पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि अंजली के साथ बिताए पल सिद्धांत को कैसे एक एक करके याद आ रहे थे। अंजली की तबियत खराब होने का कारण जानने के लिए वो कितना बेचैन था।
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डॉक्टर मूर्ति ने डायरेक्टली कह दिया, "गीतांजलि को कैंसर है... ब्रेन कैंसर"
कैंसर??
क्या कह रहे हैं आप?
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा!
आप दोबारा देखिए
ठीक से देखिए, किसी से बदल गयी है ये रिपोर्ट। जैसे..जैसे फिल्मों में बदल जाती है।आप दुबारा टेस्ट कराइये
मुझे विश्वास नहीं।
"सीधे शब्दों में कहूं, पता नहीं मैं तुम्हें यह सब बताने की हिम्मत कर कैसे पा रहा हूँ?
एक डॉक्टर का फर्ज है कि वो अपने मरीज़ को अंधेरे में ना रखे। इसलिए बता रहा हूँ कि गीतांजली कितने दिन जियेगी, ये बस तुम पर है अब।
मैं तुम्हें पहले भी कहता था कि जल्दी-जल्दी हेल्थ चेकअप कराते रहना चाहिए। शरीर है कुछ पता नहीं इसमें क्या चल रहा है।लेकिन तुम नहीं माने। तुमने कहा कि हम स्वस्थ हैं। अपने पैसे बनाने के चक्कर में मत पड़ों डॉक्टर।
जनता हूँ वो बस तुम्हारा मज़ाक था।लेकिन कभी-कभी चीजों को हल्के में लेना बहुत भारी पड़ जाता है। उसका हेल्थ चेक अप समय से होता तो ये बीमारी जल्दी पकड़ में आ सकती थी।" डॉक्टर मूर्ति ने एक ही सांस में सब कुछ कह दिया (जैसे बीच में रुक जाते तो नहीं कह पाते)
सिद्धांत ने अपने दोनों हाथों से अपने बालों को कसकर पकड़ लिया जैसे ऐसा करने से उस पर जो मुसीबत टूटी है उसका असर कुछ कम हो सकता हो।
सिद्धांत को किसी फॉर्मेलिटी की चिंता नहीं थी आज। वो डॉक्टर मूर्ति के सामने बच्चे की तरह रो रहा था ।
"मुझसे गलती हो गयी डॉक्टर, मैं अब कभी भी इस तरह की लापरवाही नहीं करूंगा। मेरी अंजली को बचाना है...उसे बचाना है, कुछ भी करो, कोई भी उपाय निकालो लेकिन मेरी गलती की सज़ा उसे नहीं मिलेगी" उसने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर गिड़गिड़ाने की हद कर दी।
यदि आज कोई बाहरी व्यक्ति ये दृश्य देख रहा होता तो एक ऑफीसर को यूँ गिड़गिड़ाता देख बड़ा अजीब लगता उसे।
लेकिन ये भी बिल्कुल सच है कि ईश्वर की लाठी की चोट राजा और रंक सबको बराबर दर्द देती है।
इतने में वार्ड बॉय ने दरवाजा खोला और कहा "पेशेंट्स आपका वेट कर रहे हैं"
"अभी.. अभी..भेज देना मैं अभी रिंग कर दूंगा " डॉक्टर मूर्ति जो सिद्धांत के दर्द में खुद भी विचलित हो गए थे अपने आप को संभालते हुए बोले।
"देखो सिद्धांत! जहाँ तक मेरी जानकारी है , ब्रेन कैंसर का कोई ट्रीटमेंट नहीं है अभी तक हमारे पास। हाँ गीतांजली की तकलीफ़ कुछ कम हो सकती है अगर तुम और वो खुद दोनों ठान लें तो।
इसके अलावा विदेशों में अपने सारे डॉक्टर्स साथियों से मैं कांटेक्ट करूंगा और इस केस को डिसकस करूंगा, तब तक तुम्हें गीतांजली का पूरा ध्यान रखना होगा। जो दवाईयां बताऊंगा, समय से खिलाओगे तुम उसे.....ठीक है!"
