पंचगव्य | Panchgavya |
आखिर पंचगव्य क्या है ? आज जान ही लेते हैं
एलोपैथिक तीव्र औषधियाँ एक बीमारी हटाकर दूसरी पैदा करती हैं। अनेक औषधियाँ रिएक्शन करती हैं, परंतु 'पंचगव्य' अर्थात ― गो मूत्र, गोबर, दूध, दही तथा घी को एक सुनिश्चित अनुपात में मिलाकर औषधि के रूप में सेवन किया जाय तो लाभ-ही-लाभ होता है, कोई रिएक्शन नहीं होता। पञ्चगव्य एक सशक्त टॉनिक है।
"स्वस्थसमृद्धवैदिक भारत निर्माण के प्रयास में आप सभी के सहयोग,आशीर्वाद,मार्गदर्शन का अभिलाषी।आप सब से नम्र निवेद है कि महान क्रांतिकारी श्री राजीव दीक्षित जी के अद्वित्य व्याख्यानों को जीवन में अवश्य सुनें वन्देमातरम् जय हिंद।
सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं,उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।
वेद विहित कार्य धर्म है,उसके विपरीत कार्य अधर्म है।
पंचगव्य बनाने की विधि :
छाना हुआ गोमूत्र ५ चम्मच, कपड़े में रखकर निचोड़ा गया गोमय-रस १ चम्मच, गोदुग्ध २ चम्मच, गो-दधि १ चम्मच, गोघृत १ चम्मच, शुद्ध मधु २ चम्मच-इन छहों वस्तुओं को चाँदी अथवा काँच की कटोरी में रखकर मिलायें;आपका दिव्य पंचगव्य तैयार है।*
पंचगव्य कैसे सेवन करें :
*प्रातः मुखशुद्धि के पश्चात् थोड़ा जल पीकर पञ्चगव्य(पंचगव्य) धीरे-धीरे पीना चाहिये। आदत लगाने से यह जलपान की तरह आपको सबल बनायेगा। जाड़े में पञ्चगव्य की मात्रा बढ़ा देने से आपको जलपान करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। पञ्चगव्य आरम्भ करने के पूर्व एक सप्ताह तक त्रिफला, गोमूत्र अथवा गर्म दूध में घृत डालकर पेट साफ कर लें। ऐसा करने से पञ्चगव्य का सेवन अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।*
पंचगव्य के अद्वित्य अद्धभुत चमत्कारी फायदे व उपयोग :
*१.)- गर्भवती माताओं को आप विटामिन कैप्सूल खिलाते हैं। यह कैप्सूल गर्भवती का वजन बढ़ाता है, बच्चे को लाभ नहीं पहुँचाता। परंतु 'पञ्चगव्य गर्भस्थ बच्चे को पुष्ट करेगा'। सामान्य प्रसव(नॉर्मल डिलेवरी) होगी। जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ रहेंगे। प्रसव के बाद पञ्चगव्य में घृत की मात्रा बढ़ा दें, शरीर की निर्बलता जल्दी हटेगी। शीतकाल में गोदुग्ध में किशमिश-खजूर को कूटकर मिला दें। पुरुषों को शक्तिदाता तथा माताओं को पुष्टिकारक टॉनिक (विटामिन बी १२) मिलेगा।*
*२.)- पञ्चगव्य में भी गोमूत्र महाऔषधि(महौषधि) है। गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नेशियम, फॉस्फेट, पोटाश, अमोनिया, क्रिएटिनिन, नाइट्रोजन, लैक्टोज, हार्मोन्स (पाचक रस) तथा अनेक प्राकृतिक लवण पाये जाते हैं, जो मानव-शरीर की शुद्धि तथा पोषण करते हैं।*
