पिछले भाग में आपने पढ़ा कि अंजली मुम्बई जाने के लिए समान पैक कर रही थी, पहली करवाचौथ की फ़ोटो देखकर उसे अपनी सुहागरात का किस्सा याद आ गया। अब पढ़िए आगे.....
आखिर वह घड़ी आ ही गई जब वे दोनों मुंबई के लिए निकले।
एयरपोर्ट पहुंच कर पता चला की मुंबई की फ्लाइट समय पर है वरना फ्लाइट डिले होना एक आम बात है।
शुक्र है यह मौसम जून से सितंबर के बीच का नहीं था। इन दिनों मुंबई की गलियां बारिश की वजह से पानी से लबालब भरी जाती हैं और शुरू होता है कीचड़ और ट्रैफिक जाम का सिलसिला।
बाहर से आने वाले सभी लोग इन दिनों जाकर पछताते ही हैं वहां।
फरवरी का महीना था। चारों तरफ बासंती बहार खिली हुई थी। दोनों ही शहरों का मौसम बहुत खुशगवार था। इधर दिल्ली में भी मीठी धूप थी।
गीतांजलि को विंडो सीट मिली थी।
उसे ना भी मिलती तो वह सिद्धांत से एक्सचेंज कर लेती। विंडो सीट पर बैठना कौन नहीं चाहता भला!
हवाई सफर की सबसे सुंदर, सबसे आकर्षक चीज यही तो है! सिद्धांत खिड़की से बाहर देखती हुई गीतांजलि को देख रहा था। सिद्धांत सच जनता था इसलिए इस पल का पूरा लुत्फ नहीं उठा सकता था। उधर अंजली को कुछ पता नहीं था इसलिए कितनी खुश थी!
सच में कुछ पता ना होना भी कितना बड़ा सुख है। इसी कारण तो बच्चे जीवन को पूरा एन्जॉय कर पाते हैं। जैसे जैसे बड़े होते है वो मसुमियाम खो देते हैं।
खैर!
उसे इस विडंबना पर हंसी भी आ रही थी, और संतोष भी था। चलो जैसा भी है अंजलि खुश तो है। जितना भी बन पड़ेगा, जितना भी झूठ बोलना पड़े, वह उसे सच बताने से बचेगा।
अपनी हर एक्टिविटी की खबर वह वेदांत और दुष्यंत को देता रहता था। यदि फोन ना कर पाए तो व्हाट्सएप मैसेज डाल दिया करता था।
कितनी सुविधाएं हो गई हैं आजकल! पहले तो फिक्र के मारे मरते रहो, लेकिन आदमी की पता ना चले, कि वह किस हालात में है।
आज!
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सिद्धांत का मन तो हो रहा था कि वह सफर के बीच गीतांजलि से ढेर सारी रोमांटिक बातें करें। लेकिन इकोनामी क्लास में सीटें कन्जेस्टेड सी होती हैं, सभी ट्रैवलर्स पास पास होते हैं इसलिए ज्यादा प्राइवेट बातें करना अभद्र सा लगता है।
चुप तो वह बैठ ही नहीं सकता था। इसका भी इलाज उसने ढूंढ ही निकाला।
अपना बायीं हथेली उसने धीरे-धीरे गीतांजलि की दाईं हथेली पर रख दी।
अंजलि समझ गई कि उसे फिर से कोई शरारत सूझी है।
सिद्धांत , अंजलि का सीधा हाथ अपने दोनों हाथों के बीच में लेकर सहलाने लगा जैसे वह दिल ही दिल में यह कह रहा हो अंजलि कभी भी कुछ भी हो जाए घबराना मत।
मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।
हालांकि अंजलि को यह बताने की जरूरत नहीं थी लेकिन प्रेम को समय-समय पर जाहिर करने से प्यार और बढ़ता है।
सिद्धांत की इन्हीं आदतों की वजह से ही उनके बीच का आकर्षण कम नहीं हुआ था, उनके रिश्ते में कोई ठहराव नहीं आया था।
सिद्धांत ने ईयरपॉड्स निकाले, एक गीतांजलि के कान में लगाया और एक अपने में।
उसने गीतांजलि के कंधे पर अपना सर रख कर आराम से आंखें बंद कर ली।
गीतांजलि अपने आप को दुनिया की सबसे सौभाग्यशाली औरत समझ रही थी, उस समय।
दोनों बॉलीवुड के मशहूर गानों में खो गए। 'तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती'
" आने वाला कल जाने वाला है'
' तुम मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए'
' हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे...'
