मैं भगवान तो हूँ नहीं कि कर्मों का लेखा जोखा करके व्यक्ति को वैसी जिंदगी दूँ। मैं तो लेखिका हूँ । मेरी कलम तो स्वतंत्र है किसी भी कहानी को सुखांत या दुखांत करने के लिए। वैसे भी लिखते वक्त मेरी नहीं कलम की ही चलती है। क्या सोचकर कहानी शुरू की थी और कलम इसे कहाँ तक ले आयी । पर मैं इस अन्त से खुश नहीं हूँ।
भगवान की बनाई दुनिया में भले ही आभा अपने पूर्व जन्म के कर्मों का फल (ऐसा लोगों का मानना हो सकता है) भोग रही हो पर चलो हमारी दुनिया में, हम कहानीकारों की दुनिया में उसका जीवन खुशियों से भर देते है । कहानी का अंत थोड़ा बदल देते हैं।
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मैं (रिचा आँटी) बोली, "आप इसकी मत सुनिए आप आपरेशन की तैयारी कीजिए। अगर आप कहें तो हम इन्हें बड़े अस्पताल या आसपास कोई प्राईवेट अस्पताल मे ले जाए"।
मेरा जी बैठा जा रहा था। मैंने डरते डरते पूछा अब आभा . . . ।
जब जीने की आस टूट जाये तो फिर बचाना मुश्किल हो जाता है। फिर भी हम तुंरत आभा को लेकर बड़े अस्पताल गये। चेकअप, रिर्पोट आपरेशन की तैयारियों के साथ उसका इलाज़ शुरू हो गया। बड़े अस्पताल के डॉक्टर ने कुछ इंजेक्शन लगाकर डायबिटीज को कंट्रोल में लेकर आभा के पैर की सिर्फ तीन उंगलियाँ ही काटी हैं। मैं कल तक वहीं थी आज ही आई हूँ।
तो आभा अकेली है वहाँ पर ?
"नहीं अकेली नहीं है, अपनी ही सोसाइटी की बी विंग की श्वेता आँटी की बेटी जो उसी शहर में रहती है, उसके साथ है । तुम अभी जा कर थोड़ा आराम कर लो । कल सुबह तुम चले जाना" ।
रिचा आँटी से अस्पताल का पता लेकर मैं अपने कमरे में आ गया । मुझे लग रहा था मैंने आभा को लगभग खो ही दिया था।
अगली सुबह पहली ट्रेन से ही मैं अस्पताल के लिए निकल गया। मैं जल्द से जल्द आभा से मिलना चाहता था। उनको देखना चाहता था, उनसे पूछना चाहता था कि क्या वह मेरे भैया से शादी करना पसंद करेंगी (हाँ, भैया ने हाँ कह दिया था)।
अस्पताल पहुँच कर मैं श्वेता आँटी की बेटी से मिला । वह मुझे आभा के वार्ड में छोड़ कर घर जाने के लिए निकल गयी। अभी सारा दिन मुझे आभा के साथ रूकना था शाम को रिचा आँटी आने वाली थी । आभा को देखकर मेरी आँखों से आँसू बहने लगे ।
वह मुझे देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "रो क्यों रहे हो ? मैं ठीक हूँ"।
"अगर मैं तुमसे नहीं मिल पाता तो, तुम्हें कुछ हो जाता तो" ? मैंने उन्हें गले से लगाते हुए बोला।
वह मुस्कुराती हुई बोली, "मुझे तो लगा तू वापस आएगा ही नहीं" ।
"हाँ इसीलिए मुझे बताएं बिना सब छोड़ छाड़ कर जा रहीं थी",मैंने उलाहना देते हुए कहा।
मैं उनको देखते हुए सोच रहा था कि जब उन्हें मेरी सबसे ज्यादा जरुरत थी, मैं उनके साथ नहीं था I उनके पैर पर पट्टी बंधी थी । मैं सोच रहा था उनके दिल से जख्म तो और भी गहरे होंगे उनकी मरहम पट्टी कैसे होगी ?
