पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह सिद्धांत अपनी पत्नी अंजली की बीमारी का पता लगने पर रो रोकर बेहाल हो गया।
डॉक्टर मूर्ति और बेटे वेदांत के साथ उसकी बातचीत भी आपने पढ़ी।
अब आगे..
घर लौटने की रास्ते में सिद्धांत ने अपनी मानसिक स्थिति पूरी तरह बदल दी थी।
उसे जितना रोना था वह रो चुका था।
अब उसे और नहीं रोना था। मुस्कुराना था, हंसना था, खुश होना था अपनी अंजलि के लिए, अपने प्यार के लिए।
खुदा से लड़ना तो था मगर अंजलि के लिए।उम्र चुरानी थी उसके लिए, लेकिन जो भी करना था, सब कुछ अंजलि से दूर रहकर करना था या ऐसे करना था जो अंजलि को पता ही ना चले।
रास्ते में...सिद्धांत ने वह सारे बहाने सोच लिए थे जो उसे अंजलि के सामने बनाने थे। उसने सबसे पहला काम किया, गूगल से झूठी ब्लड रिपोर्ट और यूरीन रिपोर्ट डाउनलोड करने का।
फिर उसने एक कंप्यूटर शॉप पर जाकर उनको अंजलि के नाम से टेंपर करवाया।
उन रिपोर्ट्स को देखकर, कोई नहीं कह सकता था कि वह रिपोर्ट अंजलि की नहीं थी। खुद डॉक्टर कृष्णमूर्ति भी नहीं।
रास्ते में से अंजली के मनपसंद स्वीट कॉर्न खरीदे।
घर पहुंचा तो अंजलि को वैसे ही अपना इंतजार करते पाया। जब कभी देर हो जाती थी तो अंजलि तेज कदमों से बरामदे में टहलने लग जाती थी।
फोन कर-कर के सिद्धांत को कभी परेशान नहीं किया उसने। वो हमेशा डरती थी कि फोन उठाने के चक्कर में कहीं सिद्धांत किसी परेशानी में ना पड़ जाए।
यही पहचान होती है एक समझदार पत्नी की। आज की पत्नी होती तो फोन कर कर के पति को ही फिक्रमंद बना देती।
गीतांजलि की न जाने कितनी ही आदतें थीं, जिनको सीख कर, आज की पत्नियां अपनी गृहस्थी को और भी सुंदर बना सकती हैं। पति पत्नी के रिश्ते में और निखार ला सकती हैं।
आज सिद्धांत पूरा एक घंटा पंद्रह मिनट लेट था।
गीतांजलि यह तो समझ ही गई होगी कि वह उसकी रिपोर्ट लेने डॉक्टर कृष्णमूर्ति के क्लीनिक पहुंचा होगा। लेकिन यह थोड़ा ज्यादा वक्त था उसके अनुमान के हिसाब से। "ओ हो ! डार्लिंग.. मेरी डार्लिंग , डार्लिंग कभी-कभी तुम्हें इंतजार कराना कितना अच्छा लगता है।पता लगता है हम भी कुछ इंपॉर्टेंट हैं।"
सिद्धांत अपनी झेंप मिटा रहा था।
गीतांजलि के चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था।बल्कि वह आश्वस्त थी कि सिद्धांत सही सलामत घर पर है। मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देते हुए, उसने वही पुरानी प्यारी-सी मुस्कान बिखेर दी।
" देखिए मोहतरमा आपने हमारा इंतजार किया इसलिए आप के इंतजार का मेहनताना लाए हैं, आपका मनपसंद मसाले वाला स्वीट कॉर्न।" एक सुलझे हुए पति की तरह उसने पैकेट निकालते हुए अंजली को सौंपा।
गीतांजलि एकदम खुश गई
सर्दी के मौसम में कुछ गर्म चीज़ खाने को मिले तो किसे अच्छी नहीं लगेगी! और वह तो उसकी फेवरेट डिश भी है।
सिद्धांत ने हेमलता को आवाज लगाई। हेमलता!
