पिछले भाग में आपने सिद्धांत और गीतांजली के कॉलेज का एक मज़ेदार किस्सा पढ़ा, साथ में ये भी पढ़ा कि सिद्धांत ने गीतांजली को कितनी आसानी से मुम्बई चलने के लिए मना लिया। अब आगे...
गीतांजलि सामान पैक करती जा रही थी और सुनहरे सपने बुनते जा रही थी।
उसने कभी सोचा नहीं था कि अपने उन प्यारे दिनों को दोबारा जीने का फिर से मौका मिलेगा। वह मन ही मन सिद्धांत को धन्यवाद कर रही थी।
सचमुच! इन लम्हों ने उसके जीवन को फिर से एक नई ऊर्जा से भर दिया था।
कहाँ तो वह तीन-चार दिन पहले इतनी कमजोर महसूस कर रही थी और उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन आज... आज ना जाने कहां से लड़कपन का वही जोश महसूस करने लगी थी वो।
पुराने कपड़े जो उसने डंप कर दिए थे, आज फिर से निकाल बैठी थी।
शीशे के सामने अपने ऊपर लगा लगा कर अपनी पुरानी पोशाकें देख रही थी।
जब जब वो अपनी पुरानी ड्रेसेस अपने ऊपर लगाकर देखती, उसे उस ड्रेस से जुड़ी कहानी याद आती।
असमंजस में थी कि कौन सी ड्रेस पहने जिसमें उसे देख कर सिद्धार्थ मचल उठे और वही बन जाए, वही पुराना कॉलेज वाला सिद्धार्थ।
यह तैयारी ऐसी थी, जिसमें वह हेमलता की मदद भी नहीं ले सकती थी।
जाने वह उन दोनों के बारे में क्या सोचती? क्या कहती?
बुढ़ापे में भी इन्हें जवानी सूझ रही है।
उसे सब खुद ही तैयार करना था, वह भी तब जब कोई ना हो।
तैयारी करते करते अंजलि सोचने लगी कि ऐसा क्यों होता है कि लोग सोचते हैं बूढ़े होने के बाद प्यार खत्म हो जाता है?
क्या बूढ़े लोगों को कोई हक नहीं कि वह भी जवानों की तरह ही बहक सकें!
उन्हीं की तरह मस्ती में जी सकें!
उन्हीं की तरह प्यार कर सके!
पुराना सामान निकालते हुए उसकी पुरानी फोटो निकल आई जो उन्होंने पहले करवा चौथ पर खिंचवाई थी।
फोटो देखते ही वह लगभग पैंतीस साल पहले के समय में चली गयी। शादी करके जब पहली बार उसने इस घर में कदम रखा तो सासू मां कितनी नाराज थीं!
वह सारी रस्में तो निभा रही थीं लेकिन बेमन से । उन दोनों की शादी कितनी मुश्किलों से हुई थी यह वह दोनों ही जानते थे। अगर वह अपनी चाहत के लिए इतना ना लड़ते तो कभी एक नहीं हो पाते।
(अपने बड़ों का सम्मान करना बहुत अच्छी बात है लेकिन उसके लिए अपनी खुशियों को, अपने जीवन को बलि चढ़ा देना, कहीं से भी न्याय संगत नहीं है) यह बात उसे सिद्धांत ने ही सिखाई थी।
सिद्धांत की मम्मी और उसकी दो बहनें, सब ने मुंह फुला रखा था गीतांजलि को देखकर। उन्हीं के कान भरने के कारण पड़ोसी भी गीतांजलि को बुरा ही समझ रहे थे।
उस जमाने में प्रेम विवाह एक बुराई ही थी। उसको जल्दी से एक्सेप्ट नहीं किया जाता था। लव मैरिज वाली दुल्हन को एक अच्छे घर की लड़की नहीं माना जाता था।
क्या-क्या सपने थे!
सुहागरात का एक कमरा होगा!
