पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि सिद्धांत को डर है कि अंजली की बीमारी कहीं उसके पिता का दिया शाप तो नहीं। क्या सिद्धांत का ये डर दूर होगा? अंजली के चेहरे पर फिर से मुस्कान बिखेर पायेगा वो?
पढ़िए आगे...
कौन बहु ये कर सकती है? आजकल की बहुओं से तो ये उम्मीद कभी नहीं की जा सकती। उसने तो अपनी मां, जो बेचारी अंजली के बाद बिल्कुल अकेली पड़ गईं, तक को भी अपने घर आने के लिए मना कर दिया था क्योंकि अम्मा को पसंद नहीं था।
कितनी तड़प रही होंगी! अंजली की मम्मी
अपने नवासे को देखने के लिए और कितना चुभ रहा होगा अंजली को, ऐसे वक्त में अपनी खुद की माँ का साथ ना होना।
मैं तो बुलाना चाहता था उन्हें लेकिन अंजली ने आंखों ही आंखों में समझा दिया था मुझे।
नवासे की खुशी फ़ोन पर ही दी थी मैंने उन्हें।
अंजली सही समय पर अपने दिल को कितना पत्थर कर लेने में खूब माहिर थी।
वेदांत जब पहली बार अम्मा की गोद में आया, तो उसकी आंखों की चमक देखकर मेरे दिल ने सिर्फ एक बात कही, "थैंक्यू अंजलि"
वेदांत को अम्मा की गोदी में देखकर अंजलि सुबक-सुबक कर रोने लगी थी। खुशी का एक रूप ऐसा भी होता है जो आंसुओं की शक्ल में दिखाई देता है।
पहली बार देखा... दोनों का ऐसा मिलन!
उस दिन अम्मा सचमुच माँ लग रही थी।
एक मां ने दूसरी मां को फिर से मां जो बनाया था।
उस दिन सारी बाजी पलट गई। अपनी मां को खुश देख कर सुधा और कांता ने भी गीतांजलि को पहली बार गले लगा लिया। मुझे नहीं पता था कि घर में आया एक नया मेहमान इतना सब कुछ बदल सकता है??
एक छोटे से जीव में इतनी ताकत होती है?? वेदांत को गोद में लेकर हम सब जब घर पहुंचे तो अम्मा सबसे पहले उसे पिताजी की फोटो के सामने लेकर गई।
यही तो कह रही होगी मन में कि माफ कर दो ना अब सिद्धांत को।
देखो! आपको फिर से एक घर में ले आया है गीतांजलि को भी माफ कर दो, उसने हमारा परिवार फिर से पूरा कर दिया है।
पिताजी ने जरूर माफ कर दिया होगा हम दोनों को, अम्मा के कहने पर तो कर ही दिया होगा ना।
तो फिर आज?
नहीं! अंजलि को यह जो कुछ भी है यह उनका दिया हुआ शाप नहीं है।
उनकी बददुआ नहीं है!
चौपाटी पहुंचकर ड्राइवर ने ही कहा, "यहीं उतरना है ना आपको साहब?"
वरना दोनों अपने आप में खोए ही रहते।
गाड़ी से उतरकर धीरे-धीरे लहरों की तरफ बढ़ रहे थे दोनों। जब कोई ऊपर से शांत हो और अंदर से बेचैन, तो धड़कनें कदम से कदम मिला लेती हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी संगीत को सुनकर हमारे पाँव उसी की लय में चलने लगते हैं।
ना अंजलि सिद्धान्त को कुछ कह रही थी और ना सिद्धांत अंजलि को।
कुछ अजीब ही सिचुएशन थी। दोनों जाकर समंदर के किनारे एक पत्थर पर बैठ गए। सिद्धार्थ ने गीतांजलि की आंखों में नज़रें चुराता हुआ था सा देखा।
दूसरी ओर अंजली की आंखों में प्रश्न था, जैसे वह सिद्धांत से यह पूछ रही हो कि क्या तुम्हें पता है कि मुझे क्या हुआ है?
