समय के आभाव से मंदिर जाना मेरा कम ही होता है , पर फिर भी सप्ताह मैं १ बार जर्रूर जाती हूँ , अब आज की बात ले लो , सुबह मंदिर मैं दर्शन हो जाने पर मैं मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी हुयी थी मेने देखा की एक बूढी महिला मंदिर के बाहर भीख मांग रही थी और एक के बाद एक लोंगो का आना होता रहा , कोई दूध चढ़ा रहा है कोई केला तो कोई घी चढ़ा रहा है , और वो सभी दूध और घी भगवान से होते हुए नालियों मैं जा रहा था और जो प्रशाद था वो पंडित के झोले की शोभा बड़ा रहा था , इतना सब हो गया पर किसी ने उस मंदिर के बाहर बैठी हुई महिला को कुछ नहीं दिया ।
एकलोता हमारा ही देश है जहाँ पर मंदिरों मैं भगवान की मूर्तियों पर दुध, दही , घी , पानी आदि चढ़ाया जाता है , और वो जाता सिर्फ नालियों की शोभा बढ़ाने , अब मुझे कोई ये समझाए की क्या ये नालियां हमारे देश की गरीब जनता , अनाथ बच्चों , और उन सभी के लिय जिनको दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता उन सबसे बढ़कर हैं , आज ४० रुपए दूध् और ५०० रुपया घी, आदि तो एक गरीबों की सोच से कहीं परे हैं ।
आज हमारे देश को देखें तो करोडो लोग भुखमरी का शिकार , गरीबी का शिकार हैं , हम, हमारा समाज क्या हमारी कोई जिमेदारी नही बनती की जो दूध , घी की नदियां बहाने और नालियों की शोभा बढ़ाने से अच्छा है की हम इनका उपयोग लाखो लोगों की मदत मैं लाएं ।
दूध , घी की नदियां बहाने से क्या हमारी मनोकामना पूरी हो जाती है , नहीं हमारी मेहनत का ही फल हमे मिलता है न की ये सब करने से । अब इन बातों को नजर अंदाज न किया जाये और एक आवाज उठाई जाये उन अंधभक्तो के खिलाप जो ये काम करते हैं और ऐसा करने मैं अपनी भक्ति मानते हैं , और जिन चीजो का चढ़ावा मंदिरों मैं चढ़ाया जाता हैं उनका उपयोग जरुरत मंदों की मदद मैं किया जाये , ऐसा करने से आपको सुकून मिलेगा और जरुरत मन्दो को मदद मिलेगी ।
भगवान के नाम पर चीजो को व्यर्थ गवाना कोई समझदारी नही यह कृत्य अमानवीय और घोर अपराध है ।
~~~ योगिता वार्ड ( खत्री )