एक राजा था। उसका वजीर बहुत समझदार था। राजा ने एक दिन उससे पूछा कि ऐ वजीर, क्या आंख की देखी और कान की सुनी बात भी गलत हो सकती है। वजीर ने कहा - हां हुजूर। वह कैसे? राजा ने पूछा। इस पर वजीर ने जवाब दिया कि समय आने पर बताऊँगा।
एक दिन एक घटना घटी। राजा शिकार खेलने बाहर गये थे अभी लौट कर नहीं आये थे। उनके सोने के कमरे में उनका नौकर बिस्तर लगा रहा था।
उसके मन में यह बात उठी कि कितना कोमल आरामदेह यह बिस्तर है। यह सोच कर कि राजा अभी देर से आयेगें वह राजा के पलंग पर थोड़ी देर के लिये लेट गया और चादर ओढ़ लिया। इतने में उसे नींद आ गयी।
जब रानी कमरे में आयी तो देखा कि राजा आज जल्दी ही आकर सो गये हैं उसने उनको जगाना उचित नहीं समझा और बिना उनको हिलाये - डुलाये बगल में चुपचाप लेट गयीं।
उसने समझा कि राजा ही सोये हैं दूसरा तो कोई हो नहीं सकता।
जब राजा आये तो रानी को एक अन्य पुरुष के साथ लेटा देखकर संशय में पड़ गये। राजा ने तलवार निकाल लिया कि दोनों को समाप्त कर दें। किन्तु उनको वजीर की बात याद आ गयी कि आंख की देखी, कान की सुनी बात भी गलत हो सकती है।
राजा ने तुरंत वजीर को बुलाया। वजीर ने कहा कि आप चुपचाप छिपकर बैठ जाइये। कुछ समय बाद जब नौकर की नींद खुली तो बगल में रानी को सोया हुआ देख कर बहुत घबड़ाया।
तब तक रानी भी उठ गयीं। नौकर ने डर के मारे कांपते हुए कहा कि माता जी, हमें क्षमा कर दें। मैं कोमल बिस्तर देखकर जरा सो गया और नींद लग गयी। उधर रानी भी बहुत घबड़ाई कि उसने तो राजा को सोचा था।
राजा अब असलियत समझ चुका था। वह बाहर निकल आया तब वजीर ने कहा - आपने देखा। इस प्रकार वजीर की बात समय पर याद आ जाने से नौकर तथा रानी की जान बच गयी।
आदमी को अच्छी तरह समझ बूझ कर कभी कोई बात कहनी अथवा कोई काम करना चाहिये।
और महात्माओं के बारे में तो जब तक सही बात न मालूम हो कभी कुछ कहना सुनना नहीं चाहिये महात्मा किस मौज से किस रहस्य से किस प्रकार की लीला करते हैं यह वही जानते हैं और अगले को समझना मुश्किल। अगर महात्मा को समझ लेते तो काम बन जाता।
इसलिये आपका बडा़ भाग्य जो यहां बैठने का अवसर भगवान ने दिया..!