और ना जाने कितने ही गाने उन दोनों ने मिलकर सुन डाले।
तभी एयरलाइंस की अनाउंसमेंट हुई कि फ्लाइट मुंबई के छत्रपति शिवाजी स्टेडियम पहुंच चुकी है। हवाई जहाज लैंड करने ही वाला है।
दोनों ने अपनी पेटियां बांधी और थोड़ी ही देर में वह मुंबई की जमीन पर थे।
बड़ा ही भीड़भाड़ वाला एयरपोर्ट लगा। एयरपोर्ट से निकलकर उन्होंने परेल के लिए एक टैक्सी ली, जहां पर सिद्धांत ने एक होटल पहले ही बुक कर रखा था।
आजकल होटलों में हर तरीके के पैकेज उपलब्ध है। सिद्धांत का बिजनेस टूर तो वह था नहीं।
उसने कपल पैकेज लिया था। इसलिए जाते ही एक खूबसूरत से बुके से उनका स्वागत किया गया। बुके पाकर गीतांजलि की आंखें तारों की तरह चमकने लगीं।
उसी खुशी देखने के लिए ही तो उसने इतने पैसे खर्च किए थे।
एक अटेंडेंट उन्हें सेकंड फ्लोर के एक रूम में ले गया। रूम खूबसूरत फूलों से सजा था।
अंजली की खुशी की सीमा न रही। इतने बड़े सरप्राइज की उम्मीद नहीं थी उसे।
अटेंडेंट ने हाथों द्वारा उनका वेलकम किया।
दोनों एक नए नवेले जोड़े की तरह रूम में घुसे।
अटेंडेंट के जाने के बाद, अंजली हाथ फैलाकर आंखें बंद कर हल्के हल्के घूमने लगी जैसे उस कमरे की खुशबू को वो अपने ज़हन में समेट लेना चाहती हो। सिद्धांत सामान रखते हुए उसे बड़े ध्यान से देख रहा था। जैसे ही उसने पीठ फेरी तो पाया अंजली उसकी पीठ से लिपट गयी है।सिद्धांत ने मौके का फायदा उठाया और अंजली को बाहों में ले लिया।
अंजली ने कहा, 'सिद्धांत! थैंक यू मेरी जिंदगी में आने के लिए।'
अंजली के सिर पर हाथ फेरता हुआ वो बोला, "सिर्फ थैंक यू से काम नहीं चलेगा"
गीतांजलि ने कमरे का मुआयना किया। उसे बाथरूम, बेडरूम और सारी फर्निशिंग बहुत पसंद आई। सबसे ज्यादा पसंद आया उसकी बालकनी से बाहर का नजारा।
बालकनी के जस्ट बाहर एक खूबसूरत गार्डन था। जिसमें ढेर सारे झूले लगे थे।अभी दोपहर का समय था। शाम को कितने सारे बच्चे उन झूलों पर झूल रहे होंगे! जैसे छोटी छोटी चिड़िया पेड़ पर चूँ चूँ मचाती हैं।
झूलों को देख उसकी ममता उमड़ पड़ी। उसे अपने पोती और पोते की याद आ गयी।
वो मन ही मन दोनों को झूलते देखने लगी।
इंसानी दिमाग भी कार के गियरों जैसा होता है, पल-पल बदलता है।
सिद्धांत ने उसे टोका,
चलो अंजलि! फ्रेश हो लो। थोड़ा आराम कर लो। सफर की थकान दूर हो जाएगी।
उसने फिर भी नहीं सुना तो सिद्धांत ने पीछे से जाकर चेक किया कि वह बाहर क्या देख रही है। वह समझ गया कि उन झूलों को देख उसे वाणी और कार्तिक की याद आ रही होगी।
सिद्धांत बोला वाणी और कार्तिक अगले हफ्ते दिल्ली आ रहे हैं।
अंजलीजलि तो एकदम बच्ची बन गई।
"क्या सच! बच्चे आ रहे हैं!
