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आभा.. एक प्रश्न

12 दिसम्बर 2021

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           माँ  ने मेरी नौकरी के लिए छठ मैया की पूजा मानी थी।  पिछली बार तो नयी नयी नौकरी थी, मैं दीपावली की छुट्टियों में घर भी नहीं जा पाया था । पर इस बार तो माँ ने एक महीना पहले से ही बोल बोल कर मुझे दीपावली की छुट्टियों में घर पर आने के लिए मजबूर कर दिया था । घर जाना तो मैं भी चाहता था पर आभा को अकेला छोड़कर नहीं। मैं जानता था मैं हमेशा उनके साथ नहीं रह सकता हूँ पर मैं चाहता था कि कोई तो मिले जो उनका हाथ थाम ले। इसके लिए भी घर जाकर मुझे बड़े भैया से बात करनी थी। उन्हें शादी के लिए राजी करना था। एक बार भैया हाँ बोल दे तभी आभा से बात करूँगा। हाँ वरना आभा से बात कर ली और भैया राजी ही ना हुए तो कितना बुरा लगेगा ना उनको।

              दीपावली से लगभग दस दिन पहले की बात है मैंने देखा वह थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी। 

मैंने पूछा, "क्या हुआ ? 

उन्होंने कंधे उचकाते हुए बोला, "कुछ नहीं उंगली में थोड़ा सा कट लग गया था । ठीक ही नहीं हो रहा है । मवाद आ गया है"। 

डॉक्टर को दिखाया ? मैंने पूछा । 

"छोटा सा घाव है । क्या डॉक्टर को दिखाना। मैंने पट्टी मार तो ली है" वह बोलीं । 

अगले रविवार को जब मैं उनके घर पर गया तो वह लेटी थी। मैंने देखा फर्श पर जगह-जगह खून के निशान से पड़े हुए हैं । मैंने फर्श साफ करते हुए कहा, "दिखाओ कहाँ चोट लगी है ? तुमको डायबिटीज तो नहीं है ? तभी घाव तुम्हारा इतना बढ़ गया है शायद" ।

वह बच्चों की तरह बोली, "डायबिटीज कभी चेक नहीं करवाया । डायबिटीज चेक करवा लूंगी तो फिर मेरा मीठा खाना छूट जाएगा"। 

"अरे पागल तुम जिंदगी से हाथ धो बैठोगीं।  मालूम है कितना खतरनाक होता है डायबिटीज वालों को कोई घाव होना ।  चलो कल डॉक्टर के पास जाकर आएंगे"। 

दूसरे दिन हम डॉक्टर के पास गए । वही हुआ जिसका डर था उनका डायबिटीज 280 के ऊपर था । एक उंगली में लगे छोटे से घाव से अब तीन उंगलियाँ सड़ने लगी थी।  डॉक्टर ने पाँच दिन की दवाई खाने के बाद वापस दिखाने को बोला । डॉक्टर ने मुझे बोला अच्छा होगा कि यह तीन उंगली हम काट दे । चूंकि डायबिटीज बहुत ज्यादा है और घाव भरेगा भी नहीं । इसके लिए पहले हमें डायबिटीज को कंट्रोल में लाना पड़ेगा । 

         मैंने उनके घर पहुँच कर सबसे पहले उनकी मिठाईयाँ चॉकलेट और शक्कर सब हटा दिया। मैंने कहा पाँच दिन पूरा परहेज करो जब ठीक हो जाएगा तो यह सब सामान मैं वापस रख जाऊँगा । चिंता मत करना मैं तुम्हारी एक भी चॉकलेट नहीं खाऊंगा । एक हफ्ते में उनका डायबिटीज काफी हद तक कंट्रोल में आ गया था । डॉक्टर घाव को सूखने की दवाइयाँ दे रहे थे । शायद उंगलियाँ काटनी ना पड़े । तीन दिन बाद मुझे घर के लिए निकलना था । 

