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अंतिम मिलन भाग 9

12 अक्टूबर 2024

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पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि अंजली को होटल पहुंचकर ढेर सारे सरप्राइज मिले। वो बहुत खुश थी। मैं आप पाठकों से पूछती हूँ अगर आप अपनी शादी-शुदा जिंदगी का बड़ा हिस्सा बिता चुके हैं तो क्या आपको नहीं लगता, सिद्धांत की तरह ही आपको भी अपने पुराने वक़्त को फिर से दोहराना चाहिए। अगर हां तो अपनी पत्नी के जीवन को सिद्धांत की तरह फिर से प्रेम से भर दीजिये क्या पता कब जीवन की सीमा रेखा किसे अपने पास बुला ले!

आगे पढ़िए...


कमरे में एंटर होते ही म्यूजिक चल पड़ा और रंगीन लाइटें जल गयीं। अंजलि आज सातवें आसमान पर थी। उनको बिठाकर अटेंडेंट चला गया।

 सिद्धांत ने चाकू के साथ अंजली का हाथ पकड़ा। अंजली की आंखों में नई नवेली दुल्हन जैसी चमक थी। दोनों ने एक दूसरे की आंखों में आंखें डाल कर केक काटा और एक दूसरे को खिलाया। सब कुछ बेहद धीमी गति से हो रहा था जैसे फिल्मों में स्लो मोशन में होता है। उन दोनों को आज किसी की परवाह नहीं थी न आस-पास की, न ही समय की। सिद्धांत को इसी बीच शरारत सूझी। उसने थोड़ा सा केक अंजली के गालों पर लगा दिया।

 "क्या कर दिया शैतान कहीं के!" कहकर अपने गालों से जैसे ही अंजलि केक को पोंछने लगी, सिद्धांत ने उसका हाथ पकड़ लिया।

 वह समझ गई कि सिद्धांत क्या चाहता है।

उसके गालों से केक साफ़ करने का अधिकार उसका नहीं सिद्धांत का था।

 सिद्धांत अपने होठों से उसके गाल को साफ करने लगा। सिद्धांत के नरम होठ जब गीतांजलि के गालों पर लगे तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई।

 इस समय के लिए तो वह खुद भी तैयार थी। आज ना उसके पास कोई बहाना था ना वजह।

 उसने आंखें बंद कर सिद्धांत को पूरी इज़ाज़त दे दी, कि वह इन पलों को जैसे भी  यादगार बनाना चाहे, बना सकता है। वह उसका पूरा साथ देगी।

इधर सिद्धांत ने भी अंजलि के बालों को खोलकर यह जता दिया कि आज उसी की मर्जी चलेगी।

 मिलन की इस रात, वे दोनों अपनी सांसों को भी इजाजत नहीं देना चाहते थे कि वे चलें। लेकिन सांसे कहाँ मानने वाली थीं। वो और भी ज्यादा तेज चलने लगी। अब बस वे दो थे और वह प्यारी रात।

 प्रेम के दो पहलू हैं, आकर्षण और लगाव। इसमें दूसरा पहलू हमेशा पहले पहलू पर भारी पड़ता है। इतने सालों से साथ रहने वाले दो व्यक्तियों के बीच में लगाव ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। एक दूसरे से लगातार झगड़ने वाले जोड़े भी आपस में एक दूसरे से लगाव रखते हैं और ये जोड़ा तो दीया बाती की तरह था।

किसी ने कहा है "प्रेम एक मजबूत आकर्षण है जो भावनाओं की खाद पाकर बढ़ता है। पुरानी शराब की तरह इसका नशा भी उम्र के साथ बढ़ता है।" 

