प्राचीन काल में ‘करवा’ नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी किनारे एक गाँव में रहती थी । कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी (चौथ) के दिन उसका पति नदी में स्नान करने के लिए गया । स्नान करते स
कभी गुस्सा तो कभी प्यार दिखलाती है,कभी डांट तो कभी दुलार बस यही तो है,मां का प्यार सीने मै दर्द कितने हो,कभी बता नहीं पाती सहन कर लेती,हर मुश्किल पर परिवार पर आंच नहीं आने देती,पेट ख़ाली भी हो तो चहरे
माँ की दुआ...बहारों के मौसम में भी दिल में पतझड़ है,किसी ने हमें दुआएं दी तो कहीं सिर्फ तोहमतें मिली,झोली मेरी खाली थी,जिसने जो प्यार से दिया उसको हमने सर झुका के लिया,जिंदगी का सफ़र अब तो बहुत काट लि
बेटियाँ...बाबुल के घर से चली जाती है...ये बेटियाँ बहुत सताती हैं...फिर कहाँ लौट करके आती है...ये बेटियाँ बहुत सताती है...लोरियां गा के मां सुलाती थी...रोने लगती तो वो हंसाती थीं...उंगलियां थाम कर चली
घर पहुँचते ही बेशक माँ से ......कुछ काम ना हो लेकिन.....हमारा पहला सवाल यही .....होता है माँ किधर है और......माँ के दिखाई देते ही.....दिल को सुकून मिल जाता है.....
सब से अलग हैंभैया मेरासब से प्यारा हैभैया मेराकौन कहता हैंखुशियाँ हीसब होती हैंजहां मेंमेरे लिए तोखुशियों से भीअनमोल हैंभैया मेरा
बहना की चिठ्ठी...नहीं चाहिए हिस्सा भैयामेरा मायका सजाए रखनाराखी और भाई दूज परइंतजार बनाए रखनाकुछ ना देना मुझको चाहेबस अपना प्यार बनाए रखनापापा के इस घर मेंमेरी याद सजाए रखनाबच्चों के मन में मेरामेरा म
रविवार... ?रविवार के सुखद पलों का आनन्द ले रहे हैं न।कैसा मौसम है आपके शहर- गाँव का।बरसात के क्या समाचार हैं।यहाँ केकड़ी में तो आज धूप खिली हुई है।गर्मी तो लग रही है लेकिन खिली हुई धूप अच्छी लग रही है
परिवार हमारे अनुसारकहां चलता है किसी कीबात कहां मानता है जब करने चले हम अपने घर के मुखिया से अपने दिल की बात तो आ गई हमारी बात पर हर रिश्ते मेंखटास बैठना मुश्किल हो गया हम सबका आस
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिसे जीवित रहने के लिए समाज की आवश्यकता पड़ती है। किसी भी व्यक्ति का परिवार इस सामाजिक व्यवस्था का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण और प्रारम्भिक चरण है। जिस घर में व्यक्ति जन्म लेता
फूल सी कोमल डाली है चंचल सा स्वभाव लिए भंवरे सी मंडराती रह, सूर्य की लालिमा हर वक्त द्वार पर फैले, तुलसी मैया का पौधा घर अंगना के बीच हो, वृक्षों की सी हरी भरी हरियाली हो, निर्मल पानी का झरना जैसी वृ
कहने को तो परिवार एक छोटा सा शब्द है, लेकिन यही वह जगह होती है, जिसके इर्द-गिर्द मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन चक्र घूमता है। परिवार के बारे में जब हम विचार करते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि परिवार मर्यादा
मानव सभ्यता की पहली संस्कृति पवित्र जॉर्ज मैं भगवान के साथ बना रहा था परिवार के भाग्य दिन का भाग्य रात की नींद सपने की नींद आदमी औरत में तीन मानव ressures और एण्ड्रोजन माँ Androjan mammy महिला बच्चे औ
माता-पिता और भाईं बहिनो से, ब़नता हैं परिवार, दादा-दादी, नाना-नानी, होतें इसकें मज़बूत आधार। ब़ूआ तो घर क़ी रोनक होतीं, चाचा सें हंसता सारा घ़र द्वार, भाभी और जीजाजी तों होते, घर क़ी खुशियो क़े
पुंडीर राजवंश- रानी सावलदे ओर राजा कारक की कथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे राजा कारक ओर रानी सावलदेह का किस्सा लोक गीत ओर रागनियो मे बहुत गाया जाता है । लेकिन बहुत कम ही लोग जानते है की रानी सावलदे ओ