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अनूठी बातें

15 जून 2022

13 बार देखा गया 13

जो बहुत बनते हैं उनके पास से,

चाह होती है कि कैसे टलें।

जो मिलें जी खोलकर उनके यहाँ

चाहता है कि सर के बल चलें॥


और की खोट देखती बेला,

टकटकी लोग बाँध लेते हैं।

पर कसर देखते समय अपनी,

बेतरह आँख मूँद लेते हैं॥


तुम भली चाल सीख लो चलना,

और भलाई करो भले जो हो।

धूल में मत बटा करो रस्सी,

आँख में धूल ड़ालते क्यों हो॥


सध सकेगा काम तब कैसे भला,

हम करेंगे साधने में जब कसर?

काम आयेंगी नहीं चालाकियाँ

जब करेंगे काम आँखें बंद कर॥


खिल उठें देख चापलूसों को,

देख बेलौस को कुढे आँखें।

क्या भला हम बिगड़ न जायेंगे,

जब हमारी बिगड़ गयी आँखें॥


तब टले तो हम कहीं से क्या टले,

डाँट बतलाकर अगर टाला गया।

तो लगेगी हाँथ मलने आबरू

हाँथ गरदन पर अगर ड़ाला गया॥


है सदा काम ढंग से निकला

काम बेढंगापन न देगा कर।

चाह रख कर किसी भलाई की।

क्यों भला हो सवार गर्दन पर॥


बेहयाई, बहक, बनावट नें,

कस किसे नहीं दिया शिकंजे में।

हित-ललक से भरी लगावट ने,

कर लिया है किसी ने पंजे में॥


फल बहुत ही दूर छाया कुछ नहीं

क्यों भला हम इस तरह के ताड़ हों?

आदमी हों और हों हित से भरे,

क्यों न मूठी भर हमारे हाड़ हों॥

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रचनाएँ
प्रतिनिधि कविताएँ
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अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी काव्य को लोकगीत एवं मानव कल्याण के साधन के रूप में स्वीकार करते थे | वह कविता को ईश्वर प्रदत्त अलौकिक वरदान समझकर काव्य रचना करते थे | इसीलिए उनके काव्य में सर्व मंगल का स्वर मुखरित होता है उनके काव्य में पौराणिक एवं आधुनिक समाज में ख्याति प्राप्त लोग नायक नायिकाओं को प्रतिनिधि स्थान प्राप्त हुआ है |
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प्रेम

15 जून 2022
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उमंगों भरा दिल किसी का न टूटे। पलट जायँ पासे मगर जुग न फूटे। कभी संग निज संगियों का न छूटे। हमारा चलन घर हमारा न लूटे। सगों से सगे कर न लेवें किनारा। फटे दिल मगर घर न फूटे हमारा।1। कभी प्रेम क

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आ री नींद