लेकिन किसी ने मुझे तो नहीं बताया, कोई जिक्र मुझसे भी तो कर सकते था ना?, आखिर घर की हैड तो मैं ही हूं।" उसके दिल का उछाल महसूस कर रहा था सिद्धांत।
'तुम हेड हो, तभी तो नहीं बताया होगा डर के मारे बिचारों ने, और वैसे भी साफ-सफाई का काम तो घर के अटेंडेंट का या नौकर चाकर का ही होता है इसलिए उन्होंने मुझे बताया था कि मैं उनके आने की तैयारी कर सकूं, मोहतरमा।' सिद्धांत ने फिर इंटेलीजेंट बहाना बनाया।
"वेरी फनी!" मुँह सिकोड़कर अंजली बोली।
' चलो जल्दी से मेरे फ्रेश होने के लिए कपड़े निकाल दो।' सिद्धांत ने कहा।
सूटकेस खोलकर गीतांजलि सिद्धांत के लिए कपड़े निकालने लग गई।
सिद्धांत ने शरारत की, "चलो तुम भी अपने कपड़े निकाल लो आ जाओ साथ में फ्रेश होते हैं।"
"धत्त! शर्म नहीं आती?" अंजली ने झिड़की दी।
" अरे! हनीमून पर आए हैं, शरमाने के लिए थोड़े ही।" गीतांजलि की ढोड़ी के नीचे अपनी उंगली को मोड़कर लगाते हुए सिद्धांत बोला। "पहले फ्रेश हो लो सफर के पसीने की बास आ रही है तुम्हारे भीतर से।" अंजली ने चुटकी ली।
" लेकिन तुम्हारे भीतर से तो खुशबू आ रही थी, सच में!" मस्ती करते हुए वो बोला।
" तुम जाओगे या नहीं?"
"नहीं"
" तो फिर लो" गीतांजलि ने तौलिए से सिद्धांत को तीन चार बार मारा।
वह हंसकर बाथरूम की तरफ चल दिया। बाथरूम से निकलकर आया तो कितना सेक्सी लग रहा था!
अंजलि मन में सोच रही थी,"मैंने ड्रेस भी तो बहुत अच्छी सेलेक्ट की है । इस ड्रेस में वह सबसे ज्यादा रोमांटिक लगता है।"
अब फ्रेश होने की बारी थी अंजली की।
वो जब तक लौट कर आई तो सिद्धांत ने लंच
ऑर्डर कर दिया था। अटेंडेंट ने तड़का दाल, सलाद, पाइन एप्पल रायता और बटर रोटी करीने से दो प्लेटों में लगा दिये।
सिद्धांत सोचने लगा, " इन सब चोचलों में पैसा तो खर्च होता है लेकिन रईसी का फुल अहसास होता है, एक दो दिन के लिए ही सही, मज़ा आ जाता है बाहर घूमने का।"
खाना बहुत ही स्वादिष्ट था। जैसा दोनों को पसंद था बिल्कुल वैसा।
लंच करने के बाद अंजली बोली,"चलो अब थोड़ी देर के लिए रेस्ट कर लो, फिर बाहर घूमने चलेंगे।"
सिद्धांत बोला, "घूमने के लिए थोड़े ही ना आये हैं।"
"ओहो! बुढ़या गए हो, थोड़ी तो शर्म कर लो। चलो ना! थोड़ी देर बाहर चलेंगे" वो मिन्नत वाले अंदाज में बोली।
"हाँ, हाँ बाबा.... चलेंगे, गेटवे ऑफ इंडिया चलेंगे शाम को।" हाथ से खींचकर उसने अंजली को अपने पास बैठा लिया।
मुंबई की यह उनकी दूसरी ट्रिप थी। एक बार ऑफिस के काम से भी वह अंजलि को मुंबई लाया था।
पुरानी यादों को जी ही रहे हैं तू क्यों ना उन जगहों पर भी दोबारा जाया जाए जो उनके पुराने वक्त से जुड़ी थीं इसलिए उसने गेटवे ऑफ इंडिया का प्लान कर रखा था।