*३.)- दन्तरोग में गोमूत्र का कुल्ला करने से दाँत का दर्द ठीक होना सिद्ध करता है कि उसमें कार्बोलिक एसिड समाविष्ट है।*
*४.)- बच्चों के सुखंडी रोग में गोमूत्र में विद्यमान कैल्सियम हड्डियों को सबल बनाता है।*
*५.)- गोमूत्र का लैक्टोज बच्चों-बूढ़ों को प्रोटीन प्रदान करता है। हृदय की पेशियों को टोन-अप करता है। वृद्धावस्था में दिमाग को कमजोर नहीं होने देता। महिलाओं के हिस्टीरिया जनित मानस-रोगों को रोकता है। सिफलिसगोनोरिया-जैसे यौन रोगों को मिटाता है।*
*६.)- खाली पेट आधा कप गोमूत्र पिलाने से यौन रोग नष्ट हो जाते हैं। यदि गोमूत्र में अमृता (गुडूची) अथवा शारिवा (अनन्तमूल)-का रस अथवा ५ ग्राम सूखा चूर्ण मिला दिया जाय तो बीमारी शीघ्र ठीक हो जाती है।*
*७.)- मायोसिन, साइक्लिन-जैसी शक्तिशाली दवा से ठीक हुआ यौन रोग लौटकर आ सकता है, परंतु गोमूत्र से ठीक किया गया यौन रोग कभी नहीं लौटता।*
*८.)- गोमूत्र का कार्बोलिक एसिड अस्थिस्थित मज्जा एवं वीर्य को परिष्कृत कर देता है। नि:संतान को संतान देता है। अनेक रोगी इसके प्रमाण हैं। एक नवयुवक यौन रोगग्रस्त युवती के सम्पर्क में आ गया। दोनों मेरे पास आये। "मैंने गोमूत्र में टिंचर कार्डम् (दालचीनी का तेल) मिलाकर एक वर्ष तक पिलाया, दोनों को आशातीत लाभ हुआ।" गोमूत्र में मधु मिलाकर युवती का उपचार किया गया। इस चिकित्सा से लाभ हुआ। डिस्टिल वाटर में गोमूत्र मिलाकर एनिमा भी लगाया गया। दोनों ठीक हो गये। कालान्तर में नवयुवक का विवाह हुआ,उसे स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। मैंने इसे परमात्मा का दिया हुआ आशीर्वाद समझा।*
*९.) -बच्चों की सूत्र-कृमि ( शेड वर्म)―आधा औंस गोमूत्र में २ चम्मच मधु मिलाकर पिलाने से बच्चों के पेट के कृमि(कीड़े) नष्ट होते हैं। शुद्ध मधु न मिले तो सुरक्ता अथवा साफी १ चम्मच मिलाकर गोमूत्र पिलायें। एक सप्ताह में गोमूत्र पेट के कृमि को निकाल कर बच्चे को स्वस्थ बना देगा।*
*१०.)-टॉनिक के रूप में गोमूत्र तथा मधु पिलाने से उसके अर्थात बच्चे के सभी रोग नष्ट हो जायेंगें और बच्चा सदा स्वस्थ रहेगा।*
*११.)- गैस्ट्रिक ― पावरोटी, बिस्किट, पकौड़े, फास्टफूड खिलाने से पेट दर्द, गैस, खट्टी डकार तथा अम्लपित्त जैसे रोग बहुत प्रचलित हैं। डॉक्टर गोलियाँ तथा मिक्स्चर देते हैं, परंतु रोग स्थायी हो जाता है। पक्वाशय (ड्यूडनम)-की सूजन के कारण अल्सर होने पर ऑपरेशन होता है। यदि आरम्भ में ही गोमूत्र का सेवन कराया जाय तो पाचनतन्त्र धीरे-धीरे सबल बन जायेेगा और रोगमुक्ति अवश्य मिलेगी।*
