पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि अंजली को खुश रखने का बड़ा ही अनोखा तरीका खोज निकाला था सिद्धांत ने। अब वे दोनों अपने पुराने समय को फिर से जियेंगे। कैसा रहेगा उनका ये आईडिया,
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होंठों का प्रेमालाप, गीतांजली के वक्ष पर उतर गया।अंजली के वक्ष में बहुत देर तक मुँह छुपाये पड़ा रहा सिद्धांत,
अगर इस कहानी की फ़िल्म बनती तो इस सिचुएशन पर बस एक ही गाना बज सकता था
"दूरी ना रहे कोई, आज इतने करीब आओ...."
ऐसा तो नहीं है कि...सिद्धांत और गीतांजलि के बीच यह पहली बार हुआ हो!
लेकिन आज...
...आज जैसा प्रेमालाप
आज जैसा प्रेम-आलिंगन कुछ अलग ही था।
आज ना ही गीतांजली प्रौढ़ा थी ना सिद्धांत एक अधेड़।
जैसे कोई गीत सुंदर लगने लग जाता है - यदि उसे आत्मा से गाया जाए वैसे ही उनका प्यार आज बहुत....बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रहा था।
उनके प्रेम में वासना का स्पर्श नहीं भक्ति जैसा पागलपन था।
उन्हें देखकर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे दो चिड़िया-चिरोटे चोंच में चोंच मिलाकर एक हो रहे हों। सभी जानते हैं कि उस पल, उनको छेड़ना महापाप से कम नहीं होता।
दोनों की तंद्रा टूटी तो एक फोन से।
डॉक्टर कृष्णमूर्ति का फ़ोन था।
सिद्धांत, गीतांजलि से थोड़ा दूर हटकर फोन पर बात करने लगा।
इतनी देर में गीतांजलि ने भी अपने आप को ठीक-ठाक कर लिया।
वो सिद्धांत को फोन पर बात करते हुए एक- टक देखती रही.. जैसे उसके दिमाग में यह प्रश्न उठ रहा हो कि जब सब कुछ ठीक है..तो डॉक्टर का फोन किस लिए आया है?
इधर डॉक्टर कृष्णमूर्ति सिद्धांत से पूछ रहे थे कि गीतांजलि की तबीयत कैसी है?
कहीं उसे कुछ आभास तो नहीं हुआ?
उन्होंने यह भी बताया, "कि मुंबई के टाटा मेमोरियल में कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर तरंग से उनकी बात हुई है वह गीतांजलि का चेकअप करके ही, आगे कुछ कह पाएंगे"
मूर्ति से बात करके सिद्धांत को एक नई उम्मीद मिली। लेकिन अब समस्या थी कि क्या बहाना बनाकर गीतांजलि को मुंबई लेकर जाए?
चेकअप के बारे में क्या कहेगा?
फिर कोई नया बहाना बनाएगा, कुछ तो करेगा ही अपनी अंजलि के लिए।
बात करते-करते ही उसने यह सोच लिया था डॉक्टर मूर्ति के फोन के बारे में अंजलि को क्या बताना है।
"क्या हुआ?
डॉक्टर साहब ने फोन क्यों किया?"
अंजली ने प्रश्न किया जिसके लिए सिद्धांत पहले ही तैयार था।
" उनके पोते का जन्मदिन आने वाला है ना.. याद नहीं तुम्हें?
पूछ रहे थे इस बार क्या प्लान करें?
जैसे मैं ही रह गया हूँ , सब बताने के लिए" सिद्धांत ने कमाल की एक्टिंग कर दी गीतांजली के सामने।
"क्या हो गया सिद्धांत? अब उन्हें थोड़े ही पता था , कि यहाँ हम बेवक्त.." आँखे झुकाकर गीतांजली कहते हुए लाल हो गयी।
"अबे यार! सारा मूड खराब कर दिया उन्होंने।तुम और मैं...यहां कितना अच्छा लग रहा था। हमारे प्राइवेट आवर्स को कोई बर्बाद करता है ना, तो मुझे बहुत गुस्सा आता है। गलती कर दी मैंने... फोन को एयरप्लेन मोड पर लगा देना चाहिए था।" सिद्धांत बहुत बड़बड़ाये जा रहा था।
"ओहो बुढ़ापे में कैसे बीस साल के लड़के की तरह बिहेव कर रहे हो!
