छांव की तलाश
तप रहे हो धूप मे, तो तपो घूप मे, कर्म जो ऐसे किए हैं, घर की छत मे गमले लगा कर, गली के पेड़ को कटवाँ दिए है।
जाव अब कहाँ जाओगे? लौट कर एक दिन पेड़ की छांव मे आओगे।
भूल जाओगे शहर को एक दिन, गाँव जरूर आओगे।
या फिर शहर को ही गाँव बनाओगे।
यह तो मुमकिन ही नहीं, ना मुमकिन हैं। यह कोरोना महामारी से पता चल गया।
खुद को पेड़ की छांव से अलग ना करे अभी भी गाँव मे ममता के पेड़ आपकी राह देख रहे हैं।