प्रेम वह होता हैं जिसमे आप अपने प्रेमी के सामने एक खुली किताब होते हो 

और उस किताब का हर एक पन्ना वह पढ़ सकता है,

 प्रेम वह होता हैं जिसमे आप उसका तन नही बल्कि आँखें देखकर ही सिहर जाते है,

 प्रेम वह होता है, जिसमें आप शब्दों से ही नही मन से भी एक-दूसरे को समझ जाते हैं।

इसी कारण तो खून के रिश्ते भी फीके पड़ जाते हैं प्रेम के रिश्ते के सामने।

तभी तो संसार में सबसे मजबूत रिश्ता बन जाता है पति और पत्नी का।

सिद्धान्त को आज फुरसत नहीं कि वह ये सोचे कि उसका प्यार अब ज्यादा दिनों तक उसके साथ नहीं रह पाएगा।

वो भूल जाना चाहता है अंजली की लाइलाज बीमारी।

वो पकड़ लेना चाहता है, समय की सुईं को।

वो इस रात को अमर बना देना चाहता है 

इतिहास बना देना चाहता है।

आज अंजली को अनंत प्यार करते हुए जैसे वो इस दुनिया में है ही नहीं, 

यहां सत्यवान साधनारत है सावित्री के लिए।

उधर अंजली जो कुछ नहीं जानती। लेकिन सिद्धांत को जानती है।

वो ये जानती है कि उसके पीछे चल कर  वो आग का दरिया भी पार कर लेगी।

तभी तो पिघलकर घुल गयी है सिद्धांत में!

उसे खुद नहीं पता कि उसका कितना हिस्सा अंजली है और कितना हिस्सा सिद्धांत है?

ये प्रेम...प्रेम कहाँ!, प्रेम की पराकाष्ठा है।

ये ही तो है जो ईश्वर को फिर से सोचने पर मजबूर करेगा कि अंजली पर पहला हक़ सिद्धांत का है या उसका।

क्या  कभी सुना है प्यार के चरम पर पहुँचकर किसी को रोते हुए।

उस दीवानी रात जब दोनों की भावनाओं का तूफान थमा, तो अंजली बेसुध, एक मासूम बच्चे की तरह सिद्धांत में छुपकर सो गई। लेकिन सिद्धान्त के अंदर तो कुछ था जो बाहर आने को मचल रहा था और वो था उसका दुख। 

अंजली को बिना डिस्टर्ब किये वो धीरे से बिस्तर से उठा और बाहर बालकनी में निकल गया। उसने बालकोनी का दरवाजा बंद कर दिया जिससे उसके सिसकने की आवाज अंजली कमरे में ना जा पाए। 

अब वो जी भरकर जितना चाहे रो सकता था। किसी पुरुष को इतना रोते आमूमन कोई नहीं देख पाता। पुरुष अपने आंसुओं को पीने में बहुत प्रतिभाशाली होते हैं। ये शायद इसलिए होता होगा कि स्त्री बहुत कमजोर होती है आंसुओं को छिपाने में।

घर का मुखिया अगर मजबूत ना हुआ तो , वो मुखिया ही क्या हुआ?

लेकिन ये मुखिया! ये तो रोना चाहता है वो भी किसी को बिना दिखाए, बिना बताए।

कोई नहीं तो ये रात उसका साथ जरूर देगी।

ये शहर, 

जो रात में भी थका नहीं है, निरंतर चल रहा है। इसका शोर उसका साथ जरूर देगा।

जब हम किसी बात को लेकर बहुत परेशान होते हैं तो हमारी बॉडी में कुछ ऑटोमैटिक प्रॉसेस होते हैं, अपनी फ्रस्ट्रेशन अपनी घुटन को कम करने के लिए, जैसे तेज़ कदमों से टहलना, रोना , बार-बार कुछ खाना या पीना एटसेक्टरा।

कई किलोमीटर चल चुका था सिद्धांत छोटी सी बालकनी में। 

 निराश होना उसका स्वभाव नहीं था, ना ही रोना। सिद्धांत ने तो तब भी हौंसला नहीं खोया था जब डॉक्टर्स ने वेदांत के समय डिलीवरी में कंप्लीकेशन्स आ जाने की वज़ह से अंजली की जान खतरे में बता दी थी।

सब कितने घबरा गए थे। 

अम्मा जिसको अपनी लव मैरिज वाली बहु फूटी आँख नहीं सुहाती थी। प्रेगनेंसी पीरियड में जिसने एक मौका नहीं छोड़ा अंजली को सुनाने, उसे परेशान करने का...उसकी सलामती की दुआएं माँग रही थी रो रोकर।

"मैंने कितनी बार कहा था अंजली को उस घर से चलने के लिए।

लेकिन मेरी अंजली... वो सिर्फ पत्नी तो थी ही नहीं मेरी। वो तो बेहद सुलझी हुई औरत है जो सभी रिश्तों को संतुलित करना जानती थी। 

कभी हाँ कह सकती थी भला?