"लो जरा यह स्वीट कॉर्न हम दोनों के लिए सर्व कर दो, अपने लिए भी बचा लेना"
अंजली ने पैकेट हेमलता को थमा दिया।
"जी बाउजी" हेमलता ने दोनों को खुश देख कर खुश होकर कहा।
गीतांजलि में अपनी रिपोर्ट के बारे में पूछा। सिद्धांत, जो पहले से ही तैयार था।
रिपोर्ट्स का पैकेट टेबल पर पटकता हुआ बोला, "लो देख लो अपनी रिपोर्ट्स, सब नॉर्मल है, डॉक्टर ने कहा है कि आपकी उम्र में हार्मोन्स में बदलाव आता है, जिसकी वजह से बॉडी अलग-अलग तरह से रेस्पांस करने लग जाती है। हार्मोनल चेंज की वजह से बेचैनी हो सकती है, रात को पसीना आ सकता है, ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, कमजोरी महसूस हो सकती है। कभी-कभी तो सांस लेने में भी परेशानी हो सकती है। इसके लिए हम दोनों बूढ़ों को तैयार रहना चाहिए इन सिम्पटम्स के लिए
आफ्टर ऑल शरीर एक मशीन ही तो है जो इतने सालों से लगातार काम कर रही है। अब इस मशीन के कल पुरजों में तेल डालते रहना है, समय-समय पर। सफाई करनी है और इसको चलाते भी रहना है।"
"ओके ओके साहब जी" गीतांजलि ने सिद्धांत की बात पर पूरी तरह विश्वास कर लिया।
हो भी क्यों ना? इससे पहले भी तो सिद्धांत ने कितनी बार उसके सामने ऐसी ही एक्टिंग की और उसे कभी पता नहीं चला।
अभी ये बातें चल ही रही थीं कि हेमलता स्वीट-कॉर्न लेकर आ गई।
अंजली जैसे ही स्वीट कॉर्न खाने लगी, सिद्धांत में उसे टोका, "अरे रे रे! ऐसे नहीं, इस तरह खाने के लिए थोड़े ही लाया हूँ। चलो ना बरामदे में टहलते हुए ऐसे खाते हैं जैसे लोधी गार्डन में खाया करते थे।" गीतांजलि शायद अंदर से कमजोर महसूस कर रही थी लेकिन सिद्धांत के आग्रह को टाल न सकी।
दोनों आपने गार्डन के बराबर बने एल शेप के कोरिडोर में टहलने लगे।
"अंजलि! यार कितना समय बीत गया सोचता हूं, तो सब एक सपने की तरह लगता है। हम दोनों का लव अफेयर,
उसके बाद इतनी मुसीबतों के बाद शादी। मेरी नौकरी,
बच्चे पैदा होना,
उनकी परवरिश,
उनकी पढ़ाई-लिखाई
फिर उनकी नौकरी और फिर उनकी शादी,
अच्छी तरह से हो गया यार!
सब... सब.. तुम्हारी वजह से।
तुम अगर मेरी जिंदगी में ना आतीं तो सब कुछ इतना स्मूदली नहीं हो पाता।"
अपना कॉर्न खत्म करके कटोरी रखता हुआ सिद्धांत बोला।
"क्या बात है? आजकल आज बड़े रोमांटिक हो रही हो, कुछ खास बात है क्या? ना तो आज वैलेंटाइन डे है!
ना करवा चौथ!
और ना हमारी शादी की सालगिरह!
फिर आज मिस्टर का मूड इतना रोमांटिक कैसे हैं?" सिद्धांत के नए व्यवहार को भांपते हुए अंजली बोली।
पता नहीं ऑफिस में एक नए जोड़े को देखा, तो ऐसे लगा जैसे अपने दिन लौट आए हों! "गीतांजलि! मैंने एक बात सोची है क्यों ना हम अपनी पुरानी जिंदगी एक बार फिर से जियें?" सिद्धांत ने एक प्रपोजल रखा।
"क्या कह रहे हो, पहेलियां मत बुझाओ? कहना क्या चाहते हो ठीक से बताओ?" अंजली असमंजस में थी।
"देखो! हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं, बच्चे सब सेटल हैं। मैं ऑफिस जाता हूं, उसके बाद कुछ ज्यादा काम नहीं है।
हम फ्री हैं।
रोज अपनी किसी न किसी कहानी को फिर से जियें!
मुझे अतीत के पन्ने दोहराने हैं अंजली, तुम्हारे साथ।" सिद्धांत ने एक्सप्लेन किया
"अब यह क्या नई सनक है सिद्धांत"
अंजली को कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा था।
"मुझे नहीं पता, तुम इसे सनक कहो या मेरी रिक्वेस्ट,
"तुमने हर समय, हर वक्त मेरा साथ दिया है मेरी इस सनक में भी मेरा साथ दोगी ना!"
गिड़गिड़ाने वाले भाव लिए सिद्धांत ने अंजली से पूछा।
"जी हुजूर, मना कैसे कर सकती हूं।
ठीक है, चलो बताओ क्या चाहते हो?" एक भक्त की तरह नतमस्तक थी अंजली।
"बस यही कि हम दोनों, कोई ना कोई एक पुराना किस्सा एक दूसरे को सुनाएं।
पता तो चले जो किस्सा तुम्हारे लिए बहुत इंपोर्टेंट है, वह मेरे लिए भी, है या नहीं?
