आसा
तू तूने भी क्या खूब कहा था, फ़िर मिलेंगे चलते-चलते, ताउम्र सफ़र को जारी रखा हमने अंगारो पर जलते- जलते ! एक तिनका मझदार में, जो फ़सा है अब भी प्यार में, उसने भी किनारे आना है, शाम का सूरज ढलते-ढलते ! नींद है ओझल आँखों से और सपनो की बेचैनी शोर मचाए, तेरी रात को हो चंदा हासिल, चाहे अपने सितारे रहे मचलते ! एक सिक्का खोटा सा, है जिसको सबने समझा छोटा सा, बुरे वक्त में काम आ गया सबकी आँखों को खलते-खलते ! हम भी थे शामिल उसी भीड़ में, जहाँ सब रब से तुझको मांग रहे थे, गैरो को तेरा साथ मिला और लौटे हम हाथो को मलते-मलते !