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अंतिम मिलन भाग 2

25 अगस्त 2022

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पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि रात को अंजली की तबियत अचानक खराब हो जाती है। जिसकी वजह से सिद्धांत के मन में एक अनजाना डर पनप गया है। अंजली के साथ बिताया समय बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा है, अंजली की रिपोर्ट्स का उसे बेसब्री से इंतज़ार है।


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अंजली बेडरूम में जाकर टी०वी० देखना चाहती है जो कि नार्मल बात नहीं है। फिर भी सिद्धांत ने अंजली से ज्यादा पूछताछ नहीं की और हां में हां मिला दी। उसने बेडरूम में जाकर ही टीवी देखना ठीक समझा। दोनों अपनी हल्के हरे रंग की उस प्यारी सी रजाई में किसी नए नवेले जोड़े से कम नहीं लग रहे थे। ऑफिस से आने के बाद पति पत्नी दोनों जल्दी ही डिनर कर लिया करते थे , हेमलता को भी तो अपने घर जाना होता था इसलिए भी, डिनर करके थोड़ी देर बरामदे में टहल कर वह दोनों अपने मनपसंद सीरियल देखने लग जाते थे। सिद्धार्थ ने गीतांजलि को बिल्कुल सटाकर बिठा लिया था। गीतांजलि उसकी बाहों में बैठकर टीवी देख रही थी। सिद्धांत, गीतांजलि के बालों में उंगलियां फिराने लगा। 

"आज क्या हुआ? अंजलि ने सीरियल पूरा देखा भी नहीं! इतनी जल्दी कैसे सो गई! लगता है इसकी तबीयत ठीक नहीं है। कल जाता हूँ , डॉक्टर कृष्णमूर्ति के पास। देखता हूँ क्या कहते हैं!"सिद्धांत के मन में कई सवाल उपज रहे थे!'मेरी अंजलि को हमेशा ठीक रखना। इसको कुछ भी हुआ, तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा।' ईश्वर के समक्ष गिड़गिड़ाता हुआ वह बोला।लगातार अंजलि के चेहरे को ताकता हुआ सिद्धांत भी नींद के आगोश में चला गया। 

उसे यह तब पता चला जब दो घंटे बाद उसकी आंख खुली और उसने देखा टीवी तो चला ही रह गया! अंजलि को ठीक से लिटा कर लाइट बंद की तब वह आराम से सो पाया।सुबह गीतांजलि समय से नहीं उठी जैसे उसकी हमेशा से आदत थी सुबह 5:00 बजे उठने की। आज बहुत देर तक लेटी रही, सिद्धांत ने भी उसे नहीं उठाया। उसने यह ही बेहतर समझा कि अंजली को आराम ही करने दे।दिल में एक अजीब सी बेचैनी होनी शुरू हो गई । सिद्धांत को एक अनजाना सा डर सता रहा था। सुबह के दैनिक काम निपटाते वह बार-बार घड़ी को देख रहा था। हेमलता ने भी समय से आकर अपना काम शुरू कर दिया। सिद्धांत ने हेमलता से पूछा कि मेरे ऑफिस जाने के बाद कल अंजली की तबीयत कैसी थी? हेमलता ने जवाब दिया, 'वैसे तो ठीक थी लेकिन थकी हुई थीं माँजी। दूसरे दिनों की तरह फुर्ती से काम नहीं कर पा रही थीं।

सिद्धांत क्या कहता, माथे पर परेशानी के बल लिए उसने डॉक्टर को फ़ोन करना चाहा लेकिन इतनी सुबह उसने डॉक्टर कृष्णमूर्ति को परेशान करना ठीक नहीं समझा। नौ बजते ही सिद्धांत ने फोन लगाया तो कृष्णमूर्ति ने फोन नहीं उठाया उसकी बेचैनी और बढ़ गई । सोचा चलो तब तक नहा लेता हूँ। आज ऑफिस जाने का बिल्कुल मन नहीं था। लेकिन करे तो क्या करें ?कोई काम ही नहीं था! आधे घंटे की वॉक उसकी एक घंटे की हो चुकी थी। उसने फिर डॉक्टर को फोन लगाया । अबकी बार उन्होंने फोन उठा लिया।

हेलो! डॉक्टर सिद्धांत बोल रहा हूँ, गीतांजलि की रिपोर्ट लेने आ सकता हूँ? कब आ जाऊं?