वैसे वो ठीक थी । पर मुझे उनको इस हाल में छोड़  कर जाना अच्छा नहीं लग रहा था। छठ मैया की पूजा ना होती तो शायद मैं ना जाता। यहीं बात मैंने उनको बोली, कि अब तुम्हें रोज ड्रेसिंग (मरहम पट्टी) के लिए कौन ले जाएगा। एक काम करों अस्पताल में एडमिट हो जाओ वहाँ डाक्टर की देखरेख में रहोंगी। घर पर तो तुम दवाईयाँ भी खुद से नहीं खाती हो । मुझे चिंता भी ना रहेंगी"। 

मेरी बात मानकर, डाक्टर से बात करके कि जब तक उनका घाव पूरी तरह ठीक नहीं होता हैं उन्हें अस्पताल में ही भर्ती रखें। मैं उन्हें एडमिट कराकर घर के लिए निकल गया था। 

तीसरे दिन जब मैंने आभा को  फोन किया तो वह बोली, "उनकी बीमारी का सुनकर उनकी बहन आ गयी हैं और उन्हें घर पर ले आयी है। उनका घाव भी अब ठीक है"। 

मैंने कहा, "ठीक है अब मैं फोन नहीं करूँगा तुम्हें जब समय मिलें तुम कर लेना । अपनी हाल खबर देते रहना, अपना ख्याल रखना।  वैसे भी सात दिन में मैं आ जाऊँगा"। 

आभा का फोन नहीं आया। मैं भी इतने दिनो बाद आया था इसीलिए परिवार दोस्तों में व्यस्त रहा। वैसे भी उनकी बहन आ गयी थी तो मैं निश्चिंत था। मेरे एक जॉब इंटरव्यू के कारण मुझे आने की तारीख चार दिन आगे करनी पड़ी और आज ही लौटा हूँ। 

पता नहीं क्यों मन अनहोनी की आकांशा से काँप रहा था । सोचा सामान घर पर रखकर पहले अस्पताल जाकर आभा से मिलकर आता हूँ, बाद में आकर शान्ति से कपड़े बदल कर कुछ चाय वगैरह पीऊँगा। जैसे ही मैं सामान रखकर नीचे आया रिचा आँटी दिख गयी, वह भी आभा की दोस्त थी। परिवार और बच्चों के साथ व्यस्त होने के कारण रिचा आँटी की कुछ सीमाएँ थी । फिर भी मुझसे मिलने से पहले तक वह दोनों बहुत पक्की वाली सहेलियाँ थी। आभा अपनी सारी बातें उनके साथ साझा करती थी। मैंने उनको देखकर मुस्कान के साथ अभिवादन किया। उन्होंने  पूछा, "कब आयें" ? 

मैंने कहा, "बस अभी चला आ रहा हूँ। लगता है आभा अभी अस्पताल में ही है। देखकर मिलकर आता हूँ"। 

रिचा आँटी ने कहा, "रुको अभी आए हो । चाय पीकर फिर जाना"। 

"नहीं आँटी आकर के चाय पीता हूँ" मैंने कहा। 

"मैं बोल रही हूँ ना, चलो चाय तैयार ही है पहले पी लो फिर .." रिचा आंटी अपने फ्लैट का दरवाजा खोलते हुए बोली। 

"आँटी आप बेकार परेशान हो रही है। 

परेशानी की कोई बात नहीं तुम बैठो।

"अंकल जी और बच्चे कहाँ है "? बैठते हुए मैने पूछा।

"अंकल जी आफिस से अभी नहीं आए है और बच्चे ट्यूशन गये है" चाय का कप पकड़ाते हुए वह बोली। 

चाय पीकर मैं उठकर खड़ा हुआ। थैंक्यू आँटी ! मैं अस्पताल जाकर आता हूँ। 

तुझे वहाँ कोई नहीं मिलेगा। 

मतलब ? आभा कहीं शहर से बाहर गयी है ?

