नानी नानी कहानी सुनाओ ।"
मेने अपनी नानी से कहा।
"अरे!!अबैं नईं। अबैं तो दिन है। रात कों सुनाएंगे। "
नानी ने मुझे समझाते हुए कहा।
"अभी ही सुना दो ना "
मेने नानी से जिद की ।
"अरे!!अबैं नईं दिन में किस्सा सुनात हैं तो मामा गैल भूल जाएंगे। " नानी बोली।
"ऐसे कैसे मामा गैल भूल जाएंगे " मेने कहा
"भूल जाते हैं। " नानी बोलीं ।
"तो फिर ठीक है। रात में सुनाना। लेकिन वही वाली डाकू गब्बर सिंह की। " मेने कहा ।
"ठीक है। " नानी बोलीं।
और मैं रात होने का बेसब्री से इंतजार करने लगी। मैं अक्सर नानी से कहानियां सुनती थी।और नानी भी मुझे कई पौराणिक कथाओं को सुनाया करतीं थीं।
हमारा ममाना ( मामा का घर ) भिंड जिले के एक गांव में है। वहां से चंबल का बैहड पास में ही था।अक्सर वहां डाकू छिपते छिपाते आया करते थे। नानी हमें बताती थी कि उन्होंने डाकू गब्बर सिंह को (असली गब्बर सिंह शोले फिल्म वाला नहीं ) कई बार देखा था। वह गाँव में आया जाया करता था।
रात को नानी ने कहा "तो कोनसो किस्सा सुनाऐ।"
मेने कहा " डाकू गब्बर सिंह का।"
नानी अपने पोपले मुँह को कुछ अजीब सा बनाते हुए बोलीं
"बा नासमिटे को का किस्सा सुनाऊँ। कछु और सुनाऐ देत हूँ। "
मेने कहा " नहीं नानी मुझे तो वही सुनना है। "
तो नानी ने बताना शुरू किया ।
तो सुन बेटा वो कारे कपडा पहनतो। खूब हट्टो-कट्टो। संग में एक बन्दूक और गोलियों को पट्टो।
नार ( गले ) में माता की पुतरिया सोने की।
संग में ओरऊ सब जने भी कारे कपडा पहनते थे।
जबहूँ गाँव में आतो। हम सिब तो डर के मारे घर में घुसके किबाड लगा लेते। तो नासमिटे किबाड को बन्दूक से ठोकते।
घरन में दूध , घी नहीं बचन देतए। सब ले जातऐ। और चीज ( जेबर ) छुड़ाए ले जाते। कोऊ डर के मारे बोलतो नहीं हतो। बहुटियन ( औरतों )और बच्चों को हाथ नहीं लगाते।
बा साल जब मरो हतो तब एक बेर गाँव में आओ हतो। तो कह रहो थो इस बार अगर बच गओ तो जा गाँव में बहुत बडी जग्ग कराओगो।
एक बेर जब रात को भडिया ( डाकू ) आ गए । मेने अपनी पूरी चीज भैंस बधती तहा भैंस के खरोंटे के नीचे दुबकाए के धर दई। पर करम फूटे मेरे वो बा रात वई उसारे (झौपडी ) मे डेरा जमाय लओ।कहीं से लूट करकें लाऐ हते। पहले तो बिन्ने घरन से दूध घी मगाओ। और रोटी बनबाईं। फिर खाए पी के लूट का माल को आपस में बाँटन लगे। इतने में वई खरोंटे से टिक गओ एक जनो कोऊ, तो खरोंटो सरक गओ। और मेरी चीज निकर परी। बड़े खुश है गऐ।बोले देखो माया तो हमें घेरती ही आ रही है।
मैं और तेरे नन्नू ( नाना ) दुबक कै सब सुन रहे हते। भजिकें गये गाँव से कछु लोगन को बुलाय लाऐ। बिन्हे सिबरी बातें बताईं। सिबन्न ने भडियन से हाथ जोरकर अर्ज करी। बिन्हे दया आऐ गई और कहा अबैं हमने पूरे माल में नहीं मिलाई थी तासों दहें देते हैं। अगर माल में मिल जाती तो कतई नहीं देते। बिन्हे मेरी चीज दै दई ।
कबहुँ कबहुँ तो भलो भी कर देत हते। जब मरो हतो तब कछु दिन पहले गाँव में आओ हतो। एक खेत में फसल में दुबके हते सब ।पुलिस ढूंढ रही हती। कोई पकड ( किडनैप ) करके लाऐ हते दो लडकन को। तबईं से पुलिस बिनके पीछे लग गई थी। खेत में से एक आदमी सादा कपडन में गाँव में आओ हतो और रोटी बनबाईं के डलिया में रखकें मूड पै धरें खेत पै जाए रहो हतो। तो एक पुलिस वाले ने देख लओ वो भी सादे कपडन में हतो ।बाने रोक कै पूछी डलिया में का है। तो वो बोलो रोटी हैं। पुलिस वाले ने कहा कि कहाँ ले जाये रहे हो।तो वो आदमी बोलो कि फलां खेत पै मजूर काम कर रहे हैं भहीं पै।
पुलिस वाले को शक है गओ। वो दुबक दुबक कर पीछे चल पडो। बाने सबन को बताय दई।और घेरा डाल लओ। फिर का है दोऊ तरफ से गोलियां चलीं। लेकिन फिर बे तो भग गय । और चंबल की घाटी में जाइके दुबक गए। पुलिस ने चारों तरफ से घेरा डाल लओ फिर दोऊ तरफ से गोलियां चलीं। डाकू घाटी में नीचे की तरफ खाई मे हते और पुलिस वाले ऊपर। और बिचारे को गोली लग गई और मर गयो।
तो यह थी डाकू गब्बर सिंह के जीवन की कुछ झलकियां जो मेरी नानी ने मुझे सुनाई थीं ।और मेने उन्हीं के अंदाज में आपको बताया।