है | आज "कुशोत्पाटिनी अमावस्या" के दिन जिसे कि अधिकतर लोग जानते ही नहीं होंगे यदि पितरों के लिए कोई कार्य किया जाय या कुशा कर संग्रहण किया जाय या पिथौरा व्रत करके देवी दुर्गा का पूजन किया जाय तो उसका अक्षय पुण्य , अक्षय फल प्राप्त होता है | परंतु आज हम शायद इनके विषय में जानते ही नहीं और सबसे दुखद बात यह है कि जानने का प्रयास भी नहीं कर रहे हैं जिससे कि अनेकों व्रत / पर्व आज लुप्त होते चले जा रहे हैं | आज आवश्यकता है कि हम अपने धर्म शास्त्रों का अध्ययन करके अपने व्रत एवं पर्वों को मना कर उसका आनंद ले अन्यथा आने वाली पीढ़ियां सनातन धर्म की इन व्रत / पर्वों को शायद कभी जान ही नहीं पायेंगी |*
*सनातन धर्म के प्रत्येक कार्य में वैज्ञानिकता का समावेश है परंतु बिना प्रयास कुछ भी जान पाना संभव नहीं इसलिए आवश्यकता है कि आज का युवा वर्ग अपने धर्म के विषय में ज्ञान अवश्य प्राप्त करें |*