उनके दिल का मवाद बह जायें इसके लिए मैंने उनसे बात करनी शुरू की। बताओं मुझे मेरे जाने के बाद क्या हुआ था। क्यों तुमने इतना बड़ा निर्णय ले लिया।
वह भी अपना दुख मुझ से बाँटना चाहती थी, बोली, "बरसों से तरस रहीं थी मायके जाने के लिए। यहाँ सभी अपने थे पर दिल को अपनों की, परिवार की कमी बहुत खलती थी। जब किसी को परिवार बच्चों के साथ देखती तो अपना अधूरापन शिद्दत से महसूस होता। पति और बच्चे तो नहीं संभव था, सोचा था माँ के साथ समय बिताऊँगी बरसों बाद उनके आँचल में सो जाया करूँगी"। "क्या माँ को मालुम भी होगा कि मैं कैसी हूँ ? भाई कैसा होगा ? किसी ने भी यह जानने की कोशिश भी ना की कि आभा जिन्दा हैं या मर गयी"।
मैनें कहा, "अभी भी तुम उन लोगों के बारे में सोच रही हो। अपने बारे में सोचों, अपने लिए जीना शुरू करों। खुशियाँ किसी की मोहताज नहीं होती। अकेलापन अपने अंदर मत फैलने दो। तुम अपनी खुद की साथी बनों। अपने साथ अपने लिए जिओं"।
उन्होंने रोते हुए कहा, "क्या सोचू अपने बारे में ? कि अब मैं कहाँ रहुँगी ? हॉस्पिटल का इतना सारा खर्चा कहाँ से उठाऊँगी ? मेरा सारा atm, चेकबुक सब तो वह लोग उठा ले गए"।
मैंने प्यार से उनके बालों में हाथ फेरते हुए कहा, "क्यों. . . हम सब हैं ना । यह सब तो हम लोग संभाल लेंगे"।
फिर मैंने उनको समझाते हुए कहा, "वैसे अगर आपने चेक साइन करके नहीं दिये हैं और उनके साथ आपका जॉइंट अकाउंट नहीं है तो कोई भी आपके बैंक खाते से पैसे नहीं निकाल सकता। घर तो वैसे भी आपके जीते जी आपका ही रहेगा।
"पर एटीएम कार्ड भी उनके पास हैं, और पासवर्ड उन्हें मालुम है", वह मासूमियत से बोली।
मैंने कहा, "चिंता मत करो हम सब है ना । मैं बैंक में हूँ, इसलिए जानकारी है। मैंने सबसे पहले फोन करके उनका atm ब्लॉक करवा दिया । अब कोई भी उनके हस्ताक्षर के बिना उनके खाते से पैसे नहीं निकाल सकता था" ।
कुछ दिनों में आभा अच्छी होकर घर पर आ गयीं। उन्होंने अपनी नौकरी पर जाना फिर से शुरू कर दिया। अब वह ससुराल या मायके वालों के हाथ की कठपुतली या मोहरा नहीं थी। अब मैं उन्हें खुद के लिए जीना सिखा रहा था कि निकट भविष्य में उन्हें किसी के साथ की जरूरत ना रहें, मेरी भी नहीं। अब आभा मेरे भैया से शादी करती हैं या नहीं इसका निर्णय तो वह भैया से मिलने के बाद ही लेंगी।
मैं किसी को गलत नहीं कह रहा हूँ। आभा जी के माता पिता सही हो सकते हैं क्योंकि वह चाहते थे कि बेटी का भविष्य सुरक्षित रहे । पर मेरा कहना है कि संपत्ति के लिए खुशियों को कुर्बान ना करें । संपत्ति संसाधन एकत्र कर सकती हैं साथी नहीं। मैं नहीं कहता हूँ कि शादी करना आवश्यक है । अगर आपके आसपास कोई आभा दिखाई दें जो घिसट घिसटकर जीवन जी रही हो, एक निरुद्देश्य जीवन जी रही हो । हम उसकी जिंदगी में कुछ सकारात्मक परिवर्तन तो ला ही सकते हैं।
यहाँ पर आभा को एक प्यारे से परिवार की इच्छा थी। किसी आभा को हम समाजिक कार्यों के लिए प्रेरित कर सकते हैं। किसी आभा को हम उसके किसी रुचि को शौक को विकसित करने में मदद कर सकते हैं। यह मनुष्य जन्म बहुत पुण्य से मिलता है इसे यूँ ही नहीं गँवाना है । पल पल मर - मर कर नहीं जीना हैं। हर पल जीना है खुशियों के साथ I
(कुछ महीनों बाद)
अभी तो मैं दरिया पर सीढ़ियों पर बैठकर आभा और भैया को समुद्र के किनारे रेत पर चलता हुआ देख रहा हूँ। दोनों आपस में बातें करके क्या निर्णय लेते हैं यह तो भविष्य बताएगा । पर दोनों साथ में अच्छे बहुत लग रहे हैं । डूबते हुए सूरज की लालिमा उन दोनों के जीवन को खुशियों से भर दे यही मेरी भगवान से प्रार्थना है।
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मौलिक एंव स्वरचित
✍️ अरुणिमा दिनेश ठाकुर ©️