पापा
बहुत याद आते हो ,
अनजाने में
पकड़ा कर कलम
विरासत में दीं
ये कवितायेँ
ये कहानियां
और ये लेख .
सारी संवेदनाएं
सारी ममता , करुणा
कब दे दी मुझे
ये पता ही नहीं चला .
मैं लिखती रही
तुम पढ़ते रहे
पर कभी न बताया
ये कलम विरासत में मिली है .
उन्मुक्त सी हंसी
बेफिक्री जहाँ की ,
गैरों के दुःख को
बाँटते सदा देखा .
मैं भी पापा
आपकी तरह
अपने से ज्यादा
दूसरों के दुःख जीती हूँ ,
उन्हें देकर हंसी
खुद सुकून से सोती हूँ .
आपकी बेटी हूँ न .