हम दोनों की सोच हर मामले में एक ही है या नहीं।" बड़ी अच्छी तरह सिद्धांत ने समझाया।
"आइडिया अच्छा है, समय अच्छा गुजरेगा।" गीतांजली तैयार हो गयी।
"तो ठीक है, आज ही से शुरु करते हैं तुम्हें याद है लोधी गार्डन में जब तुम और मैं स्वीट कॉर्न खाते हुए टहल रहे थे, तो तुम्हारे पड़ोस के एक भैया, क्या नाम था उनका? वही जो दिखने में थोड़े लल्लू से थे।" किस्सा शुरू कर दिया सिद्धांत ने।
"हां! हां! वह पवन हमारे घर से दो घर छोड़कर ही तो था।
एक नंबर का लुच्चा! पूरा बदचलन था।" अंजली को सब याद आ गया।
सिद्धांत इतनी जोर से हंसा, "बदचलन!
मैंने यह शब्द किसी पुरुष के लिए पहली बार सुना है।"
" कमीना, नई, नई लड़कियों के साथ रोज घूमने जाता था। उस दिन घर पर जाकर मां से मेरी शिकायत लगा दी कि मैं तुम्हारे साथ घूम रही थी। मैं क्या करती, इस तरीके से अचानक कोई पकड़ा जाए तो कोई बहाना सोचता है क्या? मैंने हड़बड़ी में कह दिया मेरी सहेली गिन्नी की बड़े भाई थे तुम, मुझसे सिविक्स डिस्कस कर रहे थे, मैं तुमसे कुछ क्वेश्चन पूछ रही थी और तुम जवाब दे रहे थे... और क्या करती..?" बड़ा प्यारी सी सूझ बूझ उतर आई थी अंजली के चेहरे पर।
"तुम तो बड़ी चालाक लड़की थी तुमने मुझे भैया बना दिया।" सिद्धांत ने उसे छेड़ा।
"नहीं, मैंने सहेली के भैया कहा था।"
उसने सफाई दी।
"उस दिन किस तरीके से मेरी जान छूटी मैं ही जानती हूँ।उसके बाद तो मैंने उस पड़ोसी भैया को बिल्कुल इग्नोर करना शुरू कर दिया । पहले नमस्ते कर लिया करती थी लेकिन बाद में कभी नमस्ते नहीं की।
वह भी समझ गया होगा कि तुम कोई भैया वैया नहीं थे।" यह सब बताते हुए अंजली एक अट्ठावन साल की महिला बिल्कुल नहीं लग रही थी।
उसके चेहरे के हाव-भाव बिल्कुल वही थे जो उसके बीसवें साल में थे।
सिद्धांत की तरकीब रंग ला रही थी। उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बोला कि ईश्वर बस ऐसे ही मेरा साथ देते रहना, मैं अपनी अंजलि को अपने सामने तो बिल्कुल ना जाने दूंगा।
जब वह गीतांजलि को इतने प्यार से देख रहा था, तो गीतांजलि को नहीं पता था कि उसके मन में क्या चल रहा है, वह तो यही समझी कि सिद्धांत के पुराने अरमान फिर से जाग उठे हैं।
वह भी सिद्धांत की नजरों पर अटक गई। दोनों को होश तब आया जब हेमलता ने आवाज दी, "मांजी! बाउजी खाना बनाकर रख दिया है। अब मैं जा रही हूं।"
"अच्छा ठीक है! हेमलता दरवाजा ठीक से ढाल जाना" अंजली ने जवाब दिया।
सिद्धांत ने अंजलि के चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले लिया और अपने होंठ उसकी होंठो पर रख दिए।
प्रेम की यह मौन बातचीत सबसे तर्कपूर्ण होती है जिसमें न बहस होती है न विवाद, बस एक दूसरे की सहमति होती है।
आज सचमुच दोनों की पुराने दिन वापस आ गए थे।
दोनों की उमंगे फिर से जवान हो रही थीं।कहीं से भी नहीं लग रहा था कि दोनों सिक्सटीज़ के पास हैं।
इस दृश्य को जो देख लेगा वह ईश्वर के सामने स्वयं सजदा करेगा और बस ये ही दुआ मांगेगा कि हे ईश्वर! इस हंस के जोड़े को कभी बिछड़ने मत देना। ये बिछड़े तो कयामत होगी।
उन दोनों के प्रेम आलिंगन से हवस या वासना के नहीं, अनुराग के अंकुर फूट रहे थे।
....सिद्धांत ने पुरानी यादों को फिर से जीने का बड़ा अनूठा तरीका खोज निकाला है। अंजली के दामन में कितनी खुशियां भर पायेगा वो, जानने के लिए
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