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अंतिम मिलन भाग 10

12 अक्टूबर 2024

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पिछले भाग में आपने पढ़ा कि सिद्धांत ने किस तरह अंजली को खुश करने के लिए वो सब किया जो वह कर सकता था। लेकिन अपने दिल के दर्द को निकलने से वो रोक नहीं पाया, 

अब पढ़िए आगे...


जब कोई अकेला बैठ कर यादों के सागर में गोते लगा रहा होता है तो पता नहीं होता कि कौन सी लहर कहाँ ले जा रही है।

यादें... लहरों की तरह मीलों लंबा सफर तय कर लेती हैं,

 बार-बार समय और स्थान बदल लेती हैं। कोई सेट पैटर्न नहीं होता सोचने का।

 अचानक सिद्धांत को अहसास हुआ कि सुबह के 4:00 बज चुके हैं और 5:00 बजे अंजलि उठ जाती है।

 जब उसकी सूजी हुई आंखें देखेगी तो जरूर पूछेगी कि क्या बात है?

 इसलिए अब उसे सो जाना चाहिए।

 एक घंटे भी आराम मिल जाएगा तो वह नॉर्मल लगेगा। यह सोचकर सिद्धांत सो गया।पिछली रात के सुकून और होटल के नर्म बिस्तर की वजह से अंजली भी समय पर नहीं उठ पाई।

 उसकी आंख सुबह सात बजे खुली और सिद्धांत की तो सात बजे भी नहीं।

उसने हड़बड़ी में उठकर देखा तो घड़ी में सात बजे थे। उसको बहुत ऑकवर्ड लगा कि आज  इतनी देर तक कैसे सोते रह गई ?

वह तो हमेशा पाँच बजे उठ जाती है!

 फिर मन ही मन शर्माई,

 क्या हो गया तो.. अगर ज्यादा सो ली?

 ऐसा भी क्या करना था मुझे!

 सिद्धांत की ओर प्यार से देखा,

 मन में सोचा- चलो 5 मिनट और सिद्धांत के साथ सो जाती हूं।

उसके साथ फिर से सट कर लेट गई।

 अपनी कोमल उंगलियों को उसके गालों पर घुमाने लगी।

 कभी उसकी पलकों के ऊपर अपनी उंगली से काजल लगाती।

 कभी उसकी भवों पर उंगली से पेंसिल सी फिराती, 

कभी अपनी तर्जनी को उसकी नाक पर फिराती।

 कभी कान चून्ट लेती

तो कभी बालों को झकझोड़ देती।

सिद्धांत को पूरा परेशान करने का मूड था उसका।

सिद्धांत जितना चिढ़ता, वो उसे उतना ही परेशान करती।

 उसे क्या पता कि रात भर वह तो चैन से सोई, लेकिन सिद्धांत...??

वो सब अंजली कहाँ जानती थी।

 चलो ...सुनो.. उठो ना!

 कितनी देर तक सोते रहोगे?

" कितना टाइम हुआ है?" सिद्धांत ने पूछा "सात बज रहे हैं" अंजली ने अपने गाल से, सिद्धांत का गाल मिलाते हुए धीमें से कहा।

" बस थोड़ी देर और, मैं आधा घंटा और सोना  चाहता हूं, प्लीज मुझे सोने दो।" नींद में ही बड़बड़ाया वो।

 "अच्छा ठीक है, मैं फ्रेश होकर आती हूं। लेकिन बस आधा घंटा।"

एक अच्छी पत्नी की तरह उसने सिद्धांत को इज़ाज़त दे दी।

यह आधा घंटा सिद्धांत ने अपने सोने के लिए नहीं, बल्कि अपने प्लान की तैयारी के लिए माँगा था।  दुष्यंत और वेदांत के साथ मिलकर वो योजना बना चुका था । तभी तो

उसने पिछले दिन मौका पाकर वह टैबलेट खरीद ली थी, जिससे थोड़ी देर के लिए अंजलि को चक्कर आना था,या कमजोरी महसूस होनी थी।

 अंजलि को फ्रेश होने के बाद चाय की तलब लगती थी। सिद्धांत ने आवाज़ लगाकर अंजलि से पूछा, "चाय का आर्डर कर दूँ क्या? आने में भी दस मिनट लगेंगे।"

 उसने बाथरूम में से ही कहा, "हां, ऑर्डर कर दो।"

 दस मिनट बाद अटेंडेंट चाय लेकर आया। सिद्धांत ने मौका पाकर, टैबलेट अंजलि की चाय में घोल दी। अब वह मन ही मन सोच रहा था कि अंजलि को पता ना लग जाए! इसके टेस्ट में कुछ फर्क तो नहीं आ जाएगा? लेकिन शुक्र है!

