सुनिए....बड़ी मुश्किल से उसके मुँह से आवाज निकल पायी थी।गहरी नींद में सोता हुआ व्यक्ति आधा मरे समान होता है। उसकी दबी हुई आवाज़,सिद्धान्त के कानों तक नहीं पहुँच पायी। गीतांजली ने फिर से प्रयास किया। सुनिए..ए ए ए! गहरी नींद में सोए हुआ सिद्धांत पत्नी की कराहट सुनकर उठ कर बैठ गया। घबराहट को संभालते हुए साइड वाली टेबल पर से चश्मा उठाया , झट से अपनी आंखों पर लगाते हुए उसने गीतांजलि को टटोला.. पसीने से भीग रही थी वो।अरे तुम्हें क्या हुआ अंजलि! यह तुम इतना पसीने से तरबतर???पहले पास ही रखी बोतल से छोटे गिलास में पानी लेकर पत्नी के होंठों से लगाया "अंजली पानी पी लो"जबरदस्ती दो घूँट पानी उन्होंने पत्नी को पिलाया। आपाधापी में तौलिया ढूंढकर लाया, पत्नी के चेहरे और गर्दन को पोंछा।अंजली को उसने अपनी बाहों में यूँ भींच लिया जैसे उसकी परेशानी... उसकी बेचैनी को खुद सोख रहा हो।वास्तव में टच थेरेपी भी कोई चीज़ होती है। थोड़ी देर के लिए पति के आलिंगन में रहकर अंजली संभल गयी।उसने बताया कि अचानक सोते-सोते उसका दम सा घुटने लगा था। बहुत गर्मी लगने लगी थी। मुँह से कुछ भी बोल नहीं पा रही थी। उसने कहा, "मैंने तुम्हे बहुत मुश्किल से उठाया है।" पत्नी की हालत देखकर सिद्धांत अंदर तक कांप गया । उसके साथ ऐसा पहली बार हुआ था।लेकिन अपनी घबराहट जाहिर करने का ये सही वक्त नहीं था इसलिए बात घुमाकर बोला, " चलो ! गाउन चेंज कर लो यह पसीने से पूरा भीग गया है। सूखा गाऊन पहनकर तुम्हें ठीक से नींद आ जायेगी"अंजली ने पति की हाँ में हाँ मिलाई," ठीक है!वहां अलमारी में से वह ब्लू वाला निकाल दो वह कॉटन का है मुझे कंफर्टेबल रहेगा" सिद्धार्थ ने खुद ही गीतांजलि का पूरा शरीर तौलिए से पोंछकर दूसरा गाउन बदल दिया। गीतांजलि बेड के जिस ओर सोई हुई थी। वह भी बिल्कुल भीग गया था। इसलिए उस हिस्से पर एक दूसरी चादर बिछाकर ही उसने गीतांजलि को सुलाना ठीक समझा। गीतांजलि का सिर अपनी गोद में रखकर वह बहुत देर तक उसका माथा सहलाता रहा, जिससे वह जल्दी ही आराम से सो गई। गीतांजलि तो आराम से सो गई लेकिन सिद्धांत की नींद उड़ गई। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचकर गीतांजलि को कुछ भी हो जाता था तो सिद्धांत अंदर ही अंदर दहल जाता था। जीवन के कितने वर्ष दोनों ने सफलतापूर्वक कांटे हैं!! अब वह किसी भी कीमत पर अपने प्रेम को खोना नहीं चाहता था। अगले ही दिन ऑफिस की छुट्टी लेकर वह गीतांजलि को लेकर फैमिली डॉक्टर मिस्टर कृष्णमूर्ति के क्लीनिक पहुंच गया। मिस्टर कृष्णमूर्ति सिद्धांत के परिवार से लगभग 30 वर्षों से जुड़े थे। कृष्णमूर्ति ने गीतांजलि की नव्ज़, उसका ब्लड प्रेशर और बुखार चेक किया। सब कुछ नार्मल था। उन्हें घबराने की कोई बात नहीं लगी फिर भी एहतियातन...ब्लड और यूरिन सैंपल ले लिया। जिस उम्र में गीतांजलि थी उस उम्र में अक्सर इस तरह की बेचैनी हो जाया करती है। जांच की रिपोर्ट अगले दिन आएगी यह कहकर उन्होंने दोनों को आश्वस्त करके घर भेज दिया। घर आकर सिद्धांत ने गीतांजलि को सख्त हिदायत दी कि तुम कोई भी काम नहीं करोगी। सारा काम हेमलता देख लेगी। हेमलता उनके घर की बहुत पुरानी कामवाली है जो उनके घर में करीब पंद्रह साल से लगातार काम कर रही है। उससे पहले उसकी माँ भी यहीं काम करती थी। पुराना काम करने वाला व्यक्ति घर के सदस्य जैसा हो जाता है घर की समस्याएं उसकी समस्याएं और घर की खुशियाँ उसकी खुशियाँ हो जाती हैं। हेमलता वैसे भी एक समझदार महिला थी ऊपर से कर्तव्यनिष्ठ भी। अपने मालिकों की लिए वह पूरी तरह ईमानदार और वफादार थी ।