यही बोली, "माँ को छोड़ दोगे, बीवी के लिए?

मैदान छोड़कर सिर्फ कायर भागा करते हैं और...."

"बस..बस पता है मुझे तुम बहुत बहादुर हो।"

मैं प्यार से अंजली का माथा चूम लिया करता था।

सही कहा है किसी ने " चुम्बन की असल मादकता माथे पर महसूस की जाती है।"

सात ही महीने हुए थे.. जब अंजलि घर का काम करते हुए देहली की सीढ़ियों से फिसल गई।

 कितना चिल्लाई थी, छट-पटाई थी, दर्द की वजह से।

 हम सब हॉस्पिटल लेकर भागे थे उसे। हॉस्पिटल में कोई भी तो हमें अटेंड नहीं कर रहा था ठीक से।

 उस समय पैसे भी कहाँ थे मेरे पास!

 एक पुरुष के लिए कितने शर्म की बात है कि उसके पास उसकी बीवी और बच्चे के भरण-पोषण के लिए पैसे ही ना हो!

 ऐसा नहीं था कि मैं कोई नाकारा निकम्मा था, बस यूं कहिए कि मैंने शादी का फैसला थोड़ा जल्दी ले लिया।

 आजकल के बच्चे तो बहुत समझदार हैं, शादी तभी करते हैं, जब पैरों पर खड़े हो जाते हैं... जब तन, मन और धन तीनों से अच्छी तरह से तैयार हो जाते हैं।

 मैं तो दीवाना हो गया था। मेरी सोच, समझ, बुद्धि पर प्यार का पर्दा जो पड़ गया था।पिता जी से मैं कितना डरा करता था।

लेकिन अंजलि के लिए, उनके सामने चौड़ा सीना कर कर खड़ा हो गया था मैं।

 बिल्कुल वैसे ही, जैसे सलीम अनारकली के लिये खड़ा हो गया होगा अकबर के सामने।  इसी को लड़कपन कहते होंगे या फिर प्यार का पागलपन!

 अंजलि ने तो बहुत समझाया था, थोड़ा इंतजार कर लेते हैं।

 तुम कुछ बन तो जाओ लेकिन मुझ पर तो प्यार का भूत सवार था।

 कितनी छोटी उम्र में ही अंजलि मां बन गई। फिर भी वह मुझसे बहुत अधिक बहुत ज्यादा समझदार थी।

 उसने मेरे घर को ऐसे संभाल लिया जैसे कोई अनुभवी महिला हो।

  उसकी मम्मी की परवरिश का नतीजा ही था कि वह इतनी समझदार थी।

 पहली बार मैंने अम्मा को अंजलि के लिए रोते हुए देखा। एक तरफ जहां मैं अंजली के लिए दुखी था, वहीं अम्मा के इस रूप को देखकर कहीं ना कहीं अंदर से खुश भी था। दोनों बहने कांता और सुधा,

 उन्होंने भी भरपूर साथ दिया था उस समय। सब कुछ याद है मुझे।

एक ने अपने कानों की बालियां निकालकर डॉक्टर साहब के सामने रख दी थी और दूसरी ने अपनी अंगूठी।

  सोचता हूँ ! रिश्ते भी इतने अजीब क्यों होते हैं, वैसे तो उन दोनों के मुँह से एक शब्द भी ना निकला कभी तारीफ का, अंजली के लिए और आज...