 उसे कुछ भी पता नहीं चला।

 बल्कि वह बोली, "चाय बड़ी टेस्टी है इस होटल की!"

 अंजली पर इस टेबलेट का असर हो इससे पहले सिद्धांत जल्दी से तैयार हो गया।

 जैसा सोचा था वही हुआ, उसे कमजोरी सी महसूस होने लगी।

 वह बोली, "सिद्धांत मुझे कुछ हो रहा है.." "क्या हो रहा है?" अनजान बनकर सिद्धांत बोला।

 अंजली ने सिर पकड़कर जवाब दिया, "पता नहीं, कुछ अजीब सा लग रहा है!

 मुझे चक्कर सा आ रहा है!" 

चलो तुम्हें हॉस्पिटल ले चलता हूं।

 सिद्धांत ने कैब बुलाई  टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के लिए।

  "वहां जाकर प्लान के मुताबिक, ओपीडी में रजिस्ट्रेशन कराया।

 जबकि उसकी अपॉइंटमेंट डॉ तरंग से पहले से ही थी।

 डॉक्टर कृष्णमूर्ति ने डॉक्टर तरंग को सारी बातें पहले ही समझा दी थी।

 सिद्धांत ने डॉक्टर के केबिन का दरवाजा खोला। सामने एक स्मार्ट हैंडसम यंग डॉक्टर बैठा हुआ था। डॉक्टर की पर्सनैलिटी देखकर सिद्धांत को विश्वास सा लगा कि यहां आकर उसने शायद अपना समय बर्बाद नहीं किया है, लेकिन दूसरे ही पल ख्याल आया की किसी को इतनी जल्दी जज करना ठीक नहीं। 

अंजलि को पता ना चले इसलिए बस वही बात हुई कि सुबह अचानक कमजोरी महसूस हुई, उसे।

 डॉ तरंग ने चेकअप करवाने के लिए कहा जैसा कि प्लान में था।

 अंजलि को अजीब लगा कि जरा से चक्कर आने की वजह से यह सारे चेकअप क्यों कराये जा रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही तो दिल्ली में उसके सारे चेकअप हुए हैं! चेकअप कराने के बाद जब वह दोनों डॉक्टर के केबिन में दोबारा गए तो डॉक्टर ने कहा, "शी विल बी ऑल राइट, कल रिपोर्ट आ जाएंगी, फिर देख कर बताएंगे। अभी आप इन्हें ले जा सकते हैं।"

 सिद्धांत ने होटल के कमरे में वापस जाना ठीक नहीं समझा वह अंजलि को चौपाटी लेकर गया।

इंसानी फितरत है, जब कभी इंसान मुसीबतों से घिर जाता है तो वह अपने अंदर झांकने लगता है।

 जीवन में दुख ना मिले तो आदमी अपने मन के भीतर झांके ही ना। 

इसीलिए शायद ईश्वर ने दुख बनाया हो कि कभी तो मौका मिले, कभी तो वह समय आए जब इंसान अपने मन के भीतर झांके! आज गीतांजलि को अपनी तबीयत को लेकर कुछ शक सा है। 

कल की खुमारी! कल की खुशी! कल का प्रेम! उसके दिलो-दिमाग से हवा हो चुका है। उसके मन में एक डर समा गया है कि शायद उसे कुछ हुआ है!

