गांव के एक छोर पर बने तालाब में कुछ 10-12 वर्ष की उम्र के लड़के जून की तपती गर्मी में, मछलियां पकड़ रहे हैं। सूर्य नारायण के कृपापात्र कुछ बड़े लड़के तो गर्मी के मारे तालाब में ही कूद गए। जोर की "छपाक" की ध्वनि ने गर्मी की नीरवता को एक हद तक भंग कर दिया है।
मछलियां पकड रहे कुछ नौजवान लड़कों ने चिल्लाकर उन्हें दूसरे छोर पर नहाने को बोला और जब तक वे दूसरी तरफ नहीं चले गए, तब तक उन्हें घूरते रहे।
तालाब के सामने आम के पेड़ों का बाग है। सफेदा, चौंसा, लालपरी, तोतापरी, फुटवा, चेपीआना, अमटिया और ना जाने क्या- क्या! हर पेड़ पर आने वाले आम की खासियत के हिसाब से देसी नाम रख लिए गए हैं। कुछ अमरूदऔर शरीफे के भी पेड़ है। नौजवान किसानों ने बादाम के भी पेड़ लगा दिए है, पर उनका अभी मौसम नहीं है।
छोटी- छोटी चार - पांच लड़कियां जो शायद 5 से 7 वर्ष की होंगी, कच्चे गिरे आम बीन रहीं है।
"ए सुनौ सब लोग! कुएं पर रहट चल रहो है, चलौ सब लोग उधरही नहाय आय।"
शोर मचाते हुए सब अपने घरों में मम्मी की परमीशन और कपड़े लेने दौड़ पड़ी। थोड़ी देर में सब कुएं के पास डब्बे से एक दूसरे के ऊपर पानी डाल-डाल कर खेल रहीं थीं।
"अरे! निया नहीं आई अबे तक, का हुई गओ?" सन्नो ने पूछा।
"ए लेओ, जे तो पता नहीं घुटना में दिमाग रखती है। निया की चौथी बहन आई है। उसकी दादी खुदही लाई भगवान से और खुदही रो रहीं है।" सिम्मी ने ज्ञान बघारा।
"निया को तो सबरो काम करने पड़े अब। बिचारी स्टापु खेलबे को भी नहीं आ पाएगी। " सब ने एक स्वर में कहा और खेलने में मस्त हो गई ।
"निया...य...य...!"
मम्मी ने झिंझोड ही दिया नयना को।
"भगवान जाने ये लड़की गुमसुम बैठी क्या सोचती रहती है। एक काम पकड़ा दो तो उसी में घुसी रहती है।"
बड़बड़ाते हुए मम्मी हाथ से चावल की थाली छीन कर ले गई और रसोई में धोने लगी। नयना जब भी अकेली बैठी होती है या कोई काम कर रही होती है, उसे हर बार बचपन की, गांव में गर्मी की छुट्टियों में बिताए दिनों की, पुरानी यादें घेर लेती है
निया ने देखा चार बजने वाले है। उसने जल्दी से कमरा ठीक किया और सारी छोटी बहनों को बुलाकर दरी पर बिठाया। तब तक ट्यूशन के और बच्चे भी आ गए तो निया पढ़ाने में व्यस्त हो गई।
निया की छोटी चार बहने हैं और पूरे मोहल्ले में उनका घर पंचकन्या के घर के नाम से मशहूर है। निया कॉलेज में फर्स्ट इयर में है और टाइपिंग शॉर्टहैंड भी सीख रहीं है।
घर में उसकी चलती है क्योंकि एक तो वह बड़ी है और ऊपर से घर खर्च में हाथ बंटाती है। बहनों को स्कूल में किसी फंक्शन में भाग लेना हो, पिकनिक पर जाना हो या कोई बुक खरीदनी हो, मम्मी-पापा का एक ही जवाब होता है कि
"दीदी से पूछ लो"।
अब निया ऊबने लगी है कभी कभी तो इतनी झुंझलाहट होती है कि 10 साल की उम्र से ही उसे बड़ा बना दिया गया, कभी बचपन जी ही नहीं पाई। अभी वह केवल 17 साल की है और दादी-अम्मा की तरह बिहेव करती है।
घर में राशन खत्म हो गया, रिश्तेदारी में शादी है क्या देना है, चद्दर फट गई है नई लेनी है कि पुरानी को सिल देना है, रिश्तेदारों को फोन करके हालचाल तो पूछ ले। बाप रे! कितनी सारी जिम्मेदारियां।
रात को पापा 11 बजे से पहले नहीं आते। मम्मी घर पर भूखी इंतजार करती रहती हैं।
निया कितना भी चिल्लाती कि तुम तो खाना का लो, वो तो एंजॉय कर रहे होंगे लेकिन उसकी सारी बातें मानने वाली मम्मी ने उसकी ये बात कभी नहीं मानी।
