एक महामारी ने कैसे,मानव को उद्विग्न कर दिया।सारी गतिविधियों को रोका,हर दिल में आतंक भर दिया।।हाथ मिलाने से डरते हैं, जो कल गले मिला करते थे।नहीं बुलाते, अब, जो, घरना आने पर रोज गिला करते थे।।शादी
कोरोना वहां इठला कर खड़ा है,और यहाँ धैर्य, साहस और विश्वास की मंत्रणा चल रही है। धैर्य बोला, थक गया मैं इस से लड़ लड़ के,वापस आ जाता है, ये दुगुनी शक्ति से। धैर्य की बात सुनकर, साहस भी धीमे स्वर से बोला,दुर्बल हो गया हूँ मैं भी, इसकी विविध शक्तियाँ देख कर,इतना धैर्य रख र
कोरोना बीमारी की दूसरी लहर ने पूरे देश मे कहर बरपाने के साथ साथ भातीय तंत्र की विफलता को जग जाहिर कर दिया है। चाहे केंद्र सरकार हो या की राज्य सरकारें, सारी की सारी एक दूसरे के उपर दोषरोपण में व्यस्त है। जनता की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव प्रचार हो गया है। दवाई, टीका, बेड आदि की कमी पूरे देश मे
किससे लड़ोगे।लॉकडाऊन को हटा दो, कोरोना को भगा दो।हम सब काम करने वाले है, कोई कायर नही। नेताओं को समझा दो, ये चुनाव का वक्त नही।लोकल और वोकल को, पूरे देश मे फैला दो। जहाज को उड़ा दो, रेल बस को भी चला दो।मॉल दुकानों के साथ, बॉर्डर भी खोलवा दो।जनता मरती है तो, उसको व भी मारने दो।अंत के लिए, शमशान व कब्रि
छांव की तलाशतप रहे हो धूप मे, तो तपो घूप मे, कर्म जो ऐसे किए हैं, घर की छत मे गमले लगा कर, गली के पेड़ को कटवाँ दिए है।जाव अब कहाँ जाओगे? लौट कर एक दिन पेड़ की छांव मे आओगे।भूल जाओगे शहर को एक दिन, गाँव जरूर आओगे।या फिर शहर को ही गाँव बनाओगे।यह तो मुमकिन ही नहीं, ना मुमकिन हैं। यह कोरोना महामारी से प
क्या कहता है, ये विराम ........?