"इतना भी क्यूँ मूड खराब कर रहे हो यार!" सिद्धांत के गले से लटकती हुई गीतांजली बेहद प्यार से बोली।
"अंजलि बताया तो था तुम्हें! बस जिंदगी को फिर से जीना है मुझे, तुमने भी तो कहा था... मेरा साथ दोगी।" रुआँसा से होकर वो बोला।
"हाँ हाँ बाबा मैंने भी ना नहीं कहा था।" अंजली सिद्धांत को एक छोटे बच्चे की तरह बहलाने में लगी थी।
"अच्छा यह बताओ, अच्छा नहीं लगता तुम्हें मेरे साथ?"
"पागल हो गए हो क्या? तुम्हारा साथ मुझे अच्छा नहीं लगेगा तो किसको लगेगा भला?"
क्वेश्चन बेहद वाहियात था लेकिन गीतांजली तो गीतांजली थी, अपने पति के शब्दों की गलती, पल में माफ़ कर सकती थी।
अपने गुस्से को झाड़ती हुई एकदम पासा सा पलटती हुई बोली, "मुझे हमेशा अच्छा लगता है तुम्हारे साथ...
मुझे , जीवन का एक पल भी याद नहीं जब मैं तुमसे दिल से कभी भी रूठी हों, मैंने कभी तुम्हारे साथ लड़ाई भी की है तो वह जानबूझकर ही की है, दिल से मैंने कभी तुम्हें दूर नहीं किया।
हमारी जो भी लड़ाई हुई वह हमारी लाइफ को और सुंदर बनाने के लिए थी। हमारी लाइफ को ट्रैक पर लाने के लिए थी।"
अब सिद्धांत की बारी थी, "जानता हूँ अंजलि, तुम्हारी सूझबूझ की वजह से ही मैं वह गलतियां करने से रुक पाया, जिन गलतियों को मैं कर लेता तो सारी उम्र पछताता रहता।"
दोनों फिर से एक दूसरे से बहुत देर तक लिपटे रहे।
गीतांजली ने याद दिलाया, "अब खाना खा लेना चाहिए। अपना 'रिश्ता क्या कहलाता है' भी शुरू होने वाला है।"
सिद्धांत का मन तो नहीं था दूर होने का लेकिन उसने अंजली की बात मान ही ली।
अंजली खाना लगाने किचन में चली गयी तो सिद्धांत को चिंता सताने लगी कि छोटे बेटे दुष्यंत को भी तो बताना है, कहीं उसे किसी और से पता चला तो पता नहीं कैसे रियेक्ट करेगा?
उसका बड़ा बेटा जितना इमोशनल है छोटा उतना ही प्रैक्टिकल। दोनों बहुएं उनकी जस्ट उलट हैं। वेदांत को प्रैक्टिकल पत्नी निशि मिली है तो दुष्यंत को इमोशनल पत्नी शुचि।
"वेदांत तो बड़ा ही डिस्टर्ब हो गया होगा अपनी माँ की बीमारी जानकर।
खैर! निशि बखूबी संभाल लेगी उसे। बच्चे दूर रहने लग जाते हैं तो कितना मुश्किल हो जाता है उनसे मिलना। अपनी खुशियाँ और दर्द उनके साथ साझा करना!" सिद्धांत के मन में ये सब चल ही रहा था कि निशि खाना लेकर आ गयी।
"ओहो हो हो हो बैंगन का भरता और मक्की के पराठे!