तुम बैठो मैं बताती हूँ। 

मैं बैठते हुए बोला, हाँ बताइए I 

तुम्हारे जाने के बाद आभा की बहन आ गयी थी। वह उसे अस्पताल से घर लिवा लायी। घर पर रोज मरहम पट्टी ना होने से और खाने में परहेज ना करने के कारण उसका डायबिटीज बहुत बढ़ गया और वापस से ऊगलियाँ पक गयी थी। अब तो उसके घाव से बदबू भी आने लगी थी। मैंने कहा भी डाक्टर के पास चलने के लिए। आभा ने कहा कल वो मायके जा रही हैं अब इलाज़ वहीं जाकर करवायेंगी। इतने सालों बाद मायके जाने के नाम पर वह कितनी खुश थी। 

"अच्छा तो वो अपने मायके में हैं। कितनी खुश होंगी ना । सच में उनकी कितनी इच्छा थी मायके जाने की चलो पूरी हो गयी" मैं बोला। 

कहाँ पूरी हुई ! जाने से एक दिन पहले आभा ने मुझे बुलाया था । देखा तो सब सामान पैक था । अलमारियाँ पूरी खाली। आभा बोली अब जाकर वहाँ सब के साथ रहूँगी । यहाँ अब पता नहीं वापस आना हो ना हो । मुझे एक लिफाफा देते हुए बोला इसमें चेक हैं तुम्हारे बच्चों के लिए शादी का उपहार उनकी मौसी की ओर से। यह पैसे जल्द से जल्द बैंक से निकाल लेना। पता नहीं वहाँ पहुँच कर मुझे कहा और कितना खर्च करना पड़े। 

फिर जा क्यों रहीं हो ? यहाँ नौकरी करती हों। 

वो क्या है ना कि उन लोगों को भाग भाग कर आना पड़ता है मेरे कारण उन लोगों को तकलीफ होती हैं। अच्छा एक काम और कर दे ना।  मुझे लेकर मेरे ससुराल चल एक बार ।  

उसको लेकर मैं उसके ससुराल गयी। ससुराल वाले तो पहले से ही नाराज थे। उसने जाकर सास को चरण स्पर्श किया और एक पोटली पकड़ाते हुए कहा यह सारे जेवर मुझे ससुराल से मिले थे। यह आप रखिए मेरे भतीजे भतीजियों की शादी में उनके चाचा चाची की ओर से उपहार हैं। मेरी तरफ से अपने मन में मैल मत रखिएगा मुझे कुछ नहीं चाहिए होटल भी नहीं। अब मैं यहाँ से जा रहीं हूँ।

दूसरे दिन वह लोग निकल गये। चार दिन बाद शाम के समय एक आदमी मेरा पता पूछता हुआ आया। उसने बताया वो पास वाले शहर के सरकारी अस्पताल का वार्ड बाय है। उसके यहाँ आभा नाम की एक मरीज एडमिट हैं उसने मुझे भेजा है आपको बुलाने के लिए। 

मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ ऐसा कैसे ?

हाँ हम सब भी ऐसे ही अचंभित रह गये थे। शाम हो गयी थी फिर भी हम तुरंत निकल पड़े गाड़ी करके। आभा सरकारी वार्ड में एक पुरानी सी मैक्सी पहने लेटी थी। मुझे देखकर बोली मायके जाना इस जन्म में शायद मेरे नसीब में नहीं। 

पर तुम यहाँ कैसे ? मैंने आभा से पूछा।

मुझे भी नहीं मालुम । मैं तो निकली थी बहन के साथ घर जाने के लिए आँख खुली तो खुद को यहाँ पाया। 

डाक्टर नर्स बताते है कि किसी ने यह बोल कर कि रास्ते में इनकी तबीयत अचानक खराब हो गयी, यहाँ एडमिट करवाया। थोड़ी देर साथ थे फिर बाद में कहाँ गायब हो गये पता ही नहीं चला । डाक्टर ने एक दिन इंतजार किया । मैं भी बेहोश थी। शायद मुझे बेहोशी का इंजेक्शन या दवाइयाँ दी गयी थी।

बाद में होश में आने पर मैं समझ ही नहीं पायी कि मेरे साथ ऐसा क्यों किया सब कुछ तो उन लोगों का ही था मेरे मरने के बाद I मेरे चैन से मरने का इंतजार भी उन लोगों से ना किया गया। 

पर तुमने फोन क्यों नहीं किया। 

फोन भी ले गये। सारे नम्बर तो फोन में ही थे। जरूरत भी नहीं अब किसी को फोन करने की। तुमको भी इसलिए खबर करवायी क्योंकि मैं लावारिस नहीं मरना चाहती थी।