*१२.)- यदि गैस पीडित को खट्टी उलटी हो तो उसे "अविपत्तिकर चूर्ण" मिलाकर गोमूत्र का सेवन कराना चाहिये। गोमूत्र-सार अथवा गोमूत्र-क्षारवटी गोघृत में मिलाकर भोजन से पहले सेवन कराना चाहिये। गर्मी के मौसम में गोमूत्र-वटी ग्लूकोज(मिश्री का शरबत भी चल सकता है) के शरबत से लें, जाड़े में मधु मिलाकर सेवन करें।*
*पेप्टिक अल्सर हो तो आरोग्यवर्धिनी दो गोली जल से खिलाकर आधा घंटा पश्चात् गोमूत्र पिलायें। मैंने पेट के रोगियों को ऑपरेशन के बाद भी गोमूत्र पिलाया है। लंबे समय तक गोमूत्र का सेवन पेट की समस्त बीमारियों को ठीक कर देता है।*
*१३.)- जुकाम, सर्दी, साँस फूलना, दमा ―*
*तवे को खूब गर्म करके, फिटकरी तोड़कर गर्म तवे पर डालकर उसका जलीय अंश सुखा दें। चाकू से खुरचकर सफेद पाउडर शीशी में सुरक्षित रखें। इसे आयुर्वेद में टंकण (बालसुधा) कहते हैं। आधा कप गोमूत्र में चौथाई चम्मच बालसुधा मिलाकर खाली पेट पीने से पुराना जुकाम अवश्य ठीक होगा।*
*१४.)- दमा―दमा के पुराने रोगियों को गोमूत्रमें अडूसा (वासाचूर्ण) ५ ग्राम मिलाकर पिलायें।*
*दमा के रोग में चावल, आलू, चीनी, उड़द की दाल, दही, मांसाहार तथा धूम्रपान न करें।*
*शक्ति प्रदान करने के लिये सीतोपलादि चूर्ण, च्यवनप्राश, वासावलेह,मधु मिलाकर दें, परंतु गोमूत्र भी दोनों समय पिलायें।*
*१५.)- डिप्थीरिया (डब्बा रोग) ―*
*इस रोग में दो ग्राम बालसुधा मिलाकर गोमूत्र एक एक घंटे पर पिलायें। डीप्थीरियाका इंजेक्शन तभी लगायें, जब साँस तथा भोजन की नली सिकुड़ गयी हो।*
*गोमूत्र में सरसों के तेल की दो बूंद मिलाकर नाक में टपकावें। बंद नाक खुल जायगी। रोगी आराम से साँस लेने लगेगा।*
*१६.)-गोमूत्र में गोघृत तथा शुद्ध कर्पूर(भीमसेनी कपूर) मिलाकर कपड़ा तर करके सीने पर रखें सीने(छाती) में भरा कफ पिघलकर निकल जायगा।*
*१७.)- वातरोग ― घुटने, कुहनियों, पैर की पिण्डलियों में साइटिका रोग होने पर, मांसपेशियों में दर्द, सूजन होने पर गोमूत्र से बढ़कर दूसरी कोई औषधि नहीं है। संधिवात,हड़फूटन, रूमेटिक फीवर तथा आर्थराइटिस में सभी दवाइयाँ फेल हो जाती हैं। ''अस्सी प्रकार के वातरोगों की एकमात्र औषधि गोमूत्र है।"*
*_आधा कप गोमूत्र में शुद्ध शिलाजीत २ ग्राम, रास्त्रादि क्वाथ, रास्नादि चूर्ण, सोंठ चूर्ण, शुद्ध गुग्गुल अथवा महायोगराज गुग्गुल दो गोली मिलाकर पिलायें।*
*१८.)- कब्ज होने पर सप्ताह में एक दिन गोमूत्र में शुद्ध एरंडतेल (कैस्टर ऑयल) मिलाकर पिलायें।*
*१९.)- हाथ-पैर की अँगुलियों में टेढ़ापन आ जाय तो स्वर्णयुक्त महायोगराज गुग्गुल तथा स्वर्णयुक्त चन्द्रप्रभावटी के साथ गोमूत्र का सेवन करायें। चुम्बक-चिकित्सा इस रोग में लाभकारी है। महानारायण तेल, सरसों के तेल में अफीम गलाकर मालिश करें। धतूरा, आक अथवा एरंड के पत्तों में तेल चुपड़कर रात में पट्टी बाँध दें आराम मिलेगा।*
