बेटियाँ...बाबुल के घर से चली जाती है...ये बेटियाँ बहुत सताती हैं...फिर कहाँ लौट करके आती है...ये बेटियाँ बहुत सताती है...लोरियां गा के मां सुलाती थी...रोने लगती तो वो हंसाती थीं...उंगलियां थाम कर चली
बहना की चिठ्ठी...नहीं चाहिए हिस्सा भैयामेरा मायका सजाए रखनाराखी और भाई दूज परइंतजार बनाए रखनाकुछ ना देना मुझको चाहेबस अपना प्यार बनाए रखनापापा के इस घर मेंमेरी याद सजाए रखनाबच्चों के मन में मेरामेरा म
इतिहास में मीराबाई का नाम बड़े आदर और सत्कार से लिया जाता है मीराबाई मध्यकालीन युग की एक कृष्ण भक्त कवियित्री थी जिन्होंने श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग चुना और हमेशा भजन तथा कीर्तन के
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस प्रत्येक वर्ष 17 अक्टूबर को पूरे विश्वभर में मनाया जाता है| इसकी शुरुआत 11अक्टूबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा की गई थी| इस दिन को मनान
मेरे प्यारे अलबेले मित्रों !बारम्बार नमन आपको 🙏🙏हर वर्ष 11 अक्टूबर को मनाते,स्त्री-पुरुष सुजान lबालिकाओं को अधिकार मिले,बालकों के समान llबालिकाएँ भी उठा सकें,अपने हित में आवाज़ ।अधिकार और सम्मान दें,
नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं। नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं। जब भी घर में
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य स्त्री को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें समाज में सम्मान और सुरक्षा प्रदान करना है। यह आवश्यक दिन पहले एक निजी
फूलों सी नाज़ुक, चाँद सी उजली मेरी गुड़िया । मेरी तो अपनी एक बस, यही प्यारी सी दुनिया । । सरगम से लहक उठता मेरा आंगन । चलने से उसके, जब बजती पायलिया । । जल तरंग सी छिड़ जाती है । जब तुतलाती बोले, म
बालिका क्या है- सही मायने पर अगर बात करे तो बालिका माँ भगवती का रुप है जो की जिस भी घर में जन्म लेती है तो उस घर को खुशियों से भर देती हैं किन्तु अभी भी कुछ ऐसी मानसिकता के लोग है जो की बेटी को बोझ सम
मेरे घर के आंगन में, हंसती-खेलती सी घूमती थी।मेरे मन को देती अतीव खुशियां,उसकी हर मुस्कान एक संदेश देती थी।।उसने मांगा ना कभी कुछ मुझसे,अपनी जिंदगी के लिए।मुझे हर खुशी दी हर वक्त,मेरे हर सफर के ल