उसे फूलों से सजाया गया होगा जैसे उसने फिल्मों में देखा था।
वह लाल जोड़े में सिमटी हुई सी पलंग पर बैठी होगी!
सिद्धांत उसे अपनी बाहों में भर लेगा और बत्ती बुझ जाएगी।
लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं था। कमरे की हालत बहुत खराब थी, जो हम दोनों को दिया गया था। खिड़की पर पर्दा भी नहीं था। सामने से स्ट्रीट लाइट की रोशनी कमरे में भर गई थी। जिससे कमरे में अंधेरा हो ही नहीं सकता था।
ससुराल वालों ने गुस्से की वजह से एक नई चादर भी बेड पर नहीं बिछाई थी।
भारतीय परिवारों की सबसे अजीब बात यह है कि वह अपने बेटे का गुस्सा बहू पर निकालते हैं। हर बात के लिए बहू को दोषी मानते हैं। बेटा चाहे कितनी भी गलती कर ले वे माफ कर सकते हैं। लेकिन बहु की हर गलती एक पाप होती है।
खैर, जो हो चुका, वो हो चुका,
गीतांजली ये तो समझ गयी थी कि आज जो भी परिस्थिति है वह बदल तो नहीं सकती। उसे ऐसी परिस्थिति में ही जीना होगा।
ज्यादा अच्छा है वो इसे जितना जल्दी हो सके स्वीकार कर ले।
डूबते को तिनके का सहारा ही काफी होता है और सिद्धांत तो पूरी नाव थी। इस नाव के सहारे इस सागर को भी पार कर ही लेगी वो। मन ही मन यह सोचकर वह मुस्कुरा ही रही थी कि सिद्धांत कमरे में आया, पीछे से गीतांजलि के कंधों पर हाथ रख कर बोला "कैसी लगी सुहाग सेज?"
अंजलि उसके सीने से लगकर बोली, "तुम्हारे साथ तो कांटो की सेज भी सुहाग सेज है।
मेरे लिए ये भी बहुत सुंदर है।
फिर दोनों हंस पड़े।
अपनी अनोखी सुहाग रात की मिठास को चख ही रही थी कि हेमलता ने उसका स्वाद खराब कर दिया।
"माँजी कल के लिए खाने में क्या बना दूँ?
दो तीन दिन तो लग ही जायेंगे आपको। आपकी तबियत वैसे ही अभी पूरी तरह ठीक नहीं है। वहाँ पर बाहर का खाना ज्यादा खाओगे तो फिर से तबियत खराब हो सकती है।" हेमलता को उन दोनों के खाने की फिक्र थी।
"अरे बस कर दादी माँ, हमें पता है तू हमारी बहुत फिक्र करती है। चल थोड़ी सी मट्ठीयाँ और नमकपारे बना दे। सुबह शाम के नाश्ते में अच्छा काम आएंगे। बाकी हम वहाँ पर फल वगैरह ही ज्यादा खाया करेंगे। बाहर का पका खाना तो हम दोनों को वैसे ही कम पसंद है। पता तो है तुझे।" गीतांजली ने हेमलता को इंस्ट्रुक्शन्स दे दीं।
सिद्धांत के आने का वक़्त हो चला था। अंजली ने जितना सामान फाइनल करना था कर लिया था। अब जो कुछ थोड़ा बहुत रह गया था उसके लिए अभी शॉपिंग के लिये जाना था उसे सिद्धांत के साथ।उसने जल्दी जल्दी लिस्ट बनाई और सिद्धांत के लिए आज चाय के साथ सूजी के कटलेट्स की तैयारी करनी थी।
हेमलता झाड़ू पोंछा करने के साथ -साथ घर के बर्तन, कपड़े, खाना वगैरह सभी काम करती थी। फिर भी अंजली जब तक सिद्धांत को अपने हाथों से बनाकर ना खिलाये तो उसका दिन पूरा नहीं होता था।
सिद्धांत आज पहले से ही भागता-दौड़ता घर में घुसा। उस पर भी तो जरूरी कागज़, टिकटें, रुपये पैसे आदि की जिम्मेदारी थी। उसने आते ही चेंज वगैरह करके चाय की फरमाइश की। चाय, सूजी कटलेट्स के साथ हाज़िर हो गयी।