*२०.)-मधुमेह ―*
*डायबिटीज-शक्कर (चीनी)--की बीमारी अनेक बार चाय तथा कॉफी पीने एवं पेनक्रियाज की कमजोरी से होती है। बीमारी का पता लगते ही चावल, आलू, चीनी, गुड़, मिठाई, मांसाहार बंद कर दें।*
*सुबह खाली पेट स्वर्णयुक्त चन्द्रप्रभावटी दो गोली चबाकर गरम जल तथा एक घंटे के बाद ताजा गोमूत्र पिलायें।*
*संध्याकाल का नाश्ता और चाय बंद करके शिलाजीत कैप्सूल खिलाकर गोमूत्र पिलायें।*
*मेथी चूर्ण एक चम्मच जलके साथ दें।*
*_जामुन के हरे पत्ते पाँच, नीम के पत्ते दस तथा बेलपत्र पाँच, आम के पीले या हरे पत्ते पाँच पीसकर रस निकालें, इसी रस के साथ शिलाजीत कैप्सूल का प्रयोग करें।*
*ब्लड-शुगर अधिक बढ़ा हुआ हो तो स्वर्ण-वसंतकुसुमाकर दोनों समय गोमूत्र के साथ दें।*
*डायबिटीज के कारण गुर्दे, लीवर तथा हार्ट कमजोर हो जाते हैं जिन्हें केवल गोमूत्र और शिलाजीत ही ठीक कर सकेगा।*
*२१.)- कब्ज―*
*पेट में शुष्क मल का जमा होना सभी रोगों को बढ़ाता है। गोमूत्र 'पेशाब तथा क़ब्ज़' दोनों का खुलासा करता है। क़ब्ज़ में गोमूत्र दोनों समय पिलायें।*
*शाम को त्रिफला चूर्ण गर्म पानी से दें फिर गोमूत्र पिलायें। गोमूत्र में एरंड का तेल अथवा बादाम रोगन दो चम्मच मिलाकर सेवन कराने से दस्त साफ होगा।*
*गाय के गरम दूध में एक चम्मच गाय का शुद्ध घृत मिलाकर पिलाने से गर्भवती महिलाओं को क़ब्ज़ नहीं रहेगा।*
*२२.)- यकृत्-रोग ―*
*मलेरिया के कारण तिल्ली (स्प्लीन) बढ़ जाती है। शराब पीने तथा मांस खाने से यकृत् निष्क्रिय होकर जांडिस-पीलिया और अन्त में कामला रोग हो जाता है। खून में हीमोग्लोबीन की कमी से पेशाब पीला हो जाता है तथा आँखें पीली हो जाती हैं। इस बीमारी में...,*
*खाली पेट गोमूत्र पिलायें।*
*पुनर्नवा (साँटरक्त पुनर्नवा)-को पीसकर पचीस ग्राम रस में पचास ग्राम ताजा गोमूत्र मिलाकर पिलायें।पुनर्नवा का चूर्ण पाँच ग्राम रस नहीं मिलने पर मिलायें।*
*भोजन के बाद पुनर्नवारिष्ट पिलायें।*
*अधिक दुर्बलता में पुनर्नवा मंडूर पाँच ग्राम मधु में मिलाकर चटायें। एक घंटा के पश्चात् गोमूत्र पिलायें।*
*२३.)- पाचनतन्त्र के रोग ―*
*ग्वार पाठा (घृतकुमारी) के पचीस ग्राम रस में पचास ग्राम गोमूत्र मिलाकर पिलाने से पाचनतन्त्र के सभी अवयव रोगमुक्त हो जाते हैं।*
*_दो ग्राम अजवायन का चूर्ण अथवा जायफल घिसकर गोमूत्र में मिलाकर पिलाने से पेटका दर्द, मरोड़, आँव, भूख की कमी निश्चित दूर हो जायगी।*
*२४.) -बवासीर ―*
*खूनी तथा बादी दोनों बवासीर (पाइल्स) गोमूत्र पीने से ठीक होते हैं। शाम को खाली पेट गोमूत्र में दो ग्राम कलमी शोरा घोलकर पिलायें। क़ब्ज़ की स्थिति में त्रिफला चूर्ण मिलाकर गोमूत्र पिलायें।*
