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एक अधूरी ...सुहानी शाम

12 दिसम्बर 2021

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एक अधूरी . . . . सुहानी  शाम

          कल होली है, यह एहसास  मुझे आज भी पचास पचपन साल की उम्र में भी गुदगुदा जाता है।  मेरे इस एहसास का होली से शायद कुछ लेना देना नहीं है,  ऐसा नहीं है।  पर यह तो उस सुहानी शाम का एहसास है। जिसे याद करके आज भी मेरे आस-पास हवाएँ चलने लगती है, सूखे पत्ते उड़ने लगते हैं , मधुर संगीत बजने लगता है और आसपास  एक भीनी भीनी सी खुशबू बिखर जाती है।  यह खुशबू जो उसकी है।  जो उसके बदन से आती थी या यूँ कहिए कि आई थी। जो आज बरसों बीत जाने पर भी मन में बसी है । सच कहते हैं लोग पहला प्यार भुलाए से भी नहीं भूलता I पर क्या वह मेरा पहला प्यार था ? नहीं मेरा पहला प्यार तो मेरे पति है । हमारी तो लव मैरिज है । फिर भी वह एहसास आज भी दिल में जिंदा क्यों है ?

          बात ग्यारहवीं कक्षा में होली के समय की है । सहशिक्षा का स्कूल था । लड़के लड़कियाँ सब भाई बहन की तरह ही रहते थे। लड़ते झगड़ते, मान मनौवल करते I  पुराना जमाना था इसलिए उस उम्र में भी कोई गँदगी हमारे दिमाग में नहीं थी । होली पर बचपन से लड़के भी घर पर आते थे । सब सभ्य तरीके से होली खेलते।  अक्सर उनके साथ उनके बाहर के दूसरे स्कूलों के दोस्त भी साथ होते । पर फर्क नहीं पड़ता था। क्योंकि हमारे दोस्त हमारी देखभाल हमारे परिवार से भी बढ़कर करते थे। हम उनके दोस्ती के बंधन में खुद को महफूज समझते थे । सारे दोस्त दो- चार की टोलियों में आ रहे थे । उनके साथ उनके मोहल्ले के दोस्त भी थे।  हम सब लड़के-लड़कियाँ वहीं मोहल्ले में बीच मैदान में गाने की धुनों पर नाचते हुए होली खेल रहे थे।  उनमें से एक के चश्मे के पीछे झाँकती आँखें पता नहीं क्यों पर मुझे परेशान कर रही थी । नहीं . . .वह कुछ भी नहीं कर रहा था। कोई गलत हरकत नहीं . .  पर बस . . ।   

               लगभग आधे पौने घंटे बाद जब सब नाश्ता वास्ता करके ठंण्ढाई पीकर वहाँ से निकलने लगे तो वह मुड़ा और उसने रंग का पूरा पैकेट मेरे सिर पर खाली कर दिया।  मैं जोर से चिल्लाई यह क्या कर रहे हो ? वह धीरे से बोला, "तुम्हें अपने रंग में रगँना चाहता हूँ।" हे.. . . . . . यह बोलकर वह तो चला गया पर मेरे दिल में शायद कुछ बीज बो गया I पर उसी दिन जब मैं नहाने गई तो कसम से उसको मैंने इतनी गालियाँ दी। नहाने के बाद भी बालों में जमा रंग बह बह कर पूरे शरीर पर लग रहा था।  मेरे मोटे कपड़ों के कारण मेरा पूरा शरीर होली के रंगों में रंग नहीं पाया था । पर अब ये पूरी तरह से लाल गुलाबी हो चुका था।  थोड़ा रंग से थोड़ा गुस्से से l

       उसके बाद वह जब भी कहीं दिख जाता, मुझे देख कर मुस्कुराता और  होली का याद करके , गुस्से के कारण मुझे लगता अभी मौका मिलें तो इसको सही करूँ।  पूरा साल बस एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने में हीं बीत गया।  शायद कुछ आकर्षण तो मैं भी महसूस कर रही थी।  पर ना उसने कभी कहा ना मैंने कभी सोचाI