गेटवे ऑफ इंडिया शाम की मंद रोशनी में बेहद खूबसूरत लग रहा था। बिलकुल वैसे ही जैसे दिल्ली का इंडिया गेट। उसकी चारों तरफ लगी खूबसूरत लाइटिंग से वो स्टेज पर खड़ी एक खूबसूरत दुल्हन की तरह नज़र आ रहा था।
पीली शिफॉन साड़ी और स्लीवलेस ब्लाऊज़ में अंजली कितनी प्यारी लग रही थी जब पिछली बार हम दोनों यहां आए थे।
मैं कितनी बार कहा करता था कुछ वेस्टर्न पहना करो, लेकिन वह थी कि उसे इंडियन ड्रेसेस बेहद पसंद थी। पैंतीस साल की रही होगी अंजलि तब।
क्या कमाल लग रही थी गेटवे ऑफ इंडिया के सामने वो। उस समय का नजारा इतना खूबसूरत नहीं था जितना आज है।
हाँ कुछ चीजें वैसी की वैसी हैं।
जैसे....ये फोटोग्राफर्स। आज भी वैसे ही पीछे पड़ जाते हैं।
उनकी पुरानी फ़ोटो, फैमिली फोटो कलेक्शन में अभी भी है।
उसने सोच लिया था कि वह एक फोटो गेटवे ऑफ इंडिया पर अंजलि के साथ टाइटैनिक वाले पोज़ में खिंचवायेगा।
वहां खड़े दूसरे पर्यटकों के लिए, इस उम्र में ये एक अजीब पोज़ था क्योंकि यह पोज़ अक्सर जवां उम्र के लोग सेलेक्ट करते हैं उनकी उम्र में यह थोड़ा ऑकवर्ड था ।
लेकिन सिद्धांत....सिद्धांत को तो सारी ऑकवर्ड चीजें ही तो पसंद हैं।
अंजलि मना भी कर रही थी लेकिन वह नहीं माना। फिर तो उस फोटोग्राफर ने ही नहीं एक दो और लोगों ने इज़ाज़त लेकर उनकी फोटो खींची। शायद किसी और बूढ़े कपल को मोटीवेट करेंगे घर जाकर।
बाद में वो चौपाटी गए खूब मस्ती करके खा पीकर वह अपने होटल पहुंच गए।
सिद्धांत दो तरह का जीवन जी रहा था। भीतर ही भीतर अंजली की बीमारी की चिंता उसे खाये जा रही थी और बाहर...बाहर वो अंजली से बेइंतहा प्यार का इज़हार कर रहा था। एक अनजाना डर उसे से खाए जा रहा था कि कल जब अंजलि को पता चल जाएगा तो क्या होगा?
इसलिए वह इस रात का एक पल भी बर्बाद नहीं करना चाहता था। होटल के कमरे में दोनों पहुंचे तो अंजलि यह देखकर दंग रह गई थी कमरे को और ज्यादा खूबसूरती से सजा दिया गया है।
साथ में एक टेबल है जिस पर सुंदर सा केक सजा धजा रखा है।
अंजली बोली, "तुम तो बड़े उस्ताद हो! सच में कितना बढ़िया इंतजाम किया है तुमने!"
"अरे वाह! ऐसे ही समझ रही हो क्या तुम? जानती नहीं हो... मैं जो काम करता हूँ वह अच्छे से ही करता हूं।" गीतांजली को प्यार से घूरता हुआ वह बोला।
हां... जानती हूं, लेकिन यह तो अच्छे से नहीं , बहुत बहुत खूबसूरत है।
अच्छा बातों में बात जाया मत करो अंदर आओ।अंजलि ने सिद्धांत की बायीं बाँह पकड़ कर कमरे में एंट्री ली।
अटेंडेंट ने कुर्सी सरकाकर अंजली को बैठने के लिए रिक्वेस्ट की।
क्या होगा उस प्यारी रात को? क्या झूठ बोलकर ले जाएगा सिद्धांत अंजली को हॉस्पिटल? क्या अंजली को सच का पता चल जाएगा?