गुलाब मोगरा के फूलों से उसका श्रृंगार किया गया है I कितनी खूबसूरत लग रही है । यह उसकी हमेशा से ख्वाहिश थी, उसको फूल बहुत पसंद है । पर आज तो उसकी इच्छा पूरी हुई है । उसे और मुझे दोनों को ही खुश होना चाहिए था । पर फिर यूँ मेरी आँखें नम क्यों है ? और उसकी चहकती हुई आवाज शांत क्यों है ?
अक्सर वह मुझसे लड़ती (प्यार से) थी कि तुम मेरे लिए फूल नहीं लाते हो । मुझे यह फूल देना या यूँ प्रेम का दिखावा करना अच्छा नहीं लगता था ।
मैं पूछता, "तुम्हें क्या लगता है ? क्या अगर मैं फूल नहीं लाता हूँ तो क्या मैं तुम्हें प्रेम नहीं करता" ?
वह मायूस होकर कहती, "ऐसा नहीं है । मुझे फूल बचपन से बेहद पसंद है। मैं घर में भी गर्मियों के मौसम में जब मोगरे के फूल खिलते थे, उसके गहने बनाकर कान में, हाथ में, गले में पहनती थी । तुम्हें याद है मेरी शादी के समय पर भी मेरे पापा ने मेरे पूरे जेवर फूलों के बनवाए थे" ।
मैं उसे समझाता था । फूल पेड़ों पर ही अच्छे लगते हैं । क्यों बिना मतलब उन्हें तोड़ कर के उनकी डाली से उन्हें अलग करना ? वैसे भी मैं फिर तुम्हारे लिए चॉकलेट, साड़ी, यह सारे गिफ्ट लाता हूँ ना ।
वह मायूस सी मुस्कान के साथ बोलती, "हॉं वह तो है । मैनें इस बात से इनकार कहाँ किया है कि आप मेरे लिए तोहफे नहीं लाते हो । पर बस कभी ऑफिस से आते वक्त एक गजरा लेते आया करो" ।
शादी को पैतालीस साल हो गए हैं और ज्यादा ही हो गए होंगे। अब तो रिटायर भी हो गया हूँ। ऑफिस जाना भी छूट गया हैं पर उसका गजरा लाने का ख्याल ना मन में आया, ना मैंने सच में कभी सोचा कि यह उसके लिए इतनी बड़ी बात है । अरे सब कुछ तो ला कर दे रहा हूँ, एक से एक नए गहने, उपहार ।
कल भी उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था, "पूरी जिंदगी बीत गई तुमसे माँगते हुए । तुम कभी तो मेरे लिए फूल ले कर आना" ।
मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा था, "ठीक है बाबा, घर चलो रास्ते में तुम्हारे लिए ढेर सारे फूलों के गजरे ले लूंगा । तुम्हारी यह शिकायत भी दूर हो जाएगी । उसकी आँखें चमक उठी थी"।
मेरे हाथों पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए वह बोली, "सच्ची ना . . "?
हाँ बाबा सच्ची, तुम्हारे पापा की तरह तुम्हारे लिए ढेर सारे फूलों के गहने भी बनवा दूँगा। तुम्हारा पूरा श्रृंगार फूलों के गहनों से करूँगा"।
वह कितनी खुश हो गई थी । "हाँ अपनी शादी की सालगिरह पर इस बार ऐसा ही करना । मुझे कोई तोहफा नहीं चाहिए । तुम मेरे लिए सिर्फ फूल लेकर आना" और मेरा हाथ पकड़ कर वह ऐसी सुकून की नींद सोई कि फिर उठी ही नहीं ।
बेटी ने पास आकर बोला, "पापा माँ की माँग भर दो और यह गजरा उनके बालों में लगा दो। मेरे हाथ काँप रहे थे । कितनी जिद्दी थी वह । उसे मुझसे गजरा चाहिए था पर इस तरह . . ., आज मैं उसके बालों में गजरा लगा रहा हूँ। हाँ वह सुहागन गई है ना, तो फूलों से उसका श्रृंगार हुआ है । उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी हुई है । पर आज ख्वाहिशों को महसूस करने के लिए वह नहीं है। मैं बुदबुदाया यह सारे फूल तुम्हारे लिए हैं। मुझे लग रहा था मानों वह मुझे उलाहना दे रही है, "आज मेरे लिए इतने सारे फूल . . . , तुम यह सारे फूल मेरे लिए लाए हो । पर तुम्हें नहीं लगता कि यह फूल लाने में तुमने बहुत देर कर दी" ।
मौलिक एंव स्वरचित
पढ़ने के लिए आपका आभार
✍️ अरूणिमा दिनेश ठाकुर ©️.
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