नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं। नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं। जब भी घर में बेटी का जन्म होता हैं, तब यही कहा जाता हैं कि घर में लक्ष्मी आई हैं। जब घर में नव विवाहित बहु आती हैं, तब भी उसकी तुलना लक्ष्मी के आगमन से की जाती हैं। क्या कभी आपने कभी सुना हैं बेटे के जन्म कर ऐसी तुलना की गई हो? कि घर में कुबेर आये हैं या विष्णु का जन्म हुआ हैं, नहीं। यह सम्मान केवल नारी को प्राप्त हैं जो कि वेदों पुराणों से चला आ रहा हैं जिसे आज के समाज ने नारी को वह सम्मान नहीं दिया जो जन्म जन्मान्तर से नारियों को प्राप्त हैं।
हमेशा ही नारियों को कमजोर कहा जाता हैं और उन्हें घर में खाना बनाकर पालन पोषण करने वाली कहा जाता हैं, उसे जन्म देने वाली एक अबला नारी के रूप में देखा जाता हैं और यह कहा जाता हैं कि नारी को शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं, जबकि जिस भगवान को समाज पूजता हैं वहां नारी का स्थान भिन्न हैं। माँ सरस्वती जो विद्या की देवी हैं वो भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को ही शिक्षा के योग्य नहीं समझता। माँ दुर्गा जिसने राक्षसों का वध करने के लिए जन्म लिया वह भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को अबला समझता हैं। कहाँ से यह समाज नारी के लिए अबला, बेचारी जैसे शब्द लाता हैं एवम नारी को शिक्षा के योग्य नहीं मानता, जबकि किसी पुराण, किसी वेद में नारी की वह स्थिती नहीं जो इस समाज ने नारी के लिए तय की हैं। ऐसे में जरुरत हैं महिलाओं को अपनी शक्ति समझने की और एक होकर एक दुसरे के साथ खड़े होकर स्वयम को वह सम्मान दिलाने की, जो वास्तव में नारी के लिए बना हैं।
आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता देखने को मिलती है। रोजाना कहीं न कहीं यह समाचार देखने सुनने में मिल जाते हैं कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार आदि की घटनायें घटित हुई हैं। जिसका सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिल्म जगत है। फिल्मों में जिस प्रकार दिन प्रति दिन अष्लीलता बढ़ती जा रही है इससे नवयुवकों के मन पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। वे इसके क्रियान्वयन पर विचार करने लगते हैं। परिणामस्वरूप नारियों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं में वृद्धि होती जाती है। इस प्रकार की घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं महिलायें भी दोशी सिद्ध होती हैं। आधुनिकता व षारीरिक दिखावे की भावना से महिलायें ऐसे कपड़े पहन लेती हैं जो षालीनता की सभी सीमायें तोड़ देती हैं। इन वस्त्रों के कारण भी यौन अपराध बढ़ते हैं। अष्लीलता जिन नवयुवकों के मनों में घर कर बैठती है, महिलाओं के इस प्रकार के वस्त्र भी आग में घी डालने जैसा काम करते हैं।