भई वाह! वाह वाह क्या बात है।"
अपनी थाली पर वो ऐसे टूट पड़ा जैसे जनम जनम का भूखा हो।
"चलाओ-चलाओ यार रिमोट दो तुम सारा सीरियल निकलवा दोगी।" अंजली के हाथ से रिमोट लेता हुआ वह बोला।
"इतनी देर से क्या कर रहे थे? जब मैं किचन में गयी थी?" मुँह में एक कौर रखती हुई अंजली बोली।
"चुप! ध्यान से सुनो, एक एक डॉयलाग सुनने लायक है।"
सिद्धांत सीरियल में लगभग घुस चुका था।
रात हुई, दोनों को दस बजे बिस्तर पर होना ही होता था।आज गीतांजली चैन से सो रही थी लेकिन सिद्धांत करवटें बदल रहा था।
भविष्य की चिंता उसे खाये जा रही थी। कहने को दो जवान बेटे हैं। लेकिन क्या फायदा! एक परिवार केनेडा है तो दूसरा जापान।
ये जो मुसीबत उसके कंधों पर आ पड़ी है, उसे अकेले ही उठानी पड़ेगी। बस इसी उधेड़बुन में कि अब आगे क्या करे, सोचते-सोचते उसकी भी आँख लग ही गयी।
सुबह उठा, सबसे पहले गीतांजली को चेक किया कि कुछ एब्नार्मल तो नहीं है।
सब ठीक-ठाक था। अंजलि परफेक्ट लग रही थी। आज तो टाइम से भी उठी थी।
सिद्धांत मन में सोचने लगा काश ! कोई चमत्कार हो जाए और अंजलि हमेशा ऐसी ही रहे। हमेेशा की तरह अंजलि उसका बैग पकड़कर उसे बाहर तक सी ऑफ करने के लिए आई। ऐसा बस उसने कुछ ऑड कंडीशन्स को छोड़ हमेेेशा किया है।ऑफिस पहुंचकर जैसे ही सिद्धांत को फुर्सत लगी उसने बेटे को फोन मिला लिया।
फोन बहू ने उठाया। सिद्धांत ने खैरियत पूछने के बाद दुष्यंत से बात करने की इच्छा ज़ाहिर की।
बहु शुचि समझ गयी कि जरूर कोई इम्पोर्टेन्ट बात है। नहीं तो बाउजी तो कितनी देर तक पहले उससे ही बात करते हैं।
शुचि ने आवाज लगाई "सुन रहे हैं क्या! बाउजी का फोन है। जल्दी आइए।"
"आ रहा हूं भई" दुष्यंत ने फ़ोन उठाकर नमस्कार किया।
"तुझसे एक बहुत जरूरी बात करने के लिए फोन किया है आज।" सिद्धांत ने एकदम ही धावा बोल दिया।
" कहिए! सब ठीक है , मम्मी कैसी है?"
"सब ठीक नहीं है बेटा"
"क्या हुआ?" दुष्यंत अब अधीर हो चला था।
सिद्धांत का दर्द पिछले दिन के आंसुओं के साथ बह गया था इसलिए आज सामान्य था ।
"बेटा! तेरी मां को दो दिन पहले बहुत बेचैनी हुई थी। वह रात को अचानक उठ गई। मैंने चेक किया तो वह पसीने में बुरी तरह नहाई हुई थी। अगले दिन सुबह हम डॉक्टर कृष्णमूर्ति के क्लीनिक गए उन्होंने ब्लड और यूरिन का सैंपल लिया उसके अगले दिन जब रिपोर्ट मिली तो कुछ ऐसा पता चला....", कहकर सिद्धांत रुक गया। कभी कभी दर्द भी खराश बनकर गले में अटक जाता है।
"क्या... क्या पता चला? क्या हुआ है मां को?" दुष्यंत को अनहोनी की आशंका सी हुई।
"ब्रेन कैंसर हुआ है तेरी मां को" गोला सा दाग दिया बाप ने बेटे पर।
" एक बार फिर से बोलिए " दुष्यंत को यकीन नहीं हुआ
"ब्रेन कैंसर हुआ है बेटा" सिद्धांत ने रिपीट किया।
"पापा मजाक का टाइम है? आप जानते हैं क्या होता है ब्रेन कैंसर?" दुष्यंत का दिमाग अपनी जगह पर नहीं था।
उस ओर से कोई जवाब नहीं आया।
अपनी गलती का अहसास होते ही दुष्यंत ने सॉरी कहा।
" तुझे पता है ना मुझे ज्यादा इंटरनेट चलाना पसंद नहीं, लेकिन जब से तेरी मां की बीमारी के बारे में सुना है... मैं लगातार गूगल पर ब्रेन कैंसर के बारे में सर्च कर रहा हूं। ढूंढ रहा हूं कि क्या इसका इलाज कहीं पॉसिबल है ?