"रिपोर्ट तो आपको बारह बजे के बाद ही मिलेगी। कैसी तबीयत है गीतांजली की?" डॉक्टर ने पूछा।

"तबीयत तो ठीक है लेकिन कुछ थकान सी है वह जैसे नॉर्मल सुबह उठ जाती थी और अपने कामों में लग जाती थी वैसे उठ नहीं पाई है।" सिद्धांत ने बुझे मन से डॉक्टर को बताया।

'घबराने की कोई बात नहीं है। यदि कोई बीमार हो गया है तो रिकवर होने में समय तो लगेगा ही।' डॉक्टर ने आश्वासन दिया।

सिद्धान्त की ये आदत उसकी सबसे बुरी आदतों में से थी, कि कोई शक अगर उसके दिमाग में घुस जाए तो जब तक वह दूर ना हो जाये तो सिद्धांत को चैन नहीं आता था।अपनी अंजली पर उसे आज कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था। लेकिन उसका ज्यादा ख़याल रखकर वह उसे उसकी बीमारी का बार-बार अहसास नहीं दिलाना चाहता था। इसलिए उसने निश्चय किया, 'ऑफिस ही चला जाता हूँ। वहीं से रिपोर्ट ले लूंगा।'


हेमलता सिद्धांत की सारी उलझन पढ़ पा रही थी। 'बाउजी! आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं, मैं हूँ ना! माँजी का ध्यान रखने के लिए।अपनी छुट्टियां बेकार मत करिए, क्या पता आपको बाद में इन छुट्टियों की जरूरत पड़े?' 

हेमलता यह बात अच्छी तरीके से जानती थी कि सरकारी कर्मचारियों को एक सीमा तक ही छुट्टी मिल सकती है।बात कड़वी थी लेकिन सच थी।इस उम्र में पता नहीं कब क्या मुसीबत आ जाये। दोनों बच्चे भी दूर हैं। कल को कोई ऊंच नीच हुई तो....!

हेमलता की बात सिद्धांत को जँच गई। उसने पहले गीतांजलि के शरीर को सहला कर उसे प्यार से उठाया-चाय पिलाई- उसे सामान्य करके, तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया।

ऑफिस जाते हुए आज फिर वही कॉलेज के दिन उसे याद आ रहे थे। उसका दोस्त जयंत जो हमेशा उसके साथ रहता था। पढ़ने-लिखने में बिल्कुल गोल। लेकिन दोस्ती निभाने में बहुत आगे था। वैसे भी जो लोग पढ़ने लिखने में बिल्कुल गोल होते हैं वही अच्छी दोस्ती निभा पाते हैं।

जयंत....अमीर बाप की बिगड़ी औलाद लेकिन सिद्धांत के लिए तो बड़ा ही प्यारा दोस्त था। सिद्धांत फिर से यादों के समंदर में डुबकियाँ लगाने लगा, 'जयंत ने कितनी मदद की थी अंजली और मुझे मिलाने में, उसी की वजह से तो हम एक हो पाए, उसी की वजह से तो वह इतना प्यारा जीवन साथी पा सका।मेरे प्यार को पाने में उसने मेरा कितना साथ दिया...।अंजलि कितनी डरपोक थी!! मैं कभी भी उसे अप्रोच करने की कोशिश करता वो भाग जाती। मुझसे कितना दूर-दूर रहती थी।

मैं कितना मरा जाता था उसके लिए। वो मुझे कभी घास नहीं डालती थी। दूर भागती भी क्यों ना हमने भी तो हद कर दी थी, रैगिंग वाले दिन।

मुझे सब याद है, जब जयंत ने कहा,' ए लड़की! मुर्गी बनो और अंडे दो' कितना डर गई थी वह! उसकी प्यारी आंखें डबडबा आई थीं । उसकी घबराहट भाँपकर मैंने जयंत को मना कर दिया था उसकी रैगिंग के लिए।मुझे लगा मेरी इस अदा पर मर गई होगी वो।मेरा ख्याल था कि पैंतरा बहुत पुराना है लेकिन लड़कियां आज भी इस पैंतरे में आ ही जाती है।लेकिन मैं गलत था। फिल्मों की तरह भले ही मैं, मेन विलेन नहीं था लेकिन विलेन के साइड में खड़े लोग भी विलेन ही होते हैं। अंजली ने भी तो बहुत फिल्में देखी हो सकती थीं? उसके दिल में यही रहा हो कि अपने दिल में जगह बनाने का यह मेरा कोई पैंतरा रहा हो। इसलिए शायद वह मुझसे बहुत दूर दूर रहती थी। फिर एक दिन किताब में रखकर मैंने अपने दिल की बात आखिर पहुँचा ही दी। आज यह सब बातें मुझे कितनी बचकानी लग रही है! लेकिन पहले यह कितनी जरूरी बातें होती थीं!...रहता तो मैं कॉलेज के मवालियों और टपोरियों के साथ था। लेकिन व्यवहार में एकदम कीचड़ में उगे हुए कमल के जैसा था। मुझे बहुत डर लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि किताब में उस लेटर को देखने के बाद अंजली जरूर प्रिंसिपल के पास पहुंच जाएगी। मेरी शिकायत कर देगी। बात घर तक पहुंच जाएगी और मेरे पृथ्वीराज चौहान जैसे बाबूजी! जिनकी आवाज से ही मेरा दिल दहल जाता था...क्या होने वाला था मेरा?मैंने दो दिन तक पता नहीं ठीक से सांस ली भी या नहीं।