जान कर भी अंजान बने हुए दोनों- समंदर की लहरों को पढ़ने में लग गए। हर समय बक-बक करता हुआ सिद्धांत आज कुछ बोल ही नहीं पा रहा था और अंजलि को उसकी यही बात सबसे ज्यादा अखर रही थी।
सिद्धांत ने अंजली से पूछा "वडा पाव खाओगी? यहां का मशहूर है।"
"ले आओ, भूख तो लगी है।"अंजली ने सिद्धांत की आंखों में देखते हुए जवाब दिया। सिद्धांत को जाते हुए देखते हुए, वह मन में सोच रही थी, "जिस तरह आज मैं इस जगह पर बैठी सिद्धांत को दूर जाते देख रही हूं, वैसे ही क्या वह समय जल्दी ही आने वाला है? जब सिद्धांत बैठा होगा और मैं उससे दूर हो रही होंगी??
वडापाव लाते हुए सिद्धांत ने अपनी दिमागी उथल-पुथल को नियंत्रण में कर लिया।
उसने सोचा, "अगर वह ऐसे ही चुप रहेगा तो अंजलि को शक हो ही जाएगा, इसलिए उसे नॉर्मल होना होगा।"
"लो भई! तुम्हारा वडापाव, तुम्हारे वड़े पाव में हरी चटनी ज्यादा है जैसा कि तुम्हें पसंद है " पाव देते हुए सिद्धांत बोला।
" हमेशा मेरी पसंद के पीछे पड़े रहते हो, कभी अपनी पसंद का ख्याल भी रख लिया करो!" सिद्धांत को डाँटती हुई बोली वो।
" अरे यार! डलवा कर तो लाया हूं, लाल चटनी अपने पाव में।" गीतांजलि हँस दी। सिद्धांत अंजलि को निहारते हुए बोला," यार मेरा तो मन ही नहीं हो रहा है, यहां से जाने का।
ये समंदर की लहरें!!
ये शांति !!
और साथ में तुम्हारा प्यार!!
और क्या चाहिए।" पाव को मुँह में भरता हुआ, बोलता जा रहा था वो।
"अंजली! सोच रहा हूँ, ऑफिस छोड़ दूं।
क्या यार! रिटायर होने के बाद भी मैं काम कर रहा हूं।
मुझसे ज्यादा बड़ा गधा कोई होगा ही नहीं। टाइम है ऐश करने का और मैं हूं, कि वही नौ से पांच की जॉब।
यार तुम्हारे साथ खुलकर टाइम कब स्पेंड कर पाऊंगा??" मुँह पोंछता, हाथ झाड़ता हुआ बोल रहा था वो।
"बी प्रैक्टिकल सिद्धांत, क्या हुआ है तुम्हें? एक बात बताओ इतनी लंबी छुट्टियां इंजॉय कर सकता है कोई?
लाइफ छुट्टियों से नहीं, काम से चलती है। रिटायरमेंट के बाद भी काम करना तुमने ही तो चुना था और बल्कि मुझे ठीक नहीं लगा था।
सारे दिन घर में रहकर करते भी क्या? क्या हम दोनों में लड़ाई नहीं होती? अच्छा ही तो हुआ जो तुमने ऑफिस ज्वाइन कर लिया।" सिद्धांत के फैसले को याद दिलाते हुए अंजली ने कहा।
"अरे नहीं यार! मैं थक चुका हूं, मुझे नहीं करना है काम।
पेंशन में, हो तो जाएगा और फिर दोनों बच्चे भी भेजते हैं हमें पैसे, किस बात की चिंता है? मैं इस्तीफा दे दूंगा।" सिद्धान्त फुल बहस कर रहा था।
देखो...जॉब करने से एक रूटीन बना रहता है। हम एक्टिव रहते हैं। ऑफिस जाते हो तो कम से कम नहाते-धोते हो। सारे काम टाइम पर करते हो, अच्छे कपड़े पहनते हो, बाहर निकलते हो,
सारे दिन घर में पड़े रहने से सिर्फ बीमारियां बढ़ती हैं।" अंजली ने भी सिद्धांत को समझाने की ठान रखी थी शायद।
"सच! घर में पड़े रहने से बीमारी होती है?
