अकस्मात मीनू के जीवन में कैसी दुविधा आन पड़ी????जीवन में अजीव सा सन्नाटा छा गया.मीनू ने जेठ-जिठानी के कहने पर ही उनकी झोली में खुशिया डालने के लिए कदम उठाया था.लेकिन .....पहले से इस तरह का अंदेशा भी होता तो शायद .......चंद दिनों पूर्व जिन खावों में डूबी हुई थी,वो आज दिवास्वप्न सा लग रहा था.....
अंतर्द्वन्द जो सीने में बसा औचित्य जीवन का मैं सोचता यहाँ हर कोई मुझे पहचानता है मैं पर खुद में खुद को ढूंढतासाँस चलती हर घड़ीप्रश्न उतने ही फूटतेजो सपने बनते हैं फलक परधरा पर आकर टूटतेकुंठित होकर मन मेरामुझसे है आकर पूछता जिसने देखे सपने वो कौन था और कौन तू है ये बतारो-रो