कशमकश तब और बढ़ गयी जब ना तो उसने कोई जवाब दिया न ही किसी से शिकायत की। इस बार जयंत मसीहा बनकर मेरे इस एकतरफा प्रेम को पार लगाने के लिए असमंजस की नदी में उतर पड़ा। वह अंजलि से खुलकर बात कर लेता था। उसने सीधे जाकर अंजली से पूछा, "सच बताओ गीतांजली, तुम सिद्धांत से प्यार करती हो या नहीं?"मैंने उसे बहुत मना किया कि इस तरह पब्लिकली नहीं पूछना चाहिए किसी लड़की से। लेकिन वो कहाँ मानने वाला था.....


लो फिर ऑफिस आ गया, ड्राइव करते- करते। इन दिनों सिद्धांत को अपना अतीत बहुत याद आ रहा था। वह ऑफिस आता तो था लेकिन किसी काम में मन नहीं लग रहा था उसका। ऑफिस का काम जल्दी-जल्दी निपटा कर वह डॉक्टर के क्लीनिक को निकल गया। क्लिनिक जाकर रिसेप्शन से रिपोर्ट्स कलेक्ट कीं। अंजली की रिपोर्ट्स क्या कह रही थीं ये तो डॉक्टर ही बताते। रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "आप वेट कीजिये, आपका थ्री पेशेंट्स के बाद नंबर आएगा।उफ्फ! वह मन ही मन बेचैन हो रहा था।ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा उसे। बीस मिनट बाद ही डॉक्टर कृष्णमूर्ति ने उसे बुला लिया। सिद्धांत लगातार मूर्ति के चेहरे और आंखों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था ।डॉक्टर मूर्ति ने सिद्धांत को ऐसे देखा कि वह अंदर तक काँप गया। 

उसके मुंह से अचानक ही निकला, क्या हुआ डॉक्टर?


डॉक्टर साहब उनके बहुत पुराने फैमिली फ्रेंड भी थे। सिद्धांत के घर में उनका आना-जाना कई वर्षों से था। उनकी पत्नी गीतांजलि की अच्छी दोस्त भी थी।गीतांजली की रिपोर्ट देखकर डॉक्टर साहब भी कम विचलित नहीं थे। लेकिन उन्हें अब सिद्धांत को सब कुछ बताना था। सिद्धांत! देखो.....जो मैं कहने जा रहा हूँ, वो अटल है। उसको ना तुम बदल सकते हो, ना मैं। हमारा मेडिकल विभाग, यूँ तो बहुत तरक्की कर चुका है लेकिन अभी भी कई समस्याएं ऐसी हैं , जिनके हल ढूँढने बाकी हैं।सिद्धांत ने बीच ही में डॉक्टर मूर्ति को टोकते हुए कहा, 'आआप...कहना क्या चाह रहे हैं?प्लीज- डॉक्टर - प्लीज डोंट प्ले विद माय माइंड, यू नो वेरी वेल, व्हाट इज माय कंडीशन इज'


आगे देखिए क्या हुआ है अंजली को, क्या सिद्धांत का अपने प्यार से बिछाड़ने का समय आ चुका है, या कोई और बात. है।...


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रचनाएँ
अंतिम मिलन
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कहानी एक बेहद खूबसूरत रिश्ते की है जिसे समाज में पति पत्नी का रिश्ता कहा जाता है। यह रिश्ता रक्त का तो नहीं लेकिन उसी कहीं अधिक गहरा और अर्थपूर्ण है। परंतु आज के परिवेश में इस रिश्ते के मायने बदल गए हैं। कहीं न कहीं निस्वार्थ प्रेम और अनुराग की जगह, ईर्ष्या और अभिमान ने अपनी गहरी पैंठ बना ली है इस संबंध में। मेरी कहानी आदर्श पति पत्नी की है, जिसकी इच्छा प्रत्येक दंपत्ति करता है। मैने इस उपन्यास में शब्दों और भावनाओं को इस तरह पिरोया है कि ये नए दंपत्तियों और होने वाले दंपत्तियों का, वैवाहिक जीवन के लिए मार्गदर्शन कर सके। जो पति पत्नी अपने वैवाहिक जीवन के कई वर्ष गुज़ार चुके हैं वे भी इसे पढ़कर रोमांचित होंगे। आशा है सरल शब्दों में लिखी हमारे नायक सिद्धांत और गीतांजली... जो सिद्धांत के लिए अंजली है, की प्रेम कहानी आप सबको बेहद पसंद आयेगी।
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