सिद्धांत ने उसे रात को हुई बात बताई तो वह भी घबरा गई। वो गीतांजली को अपनी माँ की तरह ही मानती थी। माँ के देहांत के बाद गीतांजली ने कभी उसे माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। गीतांजलि ने सिद्धार्थ को समझाया कि वह अब ठीक है। वह चाहे तो ऑफिस जा सकता है। हेमलता ने आंखों ही आंखों में सिद्धांत को आश्वस्त किया कि वह गीतांजली का पूरा ध्यान रखेगी। सिद्धांत ने भी ऑफिस जाने में ही भलाई समझी क्योंकि कई दिनों से ऑफिस में बहुत काम था। सैंक्शन ऑफिसर पद की भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है।यह उसके स्वभाव में रहा है कि उसकी वजह से किसी और को परेशानी ना हो, इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा कोशिश करता है कि सारे काम समय पर निपटा ले। ऑफिस के सभी लोग उसके जैसे तो नहीं है लेकिन उसे और उसके सिद्धांतों की खूब सराहना करते हैं। उसका रिश्वत ना लेना छोटे कर्मचारियों को चुभता जरूर है लेकिन सभी के दिल में सिद्धांत के लिए एक अच्छी व्यक्ति वाली ही जगह है। मन मसोस कर ही सही अपनी वैगनर गाड़ी में बैठकर उसने ऑफिस की राह पकड़ ही ली। वैसे तो घर से लेकर ऑफिस के रास्ते में जाते हुए वह अपनी गाड़ी में म्यूजिक लगा लेता है और म्यूजिक भी... सब रोमांटिक मोहम्मद रफी, किशोर,अभिजीत के गाये हिंदी गानों पर जान देता है सिद्धांत। लेकिन आज गाने सुनने का मन नहीं था। गाड़ी चलाते हुए वह कब अपने अतीत की यादों में खो गया पता ही नहीं चला।दिल्ली के श्याम लाल कॉलेज के बी ए फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था अंजलि ने और वह फाइनल ईयर का बी कॉम का छात्र था। रैगिंग प्रचलन में थी उन दिनों।फाइनल ईयर के छात्र फ्रेशर्स को एक बकरे के रूप में देखते थे। कॉलेज की फ्रस्ट्रेशन समझो या फाइनल ईयर में होने का घमंड। वह इसको अपने नए साथियों पर निकालते थे। नाम तो था कि वे नए आने वाले छात्रों को कॉलेज के माहौल से रूबरू कराएंगे लेकिन...गिंग की सच्चाई सभी जानते थे। किस तरीके से नए बच्चों को कॉलेज में परेशान किया जाता था। उनका अपमान किया जाता था। कई बार तो इतना परेशान किया जाता था कि वह कॉलेज आना अपना दुर्भाग्य समझने लग जाते थे। जो बच्चे पहले से जानते थे कि यह सब तो उनके साथ होना ही था या फिर वह बहुत ही कठोर दिल के होते थे, वे कॉलेज में यथावत पढ़ते रहते थे। लेकिन जो बच्चे बहुत इमोशनल होते थे उन पर इस रैगिंग का बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता था। गीतांजलि को पहली नजर देख कर ही सिद्धार्थ का दिल मचल उठा था। उस वक्त लड़कियां सूट ही पहना करती थीं। गीतांजलि!!! उस लखनवी आसमानी सूट में कितनी कमाल लग रही थी। उसकी वो लंबी लहरदार चोटी जो गर्दन के पीछे से आकर उसके बाएं कंधे पर पड़कर बल खाये जा रही थी। सुंदर गोल आकर्षक सी आंखें। साधारण लेकिन मादकता से भरे प्यारे होंठ। किसी पुरानी खूबसूरत हीरोइन से कम नहीं लग रही थी वो। माला सिन्हा.. नहीं आशा पारेख या शर्मिला नहीं, नहीं वहीदा....