"तुम तैयार हो?" उसने अंजली से पूछा।
गीतांजली ने भी लिस्ट और बैग तैयार कर रखा था। दोनों बिल्कुल समय ना गंवाते हुए जरूरी सामान खरीदने पड़ोस की लोकल मार्किट में चले गए।
आज कितने दिनों बाद वे इस तरह साथ शॉपिंग करने निकले थे। वरना अंजली को तो अरसा बीत गया था मार्किट गए हुए।
कितने सालों तक दोनों पति पत्नी इसी तरह अपनी गृहस्थी जोड़ा करते थे। कभी सोम बाजार, कभी शुक्र बाज़ार। जहाँ भी, जो चीज़ सस्ती मिला करती, वहीं पहुँच जाते। इसी तरह पायी पायी बचाकर ही घर जोड़ा था दोनों ने।
इस बार वो परिवार के लिए नहीं, अपने लिए यहां आए थे।
अचानक एक सायकल पर बँधी एक पेटी पर "पटियाले की मशहूर छल्ली" लिखा देखा। उसको देखते हुए देखकर, अंजली ने भी उस ओर देखा। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो आंखों ही आंखों में मुस्कुरा दिए।
अपने लिए छल्ली पैक करवाकर गाड़ी की तरफ चल दिये। गाड़ी में सामान रखकर सिद्धांत ने छल्ली की लोकल रैपिंग वहीं खोल दी। उसने अंजली को याद दिलाया, " याद है ना इसकी कहानी?"
"उस कहानी को कैसे भूल सकती हूँ मैं!" अंजली सिद्धांत को प्यार से निहारने लगी।
दरअसल बात उस समय की है जब अंजली फर्स्ट टाइम प्रेग्नेंट थी। माँ ने घर में कोहराम मचा रखा था। दोनों की लव मैरिज थी इसलिए उनकी आने वाली औलाद भी परिवार के लिए शापित थी। लेकिन सिद्धांत के लिए उसका पहला बच्चा किसी सपने जैसा था। वो अपने बच्चे और अंजली को संसार की सारी खुशियां देना चाहता था। आर्थिक हालात इतने ज्यादा खराब थे कि वो चाहकर भी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहा था अंजली की। ऐसा नहीं कि अंजली की ऊंची ख्वाहिशें थीं। लेकिन अच्छा पौष्टिक खाना उसकी सबसे बड़ी जरूरत थी उस समय। एक बार एक छल्ली वाले कि आवाज़ सुनकर उसका छल्ली खाने का मन हो आया। सिद्धांत ने अपनी माँ से कुछ पैसे मांगे तो उन्होंने साफ मना कर दिया। फिर क्या था, सिद्धांत तो सिद्धांत था। टंकी से जाकर अंदाजे से दो किलो अनाज निकाला और छल्ली वाले से सौदा पटा लिया। दो किलो अनाज के बदले दो छल्ली मिल गयी। अंजली को इतने शौक से खाते देखकर सिद्धांत को बड़ा गर्व हुआ अपने आप पर।
अम्मा को जब ये पता चला तो सिद्धान्त ने उनके नुकसान की भरपाई दो दिन भूखा रहकर की। ये ही वो दिन था जब सिद्धांत के प्यार की इंतेहा का सारे घरवालों को पता चल गई। उस दिन के बाद से फिर किसी ने अंजली के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया। कम से कम सिद्धांत के सामने तो नहीं। एक दिन ऐसा भी आया जब वेदांत आ गया और अम्मा भूल गयी कि अंजली लव मैरिज वाली दुल्हन है।
अगले भाग में पढ़िए कि मुम्बई शहर सिद्धांत और गीतांजली के लिए कैसा रहेगा? क्या ये
शहर उनकी डोलती नैया को कोई सही दिशा देगा?