त्योहार आते हैं और यादें पीछे छोड़ जाते हैं । कभी खुशियों की सौगात दे जाते हैं तो कभी दुखद अनुभव दिला जाते हैं।
कुछ साल पहले की बात है मैं मेरे दोनों बच्चों सहित दिवाली पर मायके गई थी मम्मी पापा, भैया ,भाभी भतीजों के साथ दिवाली का त्यौहार खूब उल्लास से मनाया खूब मिठाई खाई और पटाखे भी चलाएं ।
भाई दूज का दिन था सुबह का टाइम था। सभी अपने कामों में व्यस्त थे। तभी मेरा छोटा भतीजा जो की छत पर खेल रहा था सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर खड़ा हुआ एक हाथ में दूसरे हाथ को पकड़े हुए रो रहा था उसकी उंगलियों से खून टपक रहा था।
मैं तो देख कर घबरा गई और चिल्ला कर भैया को बुलाया । भैया ने कपड़े से उसके हाथ को बांधा और बाइक से तुरंत उसे हॉस्पिटल ले गए ।
हम भी पीछे-पीछे हॉस्पिटल पहुंचे। खून अभी भी बंद नहीं हुआ था । डॉक्टर ने इलाज किया और एक दिन के लिए हॉस्पिटल में ही रखा।
जब थोड़ा आराम मिला तब उससे पूछा कि यह चोट कैसे लगी तो उसने बताया कि चले हुए पटाखों में से उसने बिना चले पटाखों को इकट्ठा करके उसकी बारूद निकाल ली और पेपर में लपेट ली और पेपर को रेजर की पाइप में फंसा दिया और जैसे ही उसमें आग लगाई तेजी से बारूद फटी और उसके हाथ में रेजर का पाइप फट गया । (रेजर पीतल की थी) । जिसके कारण उसका हाथ जल गया ।
उसकी उंगलियों के पोरों के जलने से खून टपक रहा था । अंगूठे का नाखून तो गायब ही हो गया था ।
एक हाथ से दूसरे हाथ को पकड़े हुए उंगलियों से टपकते हुए खून वाला सीन आज भी मेरी आंखों के सामने तैर जाता है ।
हर साल दिवाली पर मैं यह घटना अपने बच्चों को सुनाती हूं और उन्हें समझाती हूं कि पटाखे सावधानी से चलाना और कोई नया एक्सपेरिमेंट तो बिल्कुल भी मत करना।