आज उसके जीवन बचाने को बचाने के लिए वे अपनी कीमती प्यारी चीजें, डॉक्टर को देने को तैयार हैं।

 बड़ी किस्मत थी मेरी! जो डॉक्टर भी हमदर्द निकला! उसने अंजली के केस को अच्छी तरह संभाल लिया।

 शुरू में तो हम सब बहुत ही डर गए थे, जब उसने कहा कि अंजलि के बचने की उम्मीद ना के बराबर है।

 छोटी उम्र का था मैं। पिताजी चल ही बसे थे हमारी शादी से पहले। अंजली तो बचपन से ही पिता के अभाव में पली थी।

ले देकर एक घनिष्ट पड़ोसी थे वो भी हमारी मदद कम कर रहे थे, हमसे अपनी तीमारदारी ज्यादा करा रहे थे। 

जा बेटा, जरा मेरा गुटखा ला दे।

अब मेरी चाय का टाइम है।

घर से खाना लाना तो सलाद जरूर लाना।

मैं आजकल के बच्चों जैसा होता तो कब का चलता कर दिया होता उन्हें।

लेकिन पहले समय के बच्चे रिश्तों की बड़ी लिहाज़ किया करते थे, चाहे उसके लिए खुद कितना भी परेशान हो रहे हों!

मेरे ऊपर फिल्मों का असर भी बहुत था। 

अंजली की बात सुनकर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं दीवार में जाकर सर मार रहा था।

 अच्छा हुआ बहुत जोर से नहीं मारा, नहीं तो पकौड़े की तरफ फूल जाता और फिर बाद में किसी को दिखाने लायक नहीं रहता, क्या पता हमेशा के लिए निशान पड़ जाता? (सिद्धांत अपने बचपने पर मन ही मन मुस्कुराने लगा)

 मुसीबत की घड़ी आई तो सही लेकिन खुशियां देकर गई।

 उस समय को कभी भूल ही नहीं पाऊंगा मैं!


वह दोनों ही घटनाएं- अंजलि का गिरना और वेदांत का घर में आना... दुख और सुख दोनों की चरम अनुभूति थी।

 बहुत दुख के बाद जब सुख आता है तो उसका आनंद अलग ही होता है।

 वेदांत क्योंकि सात ही महीने का था इसलिए कमजोर था। लेकिन डॉक्टर ने कहा कि तुम बहुत सौभाग्यशाली हैं जो इतनी बड़ी ट्रेजडी से इतनी अच्छी तरीके से निकल गए। जरूर किसी बड़े का बहुत आशीर्वाद है तुम्हारे ऊपर। तुम्हारी बीवी भी स्वस्थ है और बच्चा भी। हमने सब चेक कर लिया है। कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं है।

 हाँ! लेकिन जो टैबलेट दी हैं , विटामिंस और मिनरल्स की, खानी होंगी रेगुलर।

 ज्यादा महंगी नहीं लिखी हैं,

 सस्ती हैं, तुम अफ़्फोर्ड कर पाओगे।

मैंने पकड़कर हाथ चूम लिया था डॉक्टर का। आंखों ही आंखों में आभार माना था उनका।

 शायद ऐसे ही समय के लिए डॉक्टर को भगवान कहते हैं। मेरी अंजलि को बचाया, वेदांत को बचाया।

 मेरे लिए तो आज भी डॉक्टर भगवान ही है। काश! कोई एक और वैसा ही डॉक्टर आ जाए और इस बार भी मेरी अंजलि को बचा ले!

 काश! किसी बड़े का आशीर्वाद आज भी उसकी उम्र को लग जाए।

 मेरी उम्र भी उसको लग जाए!

 मैं नहीं देख पाऊंगा.... नहीं देख पाऊंगा मैं... (वो फिर से वापस अपने वर्तमान में लौट आया और दोनों हाथों में मुंह छिपाए सुबकने लगा)


कल गीतांजली को हॉस्पिटल लेकर जाना है। क्या करेगा सिद्धांत? कैसे छुपायेगा जो नहीं बताना चाहता वो उसे?



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रचनाएँ
अंतिम मिलन
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