क्या तुम औरतें इसी कारण ज्यादा बीमार पड़ती हो क्योंकि तुम लोग घर में रहती हो?" सिद्धांत ने अंजली का दाव उल्टा उसी पर चला दिया।
"धत्त! घर तो हमारा ऑफिस है, हम ऑफिस की तरह घर को चलाते हैं।" एकदम अंजली को सिद्धांत की चालाकी समझ आ गयी।
रुककर बोली, "ठीक है, अगर तुम्हें ज्यादा ही छुट्टियां-छुट्टियां लग रहा है, तो एक काम करो कुछ दिनों के लिए छुट्टी अप्लाई कर दो। जब दिल भर जाए तो ऑफिस दोबारा से जॉइन कर लेना।" अंजली को समझाने का यही तरीका समझ आया।
"ठीक है! अभी तो बच्चे आ रहे हैं लेकिन मेरा मन है कि दोनों बच्चों के पास भी जाया जाए।
अपने पोते और पोती के साथ खेलने का मन है मेरा।"सिद्धांत ने अंजली की कमजोर रग पर हाथ रख दिया।
यह बात सुनकर तो गीतांजलि के चेहरे पर भी चमक आ गई। सिद्धांत का ये आईडिया तो उसके मन को भी भा गया।
आंखें मटका कर बोली, "इस बात के लिए चलना है, तो चलते हैं, बड़ा मजा आएगा।
शुचि कितनी बार कहती है, 'मम्मी आ जाओ ना, कभी हमारे साथ भी समय बिताओ।' मुझे वाणी और कार्तिक की बहुत याद आती है मुझे उनके साथ खेलना है समय बिताना है"
जब-जब अंजली के चेहरे पर चमक आती है,तब-तब सिद्धांत का कई मिलिग्राम खून बढ़ जाता है। वो खुद नहीं जानता कि अंजली के बिना उसका क्या वजूद है।
बेटे-बहुएं, पोते-पोती सब ठीक है लेकिन अंजली की तरह ना तो संघर्ष के साथी हैं, न ही जीवन के।
संसार में बहुत लोग होते हैं जो हमें जानते हैं, लेकिन क्या सब सच में अपने होते हैं?
सबसे अपना तो वही हुआ ना जिसके सामने रोते हुए हमें कभी हिचक ना हो।
यकीन हो कि वो हमारे रोने की हंसी नहीं उड़ाएगा। हमारे आंसुओं का अपमान नहीं करेगा। सिद्धांत जब-जब रोया है, अंजली का दिल उससे ज्यादा रोया है और जब जब हंसा है उसका दिल मारे खुशी के पागल भी हुआ है। यही तो प्यार है ना?
दो ही पल में सिद्धांत ने इतना सोच लिया था। जबसे अंजली की बीमारी ने उसकी दुनिया को हिला दिया है, उसके सोचने की गति कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गयी है।
इंसानी जज्बात भी सचमुच समंदर की लहरों जैसे ही होते हैं।
पल में उठना, पल में गिरना
अभी दोनों कितने शांत और मायूस थे और इस पल???
अंजली ने सहमति वाली ताली मारी और कहा, "यह प्लान अच्छा रहेगा! बच्चे आएंगे तो उनके साथ डिस्कस करेंगे।"
अंजली के चेहरे पर खिली मुस्कान देखकर सिद्धांत ने शरारत भरे लहजे में समंदर से पानी अपने हाथ में लिया अंजलि के गाल पर दे मारा। पानी की बूंदें, धूप में, उसके गोरे गालों पर चमकती हुई दिखाई दे रही थीं।
अंजली भी तो बच्ची बन गई उसने एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन बार पानी लेकर सिद्धांत की तरफ फेंका और उसकी शर्ट को लगभग गीला कर दिया।फिर खुद ही सिद्धांत के शर्ट के भीतर से झाँकते हुए उसके बलिष्ठ बदन को ललचायी नज़रों से देखने लगी।
बच्चों की बातें भी मियां बीवी के प्यार को कितने गुना बढ़ा देती हैं! अब ना अंजली को कोई कमजोरी महसूस हो रही है ना सिद्धांत को उसकी चिंता। बच्चों से मिलने के विचार से ही दोनों ऊर्जा से फिर से भर गए थे।
बच्चों के आने की खबर सुनकर बहुत खुश है अंजली। क्या उसकी खुशी को लगेगी किसी की नज़र?