पता नहीं शायद कुछ उन सबसे भी ज्यादा।मैं उस दृश्य को आज तक भुला नहीं पाया हूँ, कितनी प्यारी लग रही थी मेरी अंजली! (हॉं - यही नाम तो था गीतांजली का, सिद्धांत के लिए) क्या पता था आगे जाकर यही मेरे आसमान का चांद बनेगी? शुरू में तो मुझे बहुत घमंडी लगी। ऐसा लगा बड़ी नकचढ़ी है। लेकिन बाद में..... इतना ही सोच पाया था कि उसका ऑफिस आ गया।आज तो सिद्धांत को जरूर लग रहा होगा कि काश! ऑफिस का रास्ता बहुत लंबा होता और वह अपने अतीत के प्यारे दिनों को बहुत देर तक सोचता रहता। खैर, बिल्डिंग के पास पहुंचकर उसने गाड़ी जगह पर पार्क की। तीसरी मंजिल पर बने अपने आफिस पहुंचा । प्रिंट एवं पब्लिशिंग डिपार्टमेंट दिल्ली कनॉट प्लेस।अजीब काम था। यहां पर लोग अपना नाम बदलवाने आते थे कोई इस वजह से कि उसे अपने मां-बाप से अपना नाम मिलाना है। किसी को अपने पति से अपना नाम मिलाना होता था या फिर किसी के सर्टिफिकेट में कोई नाम धोखे से गलत हो गया तब। बहुत सारे कारण हुआ करते थे लेकिन लोगों की इतनी छोटी बात के लिए इतना परेशान होते हुए देखता था, तो सिद्धांत को बड़ा अजीब लगता था। जीवन को कितना मुश्किल कर लिया हमने। अपने आप को साबित करने में कितनी एड़ियाँ रगड़नी पड़ती हैं। वैसे तो वह हमेशा ही यही सोचता कि जो भी यहां पर नाम बदलवाने आए उसका काम उसी दिन हो जाए लेकिन लोग भी कम भी लापरवाह नहीं होते। कभी कोई कागज भूल जाते तो कभी कोई।हज़ार बार बोलने के बाद भी कोई ना कोई गलती कर ही देते थे। ऐसे लोगों का काम एक ही दिन में पूरा करवाना उसके बस में नहीं था। दूसरे सरकारी महकमों की तुलना में उसके ऑफिस में भीड़-भाड़ नहीं रहती थी। जिस तरह से अस्पतालों में मरीज लाइनों में खड़े रहते हैं। बिजली दफ्तरों में भी भीड़ लगी रहती है।रेलवे स्टेशनों की तो बात ही क्या!सिद्धांत के ऑफिस में सुकून था। सिद्धांत भीड़ लगने भी नहीं देता था, उसके ऑफिस के कायदे ही कुछ ऐसे थे। सरकारी विभाग में न होता तो जरूर किसी अच्छी कम्पनी में मैनेजर होता वो। सारे काम निपटा कर शाम को घर पहुंचा तो गीतांजलि को वैसे ही पाया, एकदम स्वस्थ, तब जाकर उसके दिल को सुकून हुआ। वह ऐसे ही उसका इंतजार कर रही थी जैसे हमेशा करती थी। दोनों ने मिलकर चाय पी। मना करने के बाद भी, उसने सिद्धांत का मनपसंद पोहा बना रखा था। सही भी तो है हेमलता घर के सारे काम कर सकती है लेकिन क्या वह जानती नहीं कि सिद्धांत को तो बस उसकी अंजली का बनाया पोहा ही पसंद आएगा। इतने साल हो गए सिद्धांत के साथ! गीतांजलि उसकी हर पसंद नापसंद, उसकी हर जरूरत को जानती थी।सच में! हिंदुस्तान में अगर कुछ अच्छा है तो बस यही... शादियों का लंबा चलना!बड़ा गर्व होता है कि यहाँ के लोग, आजीवन.. एक दूसरे के साथ इतने लंबे समय तक, इतने प्यार और लगाव से जुड़े रहते हैं... बंधे रहते हैं!!शाम को फिर वही दिनचर्या दोनों मिलकर अपने मनपसंद सीरियल देखते हैं, अक्सर दोनों की एक ही पसंद होती थी या फिर... दोनों एक ही पसंद बना लेते थे।ड्राइंग रूम में सोफे पर टी वी देखने का गीतांजली का आज मन नहीं है। मन हो रहा है अपने बेडरूम में ही जाकर टीवी देखें। सिद्धार्थ ने मन में सोचा, ' इसका मतलब अंजली दिखावा कर रही है कि वह पूरी तरह ठीक है....
क्या गीतांजली कुछ छिपा रही है? या सिद्धांत का डर बेबुनुयाद है...
पढ़िए एपिसोड 2