मर्जी या साजिश
डॉक्टर संध्या के पति डॉ आकाश का फोन था। "हां सुनो संध्या तुम अपने घर का इंटीरियर का नक्शा देखना चाहती थी ना । आर्किटेक्ट (वास्तुकार) अभी आधे घंटे में तुम्हें अस्पताल में ही आकर मिल लेगा। हां वह अपना आर्किटेक्ट प्रभात है ना, वह अभी तुम्हारे अस्पताल ही आने वाला है। उसकी पत्नी वहीं पर भर्ती है । तुम आज देखकर अपनी मंजूरी दें दो तो कल शुभ मुहूर्त से काम शुरू हो जाएगा"। डॉक्टर संध्या आजकल बहुत व्यस्त है । वह एक स्त्री रोग विशेषज्ञ है । पिछले आठ दस दिनों से उन्हें नक्शे को देखकर वास्तुकार के साथ बातें कर अन्तिम रूप देना है । पर लगता है सारे बच्चों ने निर्णय ले लिया है कि उन्हें अभी ही पैदा होना है तो बस लाइन ही लगी है। पिछले कुछ दिनों से उसे फुर्सत ही नहीं है डिलीवरी करवाने से l
प्रभात नाम उससे अतीत के गलियारों में खींच ले गया I एक प्रभात को तो वह भी जानती है और वह भी आर्किटेक्ट ही था । तो क्या यह वही प्रभात हो सकता हैं ? नहीं नहीं वह यहाँ कैसे ? क्यूँ ? आयेगा। वह और प्रभात बचपन से ही अड़ोस पड़ोस में रहते थे । साथ साथ ही खेलते साथ साथ ही पढ़ते । बारहवीं के बाद प्रभात ने इंजीनियरिंग करके आर्किटेक्ट बनने का निर्णय लिया और उसे तो बचपन से ही डॉक्टर बनना पसंद था। उसे याद है जब एक बार दोनों साथ बैठे थे तो उसने कहा था प्रभात से, मेरे लिए घर तुम बनाना। प्रभात ने उसे पहली बार कुछ अलग ही जलती हुई निगाहों से देखते हुए कहा था और मेरे बच्चे को जन्म तुम देना। संध्या तो शर्मा कर अंदर भाग गयी। छिः ऐसे कोई कहता है क्या ? और फिर उसके बाद तो संध्या और प्रभात एक दूसरे के सामने पड़ने से भी शर्माने लगे। पता नहीं पर प्रभात ने इसका क्या मतलब निकाला। पर अब दोनों ही एक दूसरे को देखते और नजरें चुरा लेते । चाहते दोनों ही थे पर संकोच में कह नहीं पा रहे थे । कभी कभार प्रभात अकेले में उसके कानों में फुसफुसा कर कह जाता "क्यों बनोगी ना मेरे बच्चों की . . . " और वह शर्म से लाल हो जाती I अब तो उसकी मेडिकल व प्रभात की इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी। संध्या को एमडी करनी थी और प्रभात को आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का मौका मिल गया। प्रभात बगैर कुछ बोले और अपने प्यार का इजहार करे बगैर चला गया I इधर घर में संध्या की शादी की बात होने लगी। आखिर उसने अपने दिल की बात अपनी माँ को बताई। माँ ने धीरे से उसका माथा चूम कर बोला मैं तेरे पापा से बात करके देखती हूँ। वैसे ऐसा कुछ था तो तुम दोनों को प्रभात के जाने से पहले घर वालों से बात कर लेनी चाहिए थी I संध्या के मां पापा ने प्रभात के मां पापा का मन टटोलने की कोशिश की। पर वह तो कट्टर धार्मिक थे I उन्होंने साफ शब्दों में मना कर दिया। बहू तो हम अपनी जाति की ही लाएंगे । वैसे भी प्रभात की शादी हमने तय कर दी है l यह सुनकर संध्या के पापा ने कहा, वह तों मैं संध्या के लिए रिश्ता ढूढ़ना शुरू कर रहा था । दोनों बचपन से साथ खेले हैं । एक दूसरे को जानते हैं। इसी लालच में की बेटी घर के पास रहेगी। सोचा आप से भी पूछ लूँ। प्रभात के पापा ने संध्या के पापा का हाथ पकड़ते हुए कहा आपकी बात बिल्कुल सही है। संध्या बहुत प्यारी लङकी है । उसे बहू बना कर हमें खुशी मिलती, पर हमने रिश्ता पक्का कर दिया है । प्रभात के आते ही शादी कर देंगे ।
"रिश्ता पक्का कर दिया" का मतलब संध्या के मां पापा ने यही लगाया कि फिर तो रिश्ते की जानकारी प्रभात को भी होगी । अगर वो चाहता तो अपने मां पापा को बोल कर जाता। संध्या को भी यह बात समझ में आयी । इसलिए माँ पापा ने जब आकाश के साथ उसका रिश्ता पक्का कर दिया तो उसने कोई एतराज नहीं किया । पर एक कसक एक खलिस तो मन में रह ही गयी। शादी की रात जब बारात दरवाजे पर खड़ी थी और संध्या दुल्हन बन कर बैठी थी। प्रभात आया था उलाहाने भरे स्वर में बोला, "मेरा इंतजार भी नहीं किया"। संध्या क्या कहती ? कि कैसे इंतजार करती ? तुम कुछ बोल कर ही नहीं गए थे, और बगैर बोले समझना अलग बात है रिश्ते निभाना अलग बात I और वैसे भी तुम्हारे मां पापा ने तो हमारी शादी से ही इनकार कर दिया था । संध्या की शादी हो गई और पिछले चार सालों से वह यहां पर है अपने पति के साथ। मायके तो जाती रहती है l पर प्रभात की शादी के बाद कहीं और नौकरी लग जाने के कारण उन लोगों का घर बंद ही है। ज्यादा उसने पूछने की कोशिश भी नहीं की l
"डॉक्टर चलिए मरीज को ओटी में व्यवस्थित कर दिया है । सारी तैयारी हो गई है" । बोलकर नर्स ने उसे वर्तमान में ला खड़ा किया । वह ओ.टी. की ओर चल पड़ी उसे ऑपरेशन करना था। सामान्य प्रसव संभव नहीं था। बच्चे की नाल गले में अटक गयी थी। थोड़ी ही देर बाद अपने अभ्यस्त हाथों से एक फूल सी बच्ची को जन्म दिला कर सारे आवश्यक निर्देश देकर जब वह बच्ची को गोद में लेकर बाहर आई तो परिजनों के नाम पर शायद सिर्फ उस महिला का पति खड़ा था । डॉ. संध्या ने बोला, "मुबारक हो आप फूल सी बेटी के पिता बन गए हैं" I उस पुरुष ने घूम कर देखा । प्रभात. . . . ? संध्या का मन चीख चीख कर कह रहा था । हे भगवान यह तेरी साजिश है या करम जिस बच्चे की माँ मुझे होना चाहिए था मैं आज सिर्फ उसे जन्म दिलाने वाली डॉक्टर हूँ I उधर हाथ में मकान के नक्शे को पकड़े हुए प्रभात सोच रहा था कि जिस मकान में मुझे तुम्हारे साथ जिंदगी बितानी थी, मैं आज उसका सिर्फ एक वास्तुकार हूँ।
मौलिक एंव स्वरचित
अरुणिमा दिनेश ठाकुर✍️
पढ़ने के लिए आभार