हमारी बारहवीं की परीक्षाएँ चल रहीं थी। होली और बारहवीं की परीक्षाएं तब दोस्तों की तरह हाथ पकड़कर साथ साथ ही आते थे I  हमारी लगभग सारी परिक्षाएँ हो चुकी थी । आखिरी दो परिक्षाएँ होली के दस दिन बाद थी। हम सब सोच ही रहे थे कि होली मनायें या नहीं । खैर यह तय हुआ कि आखरी साल है । होली नहीं मनाएंगे पर एक दूसरे के घर मिलने जरूर जाएंगे। आखिरी साल हैं फिर पता नहीं कब मिलना हों। तो शाम तक सारे दोस्त एक दूसरे के घर आकर मिल कर भी गए । शाम को मम्मी पापा रिश्तेदारों दोस्तों से होली मिलने चले गए। घर में मैं ही अकेली थी । आज माँ का जन्मदिन भी था। तब नया-नया जन्मदिन मनाने का क्रेज शुरू हुआ था। मैंने और पापा ने मिलकर सारी योजना भी बना ली थी। पापा ने सारा सामान भी ला कर रख दिया था।  अब दो घंटों में मुझे घर को सजाकर मम्मी को सरप्राइज देना था । तो मैंने फटाफट कमरे में झालरे पन्निया लगाई।  हैप्पी बर्थडे लिखा।  गुलाब की पंखुड़ियों से एक छोटी सी मेज पर दिल बनाकर उस पर मिठाईवाला केक रखा और बहुत सारी मोमबत्तियों को जगह-जगह लगा दिया। पापा ने बोला था कि जब आएंगे तो मोटरसाइकल का हार्न दो बार बजाएंगे तब मैं सारी मोमबत्तियां जला दूं । मैं जैसे ही सब कुछ सजाकर , सज धज कर बाल खोल कर बैठी ही थी कि हार्न की आवाज आई तो मैंने फटाफट सारी मोमबत्तियाँ जलाई और सब रोशनी बंद कर दी और भागकर जाकर दरवाजा खोलते हुए बोला वेलकम डियर ।  पर वहाँ तो माँ पापा नहीं थे । वहॉ तो वह खड़ा था, जो मुझे निहार रहा था । मैं अचकचा गई । समझ में ही नहीं आया क्या बोलूं ?  क्या सफाई दूं? उस समय में "डियर" बोलना भी "आई लव यू" बोलने जितना ही खतरनाक था । खैर होली का दिन था तो मैंने उसे अंदर बुलाया । पर अंदर की तो कहानी ही अलग I सब लाइट बंद, मोमबत्तीयों की रोशनी, मेज पर गुलाब की पंखुड़ियों से बना दिल, कुछ अलग ही मदहोश आलम मैंने.जल्दी से लाइट जलाकर उसे पूरी बात बतायी। उसको गुलाल लगाया। नाश्ता दूसरे मेज पर लगा ही था। जब मैं उसको नाश्ता पकड़ाने गई तो उसने में वहीं  कटोरें में रखी गुलाब की पंखुड़ियों को अंजलि में भरकर मेरे ऊपर डालते हुए बोला, "मैं ऐसे ही तुम्हारे जीवन में महक बनकर शामिल होना चाहता हूँ।  तूम्हे मेरे जीवन में शामिल करना चाहता हूँ"। मम्मी के लिए रखे गए गुलदस्ते  को उठा कर बह मुझे देते हुए बोला, "आई . . . ". । तबसे पापा के मोटरसाइकिल के हार्न की आवाज आई।  मैंने उसकी तरफ घबराकर देखा।  उसने जल्दी से गुलदस्ता वापस अपनी जगह पर रखा I  फटाफट मिलकर गुलाब की जमीन पर फैली हुई पंखुड़ियों को समेट कर लाइट बंद करके हमारे बाहर निकलते समय वह मेरे पास, इतने पास आकर कि मुझे उसके बदन की खुशबू आ रही थी धीरे से बोला, "तुमसे कुछ कहना था आज अधूरा रह गया मिलता हूं . . . . . जल्दी ही"। और दरवाजे पर पहुंचकर उसने मम्मी पापा के चरण स्पर्श कर हैप्पी होली विश किया । मम्मी को उन्हीं गुलाब की पंखुड़ियों से हैप्पी बर्थडे  विश किया। और चला गया मेरी वह सुहानी शाम अधूरी छोड़कर, ना जाने कितनी अनकही बातें पीछे छोड़कर । बाद में पता चला कि उसका इंजीनियरिंग में सिलेक्शन हो गया है और शायद उसके पापा मम्मी का ट्रांसफर भी l   बाद में कभी नहीं दिखा । उसके बारे में किसी से कुछ पूछ भी नहीं सकती थी । ऐसे कैसे किसी से भी  किसी के बारे में पूछ लेती। किस हक से पूछती ?  कुछ भी तो नहीं था मेरे और उसके बीच. . .  सिर्फ उस शाम का दस मिनट का एहसास. . . . जो आज भी जीवन में घुल सा गया है।

              कभी अगर वह मिले तो मुझे कहना हैं , "मुझे तुम्हारे जीवन का तो पता नहीं पर मेरे जीवन में महक बनकर तुम आज भी शामिल हो । उस शाम की महक मेरे जीवन में कहीं गहरे पसर गई है । वह अनकहा "आई लव यू" कहीं दिल में अपनी जगह घेर कर बैठ गया है l  तुम मेरे जीवन में नहीं हो पर यादों पर तुम्हारा ही कब्जा है ।

             अगर आपको कहीं मिले वो चश्मिश तो उसे याद दिला देना,  एक अधूरी शाम को पूरा करने का वादा अभी बाकी है। 

मौलिक व स्वरचित

पढ़ने और समिक्षा करने के लिए आपका आभार


Anita Singh

Anita Singh

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