*२५.)- जलोदर ―*
*जलोदर में दो ग्राम यवक्षार मिलाकर गोमूत्र पान करना चाहिये।*
*अन्न खाना बंद कर दें। फलों तथा सब्जियों का रस पिलायें। दूध भी दे सकते हैं।*
*२६.)- खाज, खुजली, एग्जिमा, सफेद दाग, कुष्ठ रोग ―*
*खाज, खुजली, एग्जिमा, सफेद दाग, कुष्ठ-रोग में दोनों समय गोमूत्र पिलायें।*
*गिलोय (अमृता, गुडूची) के रस में गोमूत्र मिलाकर पिलाने से शीघ्र लाभ होता है।*
*_चाल मोगरा का तेल गोमूत्र में मिलाकर चमड़ी पर मालिश करें।*
*२७.)- हृदयरोग ―*
*गोमूत्र पीने से खून में थक्के नहीं जमते। हाई एवं लो ब्लडप्रेशर में गोमूत्र का लैक्टोज असर करता है।*
*हृदय रोग में गोमूत्र अच्छा टॉनिक है। यह सिराओं और धमनियों में कोलेस्टेरॉल को जमने नहीं देता।*
*१० ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण गोमूत्र में मिलाकर पिलायें।*
*_अर्जुन छाल की चाय बनाकर पिलाने से भी बहुत लाभ होता है। मिठास के लिये चीनी के स्थान पर किशमिश ,खजूर, सेब का रस व्यवहार में लायें।*
*२८.)-हाथी पाँव (फीलपाँव/फाइलेरिया)―*
*सौ ग्राम गोमूत्र में हल्दी चूर्ण पाँच ग्राम, मधु अथवा पुराना गुड़ मिलाकर पिलायें।*
*फाइलेरिया में अण्डकोष, हाथ की नसों में सूजन आ जाती है। सुबह-शाम दोनों समय नित्यानन्द रस दो-दो गोली गरम पानी से खिलाकर आधा घंटा के बाद गोमूत्र पिलायें।*
*क़ब्ज़ में एरंड का तेल मिलाकर गोमूत्र पिलायें।*
*चाय, कॉफी, चॉकलेट, मांसाहार तथा धूम्रपान बंद कर दें।*
*२९.)- गुर्दा रोग ―*
*गुर्दा(किडनी) मानव के रक्त से अशुद्धियों को छानकर मूत्र द्वारा शरीर का विष निकालती है। किडनी फेल होने पर इसका प्रत्यारोपण होता है। डायलिसिस एक महँगा इलाज है।*
*जिनका गुर्दा कमजोर हो, रात में बार-बार पेशाब लगे, प्रोस्टेट ग्रन्थि बढ़ गयी हो, उन्हें नियमित गोमूत्र पीना चाहिये।*
*३०.)-गोमूत्र से बढ़कर कोई औषधि नहीं है।*
बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक बिना किसी रोग के गोमूत्र पीना स्वस्थ रहने के लिये सर्वोत्तम है। गोमूत्र पीने के पश्चात् तुरंत – जल पीने से गला मीठा हो जाता है।*
(दृष्टव्य :- उपरोक्त बताये गए प्रयोग जिसमें वटियाँ, कैप्सूल,वसंतकुसुमाकर,महायोगराज गुग्गुल,शुद्ध गुग्गल,वासावलेह,नित्यानन्द रस,अविपत्तिकर चूर्ण इत्यादि डाला गया है उसके सेवन से पूर्व अपने नजदीक के आयुर्वेदिक वैध या चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें। )
*शेष प्रयोग को आप अपने बुद्धिमत्ता से उपयोग कर सकते हैं या उपचार समझ ना आने पर किसी अनुभवी वैध,चिकित्सक,भाई,बहन से परामर्श अवश्य लें
वन्देमातरम् जय हिंद जय भारत