निया के पापा दिल के बुरे नहीं हैं। खूब मेहनत करते और अपनी हैसियत के अनुसार अपने बच्चों की फीस और किताबें आदि उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश करते। लेकिन रात को पीकर देर से घर आने और मम्मी से कलेस करने की आदत को आज तक नहीं छोड़ पाए।
निया सुबह उठी तो आंखे भारी थी, चुपचाप चाय बनाकर एक कप बिना बोले पापा के पास रखा और दूसरा कप लेकर चाय पीते पीते बैग लगा लिया।
मम्मी को बोल कर कॉलेज के लिए निकल गई। मम्मी मोनी की चोटी कर रही थी। निया से छोटी सिया और उससे छोटी सीमा तो खुद ही तैयार हो जाती है। मम्मी खाना बनाएंगी और उनको स्कूल छोड़कर भी आएंगी।
निया समझ नहीं पाती भारतीय महिलाओं की ये दार्शनिकता।
भारतीय संविधान सभी भारतीय महिलाओं को समान अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नही करने (अनुच्छेद 15(1)), अवसर की समानता (अनुच्छेद 16), समान कार्य के लिए समान वेतन (अनुच्छेद 39(घ)) की गारंटी देता है।
इसके अलावा यह महिलाओं एवं बच्चों के पक्ष में राज्य द्वारा विशेष प्रावधान बनाए जाने की अनुमति देता है (अनुच्छेद 15(3), महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का परित्याग करने (अनुच्छेद 15(ए)ई) और साथ ही काम की उचित एवं मानवीय परिस्थितियां सुरक्षित करने, प्रसूति सहायता के लिए राज्य द्वारा प्रावधानों को तैयार करने की अनुमति देता है (अनुच्छेद 42)।
कितना पढ़ा है उसने पॉलिटकल साइंस में, लेकिन आम जीवन में तो ये सब कहीं देखने को ही नहीं मिलता।
अगर पुलिस रिकार्ड को देखें तो महिलाओं के विरूद्ध भारत में एक बड़ा आकड़ा मिलता है, जो हम सबको चिंतन करने पर मजबूर करता है।
यौन उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, गर्भपात, महिला तस्करी व अन्य उत्पीड़न के आकड़े दिन प्रतिदिन बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।
वर्ष 1997 में सर्वोच्य न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक विस्तृत दिशा निर्देष जारी किया। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में होने वाले बाल विवाहों का 40 प्रतिशत अकेले भारत में होता है। भ्रूण हत्या के मद्देनजर इस पर प्रतिबंध लगाने का सराहनीय कार्य भारत सरकार ने किया और घरेलू हिंसा पर रोकथाम के लिए 26 अक्टूबर 2006 में महिला संरक्षण एक्ट भी पास हुआ।
लेकिन जब तक औरत के पास सर पर छत नहीं, खाने को पैसे नहीं तो पांच बेटियों को लेकर कानून का अचार डाले क्या?
"कॉलेज आ गया मैडम!"
अरे! सब लड़कियां बस से उतर भी चुकी है। लेकिन वो ख्यालों में भारतीय संविधान पढ़ रही है। तभी सब बोलते है हमेशा चुप अनमनी सी रहती है। आजकल की लड़कियों के जैसे कुछ भी अचार विचार नहीं है। इसलिए निया की ज्यादा सहेलियां भी नहीं है।
"हाय! पढ़ाकू! कैसी है?
"वीकेंड में कितनी पढ़ाई कर ली?"
"इतना पढ़ाई का बोझ सिर पर लाद कर क्यों बैठी है? वीकेंड के बाद भी बुझी बुझी लग रही है।"
बस शुरू हो गई पागलों की प्रश्नोत्तरी। जिसका कोई उत्तर निया के पास नहीं है। इनको क्या पता वीकेंड उसके और उसके परिवार के लिए कितना दुखदाई होता है।
"हे भगवान! ये वीकेंड की छुट्टियां बंद नहीं हो सकती?"
निया ने मन ही मन में भगवान से मन्नत मांगी। यहां आकर वो सब कुछ भूल जाती है। उसे लगता है कि वो भी जिंदा है। बहनों के मन का पता नहीं। सब लोग अति भावुक नहीं होते उसकी तरह।
सोचते - सोचते कब इको की क्लास में बैठ कर नोट्स बनाने लगी उसे पता नहीं चला।
क्रमश:
गीता भदौरिया