इस समय सिर्फ एक जगह नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश के कई भागों में जल के लिए त्राहि त्राहि मची हुई है . पथरीले इलाकों और सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में तो हालत और भी ख़राब है . इसी देश की बात कर रहे हैं और अपने शहर की भी . कई इलाके पानी की कमी से जूझ रहे हैं और जहाँ पर अभी पानी मिल रहा है , वहां के कुछ लोग बेखबर है कि जल संरक्षण का अर्थ क्या है ? और इसको क्यों करना जरूरी है ?.हमारे इलाके में अभी पानी की किल्लत नहीं है लेकिन जब शहर का एक भाग इसकी चपेट में आ चूका है तो ये विभीषिका यहाँ तक आते आते देर नहीं लगेगी . आप लोगों को सबमर्सिबल के मोटे पाइप से सड़क धोते हुए , अपने घर की चहारदीवारी और जानवरों को नहलाते हुए देख सकते हैं . ये पानी प्रयोग के बाद नालियों में बह रहा है . इस पर तुरंत अँकुश लगाने की ज़रूरत है . ये तो बात उन घरों की है , जो गाँव से आकर यहाँ बस गये हैं और नये इलाके में मकान होने के कारण अभी पानी की किल्लत नहीं है .
आइए बडे घरों में झाँक कर देख लें . प्रदूषित जल के कारण हर घर में न सही लेकिन साठ - सत्तर प्रतिशत घरों में आर ओ का पानी प्रयोग किया जा रहा है . आर ओ के एक लिटर पानी के निकलने पर करीब तीन लिटर पानी बेकार होकर बहता है . इस पानी का सदुपयोग में मात्रा दो प्रतिशत लोग ही करते हैं , नहीं तो नाली में बह रहा है .
मैं आँखों देखी बता रही हूँ , कुछ महिलाएँ गाँव में कुएँ के पानी को प्रयोग करने वाली हैं और उनका ज्ञान सिर्फ खारे कुएँ और मीठे कुएँ तक ही रहा है . आज यहाँ पर आर ओ के पानी से ही सब्जी धोयेंगी और उसमें ही पकायेंगी . जो पानी निकल रहा है उसको ऐसे ही बहने देती हैं . आर ओ के पानी को संरक्षित करके बर्तन धोने , कपड़े धोने में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है लेकिन जब तक हमको मिल रहा है तब तक कौन और क्यों ज़हमत उठाये ?
प्रदेश में ही बुंदेलखंड में पानी के बूँद बूँद के लिए तरस रहे है लोग और वहां से पलायन करने लगे हैं . कल यही स्थिति हर जगह आने वाली है .
कुएँ , तालाब तो बिल्कुल ही सूख चुके है . जो नदियाँ शेष हैं वे भी अपने किनारों से सिमटती चली जा रही हैं .
तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा ये भविष्य वाणी हम सुनते चले आ रहे हैं और हम अगर अब भी न चेते तो वह दिन दूर नहीं कि आज जैसे नदियों के किनारे पर मछलियाँ मरी पायी जा रही हैं वैसे ही इंसान जल के बिना दम तोड़ रहा होगा .
आज के दिन में हमारे पास जो है और जितना भी है उसको संभाल कर खर्च करें . फसल नहीं होती तो वस्तुएं आयात होने लगती हैं लेकिन ये पानी न तो किसी वैज्ञानिक तरीके से बनाया जा सकता है और न ही कहीं से आयात कराया जा सकता है . निरंतर हो रहे जल दोहन के करण ही भूकंप की त्रासदी अब आए दीन झेलने को मिल रही है . हम सुरक्षित है ये भावना कभी आनी ही नहीं चाहिए क्योंकि धरती और प्रकृति सी साथ खिलवाड़ सदैव ही घातक होता है . वह किसी पर रहम नहीं करती है . हम खुद जल संरक्षण की दिशा में जागरूक ऑनरेबल और अपने परिवेश में भी इसके प्रति चेतना फैलायें तो आने वाली समस्या का सामना करने के लिए तैयार हो सकेंगे .