 हालांकि पिछली रिपोर्ट को देखकर वह खुश हो गई थी।बेपरवाह हो गई थी।

  लेकिन अब! फिर वही कमजोरी, जरूर  कुछ ना कुछ तो हुआ है?? जो शायद चेकअप में भी आ नहीं पा रहा है।

 अपनी आदत से लाचार गीतांजलि आज फिर अपने बारे में नहीं सिद्धांत और बच्चों के बारे में सोच रही है। सोच रही है कि अगर आज उसे कुछ हो जाता है, तो सिद्धांत जो उसके बिना जीने की सोच भी नहीं पाता, उससे एक दिन अलग होकर रह नहीं पाता, कैसे जिएगा??

 सिद्धांत की अपने बाद होने वाली हालत को लेकर वह बहुत परेशान है। यही कारण है कि अस्पताल से चौपाटी के आने तक सिद्धांत ने उसे जो कुछ भी कहा, उसने कुछ नहीं सुना। वह सिर्फ अपने ख्यालों में थी।

 जबकि सच यह है, कि सिद्धांत ने पूरे रास्ते उसे कुछ कहा ही नहीं। क्योंकि! वह तो खुद मग्न था अपने आप में। उसे तो खुद कुछ समझ में नहीं आ रहा था!!

 वह भी तो अपने अंदर ही झांक रहा था, अंजलि की तरह।

 अंजलि के साथ ऐसा क्यों हुआ? क्या यह किसी बड़े का शाप या बद्दुआ या उसके पुराने जन्मों के कर्मों की वजह से तो नहीं??

कहीं पिताजी ने तो नहीं!.... नहीं ..नहीं

कोई भी पिता अपने बच्चे को ऐसा शाप नहीं दे सकता।

 उनका असमय चले जाना, इसमें अंजलि का कोई हाथ नहीं था।

 क्या किसी का किसी के प्रेम के लायक होना उसकी जाति पर निर्भर करता है?

 पिताजी का दुर्भाग्य था जो वह अपनी बहू के संस्कार, उसकी सरलता, उसकी सेवा को  देख ही नहीं पाए।

 अम्मा ने सब देखा था, सब महसूस किया था मन ही मन पछताई भी तो थी।

 मेरे प्यार से लेकर शादी तक के कड़े संघर्ष का समय और फिर शादी से लेकर वेदांत के आने तक का टाइम हम दोनों ने रो-रो कर काटा था। एक दूसरे की हिम्मत ही बढ़ाते रहते थे हम।

 पिताजी जब मेरी लव मैरिज के सख्त खिलाफ थे, तो अम्मा ने उन्हें एक बार भी समझाने की जरूरत नहीं समझी।

 बल्कि वह खुद भी खड़ी हो गई थी उनके पीछे। उनका पूरा साथ दे रही थी।

 बहनें भी अम्मा और पिताजी के साथ थीं। मेरे साथ था तो बस मेरा वायदा जो मैंने अंजली और उसकी माँ से कर दिया था।

कई बार रिश्तों का साथ देने में हम इतने अंधे हो जाते हैं कि सही और गलत का फर्क ही नहीं देख पाते।

 देख पाते तो इंसान कहां होते, भगवान ना होते!!

 आज जो हमें हमारा दुश्मन दिखाई देता है वह बाद में हमारा दोस्त सिद्ध हो जाता है और जो दोस्त दिखाई दे रहा है वह दुश्मन बन जाता है।


पिताजी के गुजरने की वजह भी अंजलि ने अपने आपको मान लिया था। अपने पिता को तो वह बचपन में ही खो चुकी थी लेकिन जब मेरे पिताजी चले गए तो उसे लगा, यह सब उसकी वजह से हुआ है।

  तभी तो अम्मा के कहे शब्द उसके दिल में नश्तर की तरह चुभते तो थे लेकिन वह उनकी टीस कभी दिखाती नहीं थी। मुझसे कभी साझा नहीं करती थी।

 शायद.. वह अम्मा के विधवा होने के लिए अपने आप को जिम्मेदार मानती थी।

इसलिए उन्हें वह सारी खुशियां देना चाहती थी, जो उसकी वजह से उनसे छिन गई थीं। कांता और सुधा कितनी बार सीमाएं पार कर जाती थीं लेकिन वह उन्हें अपनी छोटी बहन ही माना करती थी।


क्या सिद्धांत की ये चुप्पी अंजली के सामने उसकी बीमारी का राज खोल देगी?



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