ग़ज़ल ज़िंदगी मझधार की पतवार है किसको पता ? किसके हिस्से में यहां पर खार है किसको पता ? कर सको पूरा रखो तुम शौक़ उतना ही करीब , शौक़ मसलन इश्क़ में बाजार है किसको पता ? भूलकर जाना कभी
आसाँ नहीं समझना हर बात आदमी के,कि हँसने पे हो जाते वारदात आदमी के।सीने में जल रहे है अगन दफ़न दफ़न से ,बुझे हैं ना कफ़न से अलात आदमी के?ईमां नहीं है जग पे ना खुद पे है भरोसा,रुके कहाँ रुके हैं सवालात आदमी के?दिन में हैं बेचैनी और रातों को उलझन,संभले नहीं संभलते हयात आदमी के।दो गज
मैं एक आम आदमी ,मेरी औकात है बस इतनी सी; ठिठक जाते है पैर मेरे,देख सामने वी आई पी एंट्री;चक्के जाम हो जाते वाहन के मेरे, वी आई पी रोड पे;किसी सरकारी ऑफिस में ,झिझक जाता है वजूद मेरा;किसी मंदिर की वी आई पी लाइन से,हट जाता साया भी मेरा;मैं एक
एक दशक बीतने वाला है, बहुत कुछ बदल गया है, बदल रहा है। अगले दशक में जाने से पहले एक नजर देख ले। ये दशक बेटियों की दहशत और आदमी की वहशीपन की आबादगी का रहा। 16की निर्भया और दुधमुंही बच्चियों के जिस्म को नोचने का रहा। नोटों से गांधी गायब नहीं हुआ, बस ये शुक्र रहा। नोट गायब करने की साजिशों का रहा। कितन
भारत का चंद्रयान 2 मिशन फेल रहा परन्तु यदि यह सफल होता तो इससे आम आदमी को क्या लाभ होता।क्या वह चांद पर जाकर रह सकता था ?क्या वह चांद पर घर खरीद सकता था ?या फिर यह सब झूठी शान दिखाने या नेताओं और पूंजीपतियों द्वारा गरीबों के पैसे पर चांद पर अयाशी करने का माध्यम बनता औ
कहां राजपथों पर कुलांचे भरने वाले हाई प्रोफोइल राजनेता और कहां बालविवाह की विभीषिका का शिकार बना बेबस - असहाय मासूम। दूर - दूर तक कोईतुलना ही नहीं। लेकिन यथार्थ की पथरीली जमीन दोनों को एक जगह ला खड़ीकरती है। 80 के दशक तक जबरन बाल विवाह की सूली पर लटका दिए गए नौजवानोंकी हालत बदहाल अर्थ व्यवस्था में
'' आदमी '' प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति है .आदमी को इंसान भी कहते हैं , मानव भी कहते हैं ,इसी कारण आदमी में इंसानियत , मानवता जैसे भाव प्रचुर मात्र में भरे हैं ,ऐसा कहा जाता है किन्तु आदमी का एक दूसरा पहलु भी है और वह है इसका अन्याय अत्याचार जैसी बुराइयों से गहरा नात