हमे बचपण से ही सिखाया जाता हे के हमे किसीना किसी कि याने कोई व्यक्ती अगर परेशान हो तो उसकी मदत करनी चाहिए. लेकिन हम सब आज हमारे जीवन मे इतने व्यस्थ हो गये हे के हमे किसीका ही दुःख दर्द, परेशानी तक्लिफ दिखाई नहीं देती है. कभी कभी तो हम किसी को परेशानी मे देखकर भी उस व्यक्ती कि मदत नहीं करते है.पता नहीं क्यू हम ऐसी गलती कर दे ते है
लेकिन एक वक्त कि बात हे मेरी उम्र 11साल कि थी. हमारे नाना नानी का घर बम्बई (अंबरनाथ )मे था हम तीन बेहने और हमारे माता पिता हम हर साल गरमी यो की और दिवाली कि छुट्टी यो मे बम्बई (अंबरनाथ )जाते थे. बम्बई मे अंबरनाथ हे, जसे बम्बई मे डोबिवली. कल्याण, उलासनगर उसी तरह वहा अंबरनाथ है हमारे नाना नानी का घर अंबरनाथ मे था जब वहा गरमी यो कि छुट्टी मे जाते तो हमे परेशान हो जाते थे क्यूकी गर्मी यो मे बम्बई मे बहोत ही ज्यादा गर्मी होती हे. हमारा गाव शहर धुलिया का था वहा का माहोल और बम्बई का माहोल बहोत ही अलग था हमारे मौसी के लडके लडकी या वहा कि ही थी. वहा भाषा और हमारी भाषा मे अंतर था वहा के कपडे पेहनेने मे और हमारे कपडे पहनेने मे अंतर था. हमारे मोसेरे भाई बहेन हमारे मजाक उडाते थे. हम हमेशा बम्बई प्राव्हेट बस से ही जाते थे. क्यूकी हमे लोकल ट्रेन से सफर कारना नहीं आता था . क्यूकी लोकल ट्रेन बहोत ही जल्दी शुरु हो जाती हे. बहोत जल्दी जल्दी उसमे चढना पडता हे इसलिये. मेरी माता जी को सास कि दीकत थी इसलिये यो जल्दी जल्दी कुछ काम नहीं कर पाती थी. और तीन बच्चो को लेकरं लोकल ट्रेन से सफर करना बहोत परेशानी होती थी इसलिये हम हमेशा प्रायव्हेट बस से ही सफर करते थे.
लेकिन एक रात अचानक फोन आया के हमारे नाना जी अब इस दुनिया मे नहीं रहे.उस वक्त बहोत रात हो चुकी थी और हमे कोई प्रायव्हे बस नहीं मिल रही थी प्रायव्हेट बस रात मे ही चलती हे. इस कारण हमे सुबह ट्रेन से बम्बई जाना पडा. हम ट्रेन से जाणे के लिये निकल गये. हम कल्याण तक तो आराम से पोहोच गये लेकिन अब कल्याण से लोकल ट्रेन से जाना था. हम सब थोडा डेरे हुए थे पहिली बार लोकल से सफर करना था और जल्दी से ट्रेनमे चढ पायेंगे ना नहीं यह परेशानी भी थी उपर से हमारे माता जी कि सास कि तक्लिफ उन्हे कोई परेशानी ना हो यह बात मन मे थी लेकिन वक्त पर सब करणा होतो हे असभव चीज भी संभव करणी होती हे.
लोकल ट्रेन आने का समय हो गया और कुछ ही समय बाद अंबरनाथ जाणे कि लोकल ट्रेन आ गई. लोकल मे बहोत भीड होती हे उस वक्ती भी बहोत भीड थी. भीड देखकर हमे समज नहीं आ रहा था के कोनसे डिब्बे मे चढे तभी हमारे पिताजी जहाँ कम भीड थी उस डिब्बे मे हम सब चढ गये. और लोकल ट्रेन चालणे लगी अचानक हमारी नजर ट्रेन मे बेठे हुए यात्री यो के उपर पडी और हम सब परेशान हो गये. क्यूकी वह डिब्बा नेत्रहीन और अपग वक्ती यो के लिए था. हमे लगा के उन्हे अगर पता चला तो यो हमे अगले स्टेशनं पर उतार देग और गलत डिब्बे me चढणे पर हमे दंड भी देंगे.
हम बहोत ही डरे हुये थे. हम चुपचाप खडे थे लेकिन वह केहते हे ना भगवान अगर कोई एक कमी करता हे तो उसके बदले उसे और चीज दे देता हे. उसी तरह वह नेत्रहीन वक्ती यो को पता चल गया के हम अपग या नेत्रहीन नहीं हे. उन लोगो ने हमसे पूछा आपको कहा जाना हे और हमने उन्हे हमारी मजबुरी बताई एक वक्ती ने कहा के चिंता मत करो अंबरनाथ आने पर हम आपको बता देंगे आप लोग आराम से बेट्ठे 😊😊😊 उस वक्त उन अपग और नेत्रहीन वक्ती यो ने हमारी मदत कि हमे स्टेशन आने पर उतार दिया. अगर अपग और नेत्रहीन लोग हम जेसे लोगो कि मदत कर सकते हे तो हम क्यू किसी कि मदत नहीं करते हमे भी सबकी मदत करणी चाहिए
धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