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मदन मोहन सक्सेना

hindi articles, stories and books related to Madan mohan saksena


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Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavitaकल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते कहा

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बहन भाई और रक्षा बंधनराखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछ

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आ गया राखी का पर्बराखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैस

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( ग़ज़ल ) हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरतसजा  क्या खूब मिलती है किसी   से   दिल  लगाने  की तन्हाई  की  महफ़िल  में  आदत  हो  गयी   गाने  की  हर  पल  याद  रहती  है  निगाहों  में  बसी  सूरत  तमन्ना  अपनी  रहती  है  खुद  को  भूल  जाने  की  उम्मीदों   का  काजल   

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ग़ज़ल (रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है )  मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनियाँ  में जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है उसकी यादों का दिया

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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हमजुबां से दिल की बात

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मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , (सांसों के जनाजें को तो सब  ने जिंदगी जाना) जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है , बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपन

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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशितग़ज़ल  (बचपन यार अच्छा था)जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीबचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता थाबारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़रीभोले भाले चेहरे में सयानापन समाता थामिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों

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ग़ज़ल (सपनें खूब मचलते देखे)सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखेरंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखासुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ाभूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखादेखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई मेंमैनें टॉमी डॉगी शेरू को

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ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर )हर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश हैवक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिलाचार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलतजब मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिलानाज अपनी जिंदगी पर ,क्यों न हो हमको भलाकई मुद्द्दतों के बाद फ

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खुशबुओं की बस्ती - Sahityapediaखुशबुओं की बस्तीखुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा हैआज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा हैउनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नही

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ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र )कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शक्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह की खुद से हम न मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते नहीं इन्सान हैइक दर्द का

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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपन

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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशितग़ज़ल  (बचपन यार अच्छा था)जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीबचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता थाबारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़रीभोले भाले चेहरे में सयानापन समाता थामिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों

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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल  ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम जुबां से दिल 

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 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

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