नर्स बोल रही थी कि पैर में गैग्रीन हो गया है। पंजा काटना पड़ेगा नहीं तो जहर पूरे शरीर में फैल जाएगा। 

वह बोली अब जीने की इच्छा भी नहीं हैं। 

मैं बोली, "आप इसकी मत सुनिए आप आपरेशन की तैयारी कीजिए। अगर आप कहें तो हम इन्हें बड़े अस्पताल या आसपास कोई प्राईवेट अस्पताल मे ले जाए"। 

मेरा जी बैठा जा रहा था। मैंने डरते डरते पूछा अब आभा . . . । 

जब जीने की आस टूट जाये तो फिर बचाना मुश्किल हो जाता है। चेकअप, रिर्पोट आपरेशन की तैयारियों के पूरे होने पहले ही वह. . .

मैं शाक्ड था. .  इतनी मतलबी दुनियाँ. . . ऐसे रिश्ते. . . क्या मेरी गलती थी मुझे उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाहिए था ? 

रिचा आँटी बोल रही थी, ससुराल वालों को खबर की तो बोले मायके वाले जाने। मायके वालों का तो फोन नम्बर भी नहीं था। फिर भी ससुराल वालों के पास मायके वालों का जो नम्बर था उस पर फोन लगाने पर वो बोले अभी तो हम नहीं पहुँच पायेंगेl 

आरोप प्रत्यारोप के बीच में मायके वालों का कहना था अस्पताल में भर्ती तो करवाया ही था ना। 

शायद आभा को पहले से ही मालुम था इसीलिए चेक मुझे देकर गयी थी। ससुराल वाले तो ऐसे ही सीधे अस्पताल से जलाने के लिए लिये जा रहे थे। हम यहाँ लेकर आये। घर पर तो ताला लगा था यहीं बरामदे में रखा। उसकी लगायी तुलसी जो मुरझा रही थी वहीं उसके मुँह में डाली। मैंने अपनी नयी साड़ी उसके ऊपर डाली। कफन का कपड़ा भी कोई ले आया था । अपनों के रहते हुए भी परायों के द्वारा विदा हुई। 

मैं तो ना अपनों में था ना परायों में। मैं तो विदा भी नहीं कर पाया। 

रिचा आँटी बोली वैसे तो हमने छोटी सी शान्ति पाठ की पूजा रखी थी। तुमसे हो सके तो उसके अस्थि कलश का विर्सजन कर देना। 

मैं दूसरे दिन ही उनके अस्थि कलश के साथ उनके मायके गया । पता तो नहीं मालुम था बातों बातों में कभी मुहल्ले का नाम बताया था, लेकर घुमता रहा , उनको घुमाता रहा। फिर नासिक जाकर विधिवत विर्सजन किया। 

वापस आने के बाद अब उस सोसायटी में मेरा मन नहीं लग रहा था। ना वह बेला की खुशबु आती ना उनकी आवाज सुनायी देती।

मैं घर बदल कर सोसायटी छोड़कर जा रहा था कि रिचा आँटी की आवाज आयी जरा यहाँ तो आना। आभा तेरे लिए एक और काम छोड़कर गयी है। उन्होंने मेरे हाथों में सोने का हार रखते हुए बोला इसे तेरी पत्नी को पहनाना हैं

हाँ मेरी बात हुई थी उनसे, यह हार वह मेरी पत्नी को पहनाने वाली थी । अब वह नहीं है तो यह हार मैं नहीं ले सकता। इसे आप ही रखो उनकी निशानी के रूप में। मेरे पास रहेगा तो मुझे बहुत सारे लोगों के बहुत सारे सवालों के जवाब देने पड़ेंगे। वह होती तो इन सारे सवालों के जवाब आसान थे। 

वैसे रिचा आँटी वह लोग सब ले गये तो यह एक्टिवा क्यों छोड़ गये ? ।

ईएम़आई पर थी ना । पैसे भरने पड़ते । .

मै सोच रहा था कि रिश्तों की तो सारी ईएमआई आभा ने भरी थी फिर उन्हें क्यों छोड़ दिया ?

समाप्त. . . (नहीं )

मौलिक एंव स्वरचित

✍️ अरुणिमा दिनेश ठाकुर ©️


Anita Singh

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