मैं एक आम आदमी ,मेरी औकात है बस इतनी सी;
ठिठक जाते है पैर मेरे,देख सामने वी आई पी एंट्री;
चक्के जाम हो जाते वाहन के मेरे, वी आई पी रोड पे;
किसी सरकारी ऑफिस में ,झिझक जाता है वजूद मेरा;
किसी मंदिर की वी आई पी लाइन से,हट जाता साया भी मेरा;
मैं एक आम आदमी ,मेरी औकात है बस इतनी सी।
किसी समारोह में मेरी उपस्थिति जरूरी है ,समारोह सफल होने के लिए;
लेकिन मै इतना जरूरी नहीं ,जितना वी आई पी उस समारोह के लिए;
कार्यक्रम में कुर्सियां बहुत है वी आई पी के लिए,जबकि आते वे बहुत कम;
जगह बहुत कम है आम आदमी के लिए,लेकिन आते वे ज्यादा ही हरदम;
मैं एक आम आदमी ,मेरी औकात है बस इतनी सी।
सोचता हूं मैं घुस जाऊं वी आई पी लाइन में,
लेकिन घिग्घी बंध जाती है पुलिस के डर ,
और डंडे के जोर से,आखिर हूं तो मैं आम आदमी ही;
गुस्सा बहुत आता है सिस्टम पे,पी जाता हूं उसे धीरे से;
आखिर हूं तो मैं आम आदमी ही।
सरकारी अस्पताल में लाइन में लगा इंतजार करता हूं अपनी बारी का,
लेकिन डॉक्टर को इंतजार है किसी वी आई पी के आने का;
मैं एक आम आदमी,मेरी औकात है बस इतनी सी।
शादी में गया किसी के निमंत्रण पर, स्वागतद्वार पे बधाई देने मेजबान को;
इतने में वी आई पी का प्रवेश,धक्का मुक्की के बीच मैं कर दिया बाजू को;
आखिर मैं एक आम आदमी,मेरी खता इतनी सी;
मैं एक आम आदमी,मेरी औकात है बस इतनी सी।