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पैसे गायब हो गये ....

18 मई 2022

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       काॅलेज के टाइम की बात है। जब मैं बी.काॅम. द्वितीय वर्ष में पढ़ती थी। एक दिन मैं और मेरी सहेली कविता फ्री लेक्चर में कालेज के बगीचे में बैठे बातें कर रहे थे। बातों बातों में उसने कहा कि यार भूख लगी है कुछ खाने को है क्या....?
मैंने कहा " नहीं यार आज मैं टिफ़िन नहीं लाई।"
"अरे यार अब क्या करें ?" उसने कहा ।
"चल रैस्टोरेंट चलते हैं, डोसा खाकर आते हैं।" मेंने चहकते हुए कहा।
उसने कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है। मेंने कहा "कि अरे मेरे पास हैं न, चल चलते हैं।" और हम दोनों ने अपने -अपने बैग उठाकर कंधे पर लटकाए और रैस्टोरेंट की तरफ चल दिये। 

         वहां पहुंचे और जाकर एक टेबल पर अपनी -अपनी कुर्सी खिसकाकर बैठ गए। वेटर के आते ही दो डोसा ऑर्डर कर दिए, और बेसब्री से इंतजार करने लगे।
             थोड़ी देर बाद डोसा सामने आते ही कविता खुश होकर बोली "भई वाह..... यार आज तो तेरी वजह से मजा आ गया। "
"चल अब ज्यादा मक्खन मत लगा, वर्ना मक्खन के पैसे भी मुझे देने पड़ेंगे।" मैंने इतराते हुए कहा।

हम दोनों डोसा खाने लगे । थोड़ी देर बाद वेटर बिल लेकर आया, और मेने पैसे निकालने के लिए बैग की जेब में हाथ डाला।
" अरे यह क्या? " मेंने चौंकते हुए कहा
"क्या हुआ?" उसने आश्चर्य से पूछा।
"पैसे नहीं मिल रहे हैं ।" मेंने कहा।
" अरे यार ,मजाक मत कर।" उसने कहा।
" नहीं,नहीं मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, पैसे सच में नहीं मिल रहे हैं। " मेंने बैग को अच्छे से टटोलते हुए कहा ।
"ऐसा मत कह यार,अब क्या करें ? तू ठीक से देख "। उसने घबड़ाहट में कहा।
हां -हां  देखती हूँ कहते हुए मेंने अंदर ही अंदर पूरा बैग टटोल लिया लेकिन पैसे नहीं मिले।
मेरे चेहरे का तो रंग ही उड़ गया। मैंने उससे पूछा कि तेरे पास नहीं हैं क्या?
" नहीं, मेंने तो तुझे पहले ही बोला था। "उसने कहा।
अब क्या होगा मैं डरने लगी।मैंने कई बार बैग को टटोला लेकिन पैसे उसमें नहीं थे।
"ये तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई यार अब क्या करें "
उसने कहा।
" अब क्या। ।अब तो रैस्टोरेंट में बर्तन साफ करने पडेंगे। "मेने  कहा।
" क्या  ?? ये सब तेरी वजह से हुआ है। " उसने गुस्से से कहा।
"अच्छा अभी तो बड़ी खुश हो रही थी कि तेरी वजह से मजा आ गया और अब। " मेंने झुंझलाकर  कहा।

अब हम दोनों चुपचाप बैठ गए ।थोड़ी देर सोचने के बाद  मेंने कहा अब एक ही ऑप्शन है, मैं मेरी घड़ी रैस्टोरेंट के मालिक को दे दूँगी और कह देगें कि हमारे पास अभी पैसे नहीं है आप ये घड़ी रख लो और कल हम आकर पैसे दे जाएंगे और घड़ी ले जाएंगे।
उसने कहा " हाँ चल उससे बात करते हैं। "

       हम दोनों डरते डरते लेकिन चेहरे पर बनावटी मुस्कुराहट लिए आगे बढ़ रहे थे। मन ही मन डर लग रहा था कि उसने अगर मना कर दिया तो क्या करेंगे।
हम आगे बढ़ रहे थे कि अचानक मेरी नजर एक टेबल पर पड़ी।

"कुसुम!! अरे ये तो कुसुम है  " मैं लगभग उछलते हुए बोली। कुसुम मेरी अच्छी सहेली थी उसे देखकर मुझे आशा की किरण दिखाई दी। मेरी आंखों में चमक आ गई। मैं जल्दी से उसके पास गई और उससे पूछा कि तेरे पास एक्सट्रा पैसे हैं क्या? और उसे पूरी बात बताई। उसने कहा "देखती हूँ। "
शुक्र है उसके पास उस समय उतने पैसे थे। उसने मुझे पैसे दे दिये ।
            मेरी जान में जान आई। ऐसा लगा जैसे फांसी पर लटकने वाले कैदी को बस लटकाने के एक मिनट पहले उसकी फांसी कैंसल होने का ऑर्डर आया हो।
             अब मेरे कदम कुछ तेजी से काउंटर की तरफ बढ रहे थे और चेहरे पर बनावटी नहीं असली मुस्कुराहट थी। मैंने काउंटर पर पैसे दिए और घर आ गई।
      घर पर मम्मी पापा को सब कुछ बताते हुए मुझे रोना आ गया। उन्होंने समझाया कि तुम्हें रैस्टोरेंट जाने के पहले अपना बैग चैक करना चाहिए था। अब जो हुआ सो हुआ आगे से ध्यान रखना। लेकिन मैं यह सोच रही थी कि मेरे पास तो पैसे थे फिर कहा चले गए। मैंने बैग से पूरा सामान निकाल कर उसको उल्टा पुल्टा करके देखा। पैसे नहीं थे लेकिन मैंने गौर किया कि बैग को उल्टा पुल्टा करते टाइम कुछ आवाज आ रही थी। अच्छे से चैक किया तो देखा कि बैग के अस्तर में एक छोटा सा छेद था। मेंने उसे थोड़ा और फाड़ा तो देखा कि बैग के अस्तर और ऊपर के कपड़े के बीच में कुछ पैसे, कुछ सिक्के थे।
"अरे पैसे यहाँ छिपे हैं।"
" वही तो मैं कह रही थी कि पैसे थे मेरे पास। "


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