वे हमारी जड़ों में तीखा जहर बो रहे हैं ,
और हम हैं कि जाग कर भी सो रहे हैं .
दूसरों को अंगुली दिखा कर बनते हैं होशियार
अपने नाक के तले बसे चोरों से न हों ख़बरदार।
हम और हमारे नेता सभी कहते फिरते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों की पाठशाला है और वहाँ पर विभिन्न संगठनों को शरण दी जा रही है। वहाँ की सरकार उनको संरक्षण दे रही है। हम खुद क्या कर रहे हैं ? अपने गिरेबान में झांक कर देखने कि फुरसत किसे है?
हाँ मेरा आशय कल मथुरा के जवाहर बाग में हुए पुपुलिस और वहां में जमें लोगों ने जिस तरह से हिंसा का तांडव किया और फिर उसके घातक परिणाम सामने हैं . दो साल से वहां पर काबिज ये लोग अपनी मनमानी शर्तों को मनवाने के लिए समानांतर सरकार चलाते रहे और हम सोते रहे . अब जानहानि का ज़िम्मेदार किसे कहेंगे ?
हम अपने घर में पलने वाले और पाले जाने वाले आतंकियों की ओर नजर ही नहीं डाल पा रहे हें . हम आतंकवादी शब्द पुनर्परिभाषित करने की सोचें क्या ? देश में दहशत फैलाने वालों को हम नक्सली , उग्रवादी , अलगाववादी, माफिया और दबंग कहते हैं . क्या ये किसी न किसी तरीके से आम नागरिक के जीवन में मुश्किल पैदा नहीं करते हैं। नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में वे खुले आम घोषणा करते हैं कि हमें हर परिवार सदस्य अपनी विद्रोही सेना में बढ़ोत्तरी करने लिए चाहिए। हमने कभी सोचा है कि उन परिवारों में कितनी दहशत फैली होगी। हमें आतंक के चेहरे से इतने मुखौटे हटा कर सिर्फ एक नाम देना है और उससे निबटना भी बहुत जरूरी है क्योंकि आतंक सिर्फ एक होता है और उसका सहारा लेकर----
जो दहशत फैलाये ,
लोगों का जीवन मुश्किल कर दे ,
उनका शोषण करे ,
उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर उन्हें अपनी मर्जी अनुसार जीने को विवश करे।
आम आदमी के घर की बहू और बेटियां जहाँ सुरक्षित न हों। बहू बेटियां तो बड़ी हो जाती हैं , यहाँ दुधमुंही बच्चियों से लेकर बचपन के आगोश में बेखबर बच्चियों का जीवन तक सुरक्षित न हो ,
बलात श्रम करवाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करने वाले लोगों को हम किस श्रेणी में रख सकते हैं।
माफिया चाहे वे किसी भी क्षेत्र के क्यों न हों ?
ये सभी तो अपने दबदबे को प्रयोग करके लोगों को आतंकित कर रहे हैं। फिर इसको भी हमें आतंकवादी की श्रेणी में क्यों नहीं रखना चाहिए ?
आम तौर पर तो हम देश की सीमाओं में बलात घुस कर आने वाले पडोसी देशों या एक विचारधारा विशेष के शिकार लोग, क़ानून भंग करके लोगों में दहशत फैलाने वालों, को ही आतंकवादी कहते आ रहे हैं। इस अलगाववादी विचारधारा वाले लोग देश के नागरिकों को भी बरगला कर अपने कामों को अंजाम देने के लिए मजबूर करने वाले , या फिर नयी पीढ़ी को धन का लालच देकर उन्हें दिग्भ्रमित करने वाले , उनका ब्रेन वाश करके अपने घर के विरुद्ध खड़े करने वाले भी इसी श्रेणी में आते हैं लेकिन वे धर्म विशेष से जुड़े हुए लोग हैं , जो सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि अपनी अलग क़ानून व्यवस्था को स्थापित करने के लिए दूसरे देशों में भी सक्रिय हैं।
उनसे निपटने के लिए हमारी सेना है , हमारी खुफिया एजेंसी हैं जो हमें इसके आगमन और इसके बुरे इरादे से अवगत करा कर सतर्क करती हैं। कई बार हम बच जाते हैं और इन आतंकवादियों के मंसूबे ध्वस्त कर देते हैं और कई बार हमारे जवान इनकी चालों का शिकार होकर शहीद हो जाते हैं।
हमारे अपने देशवासी , इसी जमीन पर जन्मे ,पले और जीवन जीने वाले जब उपरिलिखित कामों को अंजाम देते हैं तो उन्हें आतंकवादी क्यों न कहा जाय ? उनके लिए ही सजा मुक़र्रर क्यों न की जाय ? देश के इन आतंकवादियों को बचाने के लिए - राजनैतिक हस्तियां , दबंग , बड़े बड़े पैसे वाले और रसूख वाले खड़े होते हैं। उन्हें सजा तो क्या बाइज्जत बरी तक दिया जाता है। खतरा हमें बाहर के दुश्मनों से जितना है उससे कहीं अधिक देश में फैले हुए सफेदपोश आतंकवादियों से है। उनको बेनकाब करने का काम न पुलिस कर पाती है और न ही मीडिया। क्योंकि इन लोगों के शरणदाता रसूखवाले होते हैं