"डॉक्टर मेरी सारी जिंदगी की कमाई... मेरी जमीन...जायदाद सब कुछ ले लो।
जो भी खर्चा हो जाए लेकिन मुझे अंजलि को बचाना है.... मुझे मेरी अंजलि को बचाना है। किसी भी कीमत पर।" सिद्धांत ने फिर से डॉक्टर मूर्ति से प्रार्थना की।
"उसे प्लीज बताना मत,
इस केस में, मरीज हतोत्साहित हो जाता है और जितने दिन उसे जीना होता है उससे भी कम दिनों में ही चल बसता है। गीतांजलि का कैंसर थर्ड स्टेज में पहुंच चुका है" बस इतना कहकर डॉक्टर ने अगले पेशेंट के लिए बैल दे दी।
सिद्धांत समझ गया कि डॉक्टर अब ज्यादा टाइम नहीं देंगे उसे।
क्लीनिक से लेकर घर तक आज सिद्धांत ने ना तो म्यूजिक ही चलाया और ना ही अतीत की यादों में खोया
उसे बस रोना अच्छा लग रहा था।
...बस रोते रहना।
जिस गति से गाड़ी चल रही थी- उसी गति से सिद्धांत के आंसू उसके गालों पर गिर रहे थे।
वह चाह रहा था की क्लीनिक से लेकर घर का रास्ता खत्म ही ना हो और वह रोता ही रहे।
उसका जी चाह रहा था कि आज अपनी अंजली से लिपट कर जोर जोर से चिल्लाये और कहे "कोई नहीं छीन सकता तुम्हें मुझसे, कोई नहीं।"
लेकिन मनुष्य एक बहुत ही समझदार प्राणी है, उसे आता है मुश्किलों में पड़ कर भी संभालना, दर्द में भी मुस्कुराना।
चोट पाकर वो बिलबिलाता तो जरूर है.. लेकिन अगले ही पल अपनों को संभालने के लिए संभल भी जाता है।
अपने दिल को पत्थर बनाना उसे बखूबी आता है।
सिद्धांत , अंजली को कुछ नहीं बता सकता।इस ज़हर का घूँट उसे अकेले ही पीना है। इंडिया गेट पर पहुंचकर उसने अपनी गाड़ी पार्क की, एक ऐसी जगह पहुंचा जहां भीड़ ना के बराबर रहती है, भाग कर एक पेड़ से लिपट कर रोया, जितना जी चाहा उतना रोया ।
कई बार बहुत टूटने पर ही... जुड़ने की हिम्मत मिलती है।
रो-रो कर जब उसने अपने आप को बेहाल कर लिया तब ही उसे अपने आप को संभालने की हिम्मत मिली।
वह थोड़ी देर के लिए उसी पेड़ के नीचे सिर पर हाथ रखकर बैठ गया।
दिल अपना काम करके थक चुका था । अब दिमाग की बारी थी।
सिद्धांत संभला तो खुद ही गीतांजलि को खुश रखने के तरीके खोजने लगा।
उसके दिमाग में ढेर सारे ऑप्शन आ रहे थे। जैसे दिल्ली का राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट ,आयुर्वेदिक दवा खाने, मुम्बई का टाटा मेमोरियल ठीक रहेगा या एम्स।
मुझे ये सब अंजली को बिना बताए करना होगा अकेले।
कभी सोचा था ऐसी परिस्तिथि भी आएगी कि उसे अंजली से छुपा कर कुछ करना होगा। सिद्धांत अपनी अंजली के लिए आज हर सीमा को पार करने के लिए तैयार था।
दिमाग में ढेर सारी शंकाएं और प्रश्न घूम रहे थे।सिद्धांत ने हमेशा वर्तमान में जीना सीखा था। भविष्य की चिंता तो उसने बस रुपयों पैसों के इन्वेस्टमेंट और बच्चों की पढ़ाई- लिखाई को लेकर ही की थी। लेकिन आज गीतांजलि के भविष्य को लेकर या फिर कहें अपने भविष्य को लेकर बहुत ज्यादा चिंता में था। उसे पुरानी फिल्मों की तरह गीतांजलि से लिपटकर रोना नहीं था उसे समस्या का हल ढूंढना था। समस्या... जो एक पिशाचिनी की तरह उसके दिलो-दिमाग पर छा गई थी।
सबसे बड़ा प्रश्न था.. बच्चों को बताए या ना बताए?
उसने फोन निकाला और बड़े बेटे वेदांत को फोन लगाया। समय ऐसा था कि कनाडा में सुबह हो रही होगी। वेदांत ने फोन उठा लिया।
सिद्धांत अक्सर हर शनिवार को फ़ोन किया करता था। दो दिन में ही दुबारा फ़ोन आना वेदांत को कुछ अटपटा सा लगा।
सिद्धांत इधर-उधर की बातें करता रहा।फिर वेदांत ने आखिर पूछ ही लिया, "क्या बात है पापा? आपने फ़ोन किसी और बात के लिए किया है, बताईये क्या बात है?"
