बात उस समय की है जब मैं बीकॉम प्रथम वर्ष में पढ़ रही थी ।एक दिन मैं बाजार से मिट्टी की एक गुल्लक ले आई ।मैं उसमें बचत के पैसे डाल देती थी। जब कोई मेहमान घर में आता तो कुछ ना कुछ पैसे देके जाता था ।उन पैसों को मैं गुल्लक में डाल देती ।कभी-कभी मम्मी से ले लेती तो कभी पापा से। और कभी बड़े भाइयों से पैसे ले लेकर मैं गुल्लक में डालती जाती थी ।पापा कई बार उसमें इकट्ठे पांच सौ कभी हजार रुपये डाल देते थे। मैं कॉलेज टैंपू से जाती थी । कभी-कभी मम्मी व्यस्त होती थी तो किराय के लिए पैसे नहीं दे पाती थी। कभी मेरे पास कुछ पैसे नहीं होते तो मुझे कुछ खरीदना होता या बाहर कुछ खाना होता ।मुझे पैसे की जरूरत पडती।
एक दिन मेरे दिमाग में आइडिया आया।मुझे पैसों की जरूरत थी मेने छोटी चिमटी से गुल्लक से पैसे खींचकर निकाल लिये ।अब तो मुझे जब भी जरूरत पडती मैं ऐसे ही पैसे निकाल लेती थी।
ऐसा करते करते कुछ महीने बीत गए गुल्लक में पैसे जाते भी थे और मेरे द्वारा निकाले भी जाते थे।
ऐसा करते समय मैं अपने मन को समझा लेती थी की अपना पैसा निकालना कोई चोरी थोड़ी कहलाती है और बस जब भी जरूरत पड़ती मैं पैसे निकाल लेती थी एक दिन पापा ने कहा चलो गुल्लक तोड़ते हैं देखते हैं उसमें कितने पैसे जमा हो गए हैं। मैंने सोचा आज तो पकड़े गए और जब गुल्लक तोड़ी तो उसमें इतने कम पैसे देख कर पापा हैरान थे। और मैं बगले झांक रही थी बाद में मैंने सारी बात पापा मम्मी को बताई। अब वो क्या ही कहते।
उस दिन के बाद मेने कभी गुल्लक में बचत नहीं की।