क्या कभी कोई इसका रोगी ठीक हुआ है। कौन सी दवाई है जो इस पर काम कर सकती है!
आज मेरी यह हालत है कि मैं क्या कर रहा हूं या क्या करना चाहता हूँ, किसी के साथ शेयर तक नहीं कर सकता।
मुझे डर है कि किसी भी दूसरे व्यक्ति से तेरी मां को सच्चाई की जानकारी ना हो जाए ।
डॉक्टर मूर्ति ने भी बताया है कि इस बीमारी का नाम सुनकर कहीं पेशेंट्स अपने जीने की वजह ही छोड़ देते हैं।
हौसला खो देते हैं। मैं नहीं चाहता तेरी मां के साथ ऐसा हो।"
मुसीबत के मारे पिता ने अपने बेटे को अपनी सारी परेशानी कह डाली।
दुष्यंत ने पिता को हौंसला दिया। उसने भी वेदांत की तरह रिपोर्ट्स माँगी।
"इस तरह की बातें सुनकर तेरे बड़े भाई का जी कच्चा हो जाता है। तू समझदार है। इसीलिए मुझे तुझसे उम्मीद है कि तू मुझे कुछ जरूर बताएगा कि मैं इस परिस्थिति में क्या करूं?"
पिता का जख्म फिर से उभर आया।
"बाउजी ! मुझे लगता है, हमें सबसे पहले मम्मी की दोबारा जांच करानी चाहिए । अगर रिपोर्ट में एरर का एक परसेंट भी चांस है तब भी।
बाकी ! मैं सर्च करता हूं और आपको बताता हूं कि अब इस केस में हमें क्या करना चाहिए । हम सब कोशिश करेंगे की अलग-अलग बात करके ना करके वीडियो या ऑडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर लिया करें इससे टाइम भी बचेगा और किसी नतीजे पर भी जल्दी पहुंच जाएंगे।" दुष्यंत ने पिता को सुझाया।
"यह तेरा आईडिया मुझे अच्छा लगा बेटा, डॉ मूर्ति ने बताया है कि तेरी मां की थर्ड स्टेज है। उसके पास समय कम है लेकिन अगर हम सब कोशिश करें, तो उसकी उम्र बढ़ सकती है। मेरी मदद करोगे ना बेटे?" सिद्धांत ने बेबसी से पूछा।
"कैसी बात करते हैं बाबू जी वह सिर्फ आपकी पत्नी नहीं हमारी मां भी है और मां भी कोई ऐसी वैसी नहीं गीतांजलि नायर है, दुष्यंत की मां इतनी कमजोर कैसे हो सकती है?
"वह तो हम सब की... पूरे परिवार की हिम्मत है। उसने तो हम सबको सहारा दिया है अब हमारा समय आया है पापा, अब हम उसकी हिम्मत बनेंगे।" दुष्यंत ने सिद्धांत को नई ऊर्जा से भर दिया।
अगला दिन सिद्धांत और अंजली के लिए कैसा होगा? अंजली को लेकर सिद्धांत ने जो योजनाएं बनाई हैं। क्या वो सफल होंगी?
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