उसके पूछते ही सिद्धांत की आवाज़ बंद हो गयी। वेदांत ने एकदम सही प्रश्न पूछा," पापा मम्मी कैसी है?"
सिद्धांत की जीभ जवाब दे गई
वेदांत ने फिर से पूछा, "मम्मी कैसी है पापा? आवाज आ रही है मेरी?"
सिद्धांत बड़ी कोशिश करने के बाद बोल पाया, "तेरी मम्मी के बारे में ही बात करने के लिए फोन लगाया है तुझे, तेरी मां को ब्रेन कैंसर है बेटा...हुं हुँ हुँ... और इतना बोल कर सिद्धांत फोन पर ही फूट-फूट कर रोने लगा"
अक्सर हमारा दर्द उन लोगों के सामने सबसे ज्यादा निकलता है जो हमारे दर्द को अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं।
उधर वेदांत भी इस अनहोनी को सुनकर दुखी हो गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि इतनी दूर से वह अपने पिता को कैसे ढांढस बंधाये। उसने कोशिश की "लिसेन पापा, यू आर वेरी स्ट्रांग, यू विल मैनेज ऑल दिस।"
वी आर वेरी फार फ्रॉम यू। यू नो इट इज़ नॉट पॉसिबल टू कम इंडिया, एट वन्स। बट आई विल डेफिनेटली डू समथिंग। डोंट वरी पापा, व्हाट इज द स्टेज?
प्लीज सेंड मी द डॉक्युमेंट्स एंड रिपोर्ट्स
आई विल शो हर रिपोर्ट्स टू द डॉक्टर्स हेयर।
शी विल बी ऑलराइट... शी विल विन.."
कहते कहते वेदांत फ़ोन के दूसरी ओर फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगा।
उसे होश ही नहीं रहा कि वो हिंदी में बोल रहा है या इंग्लिश में।
उसकी हालत देखकर उसकी पत्नी निशि ने उससे फ़ोन ले लिया।
"हेलो! नमस्ते पापा जी क्या हुआ है मम्मी को ?" एक समझदार बहु की तरह वह बोली।
सिद्धांत ने बताया,"थर्ड स्टेज है ब्रेन कैंसर का, ज्यादा नहीं जियेगी अब वो"
"ऐसा कुछ नहीं होगा, अभी बहुत जीना है उन्हें। हम सबको बहुत जरूरत है उनकी और आप... आप क्या ऐसे ही जाने देंगे उन्हें?"
निशि ने बड़ी हिम्मत देने वाला सवाल दाग दिया सिद्धांत पर।
गृहस्थी कैसे संभाली जाती है! अपने घर संसार को जोड़ कर कैसे रखते हैं। अपने घर में प्रेम के फूल खिलाने के लिए, कैसे अपने अभिमान के कांटे निकालकर फेंके जाते हैं, ये सब तो मैंने मम्मी जी से ही सीखा है। जब मेरी अपनी माँ ने मेरी गृहस्थी तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तब मेरी सासू माँ ने मुझे सही रास्ता दिखाया। आज उन्हीं के सुझाये रास्ते का परिणाम है कि वेदांत और मैं इतने खुश हैं। हम सबका प्यारा कार्तिक उन्हीं की अमानत है। मेरा घर संसार उन्हीं का उपकार है मेरे ऊपर, ऐसी पवित्र आत्मा के आगे तो ईश्वर को भी झुकना होगा। देखें, कैसे ले जाएगा हमारी माँ को हमसे छीनकर!"
निशि एक सांस में बोले जा रही थी। बोलते बोलते उसका स्वर बहुत तेज़ हो गया।
इसका अहसास जब उसे हुआ, तो वह बोली, "सॉरी पापा, थोड़ा रुककर वह फिर से बोली दिल पर चोट लगती है तो आवाज़ तेज़ हो ही जाती है। पापा प्लीज आप धीरज मत खोना। हम आपसे दूर भले ही है लेकिन इस दुख में हम सब साथ हैं।"
"मुझे घर जाने के लिए देर हो रही है।मैं अब फ़ोन रखता हूँ। रिपोर्ट्स सेंड कर दूँगा। अब आगे क्या करना है दुष्यंत के साथ मिलकर डिसकस करेंगे। तुम उसे बता देना।....नहीं मैं ही बताऊँगा उसे भी... रखता हूँ"
सिद्धांत ने कहते हुए फ़ोन रख दिया।
क्या सिद्धांत अंजली की इस बीमारी के आगे झुक जाएगा? टूट जाएगा? वो ऐसा क्या करने वाला है जिससे अंजली अपना सुखी संसार फिर से पा सकेगी?
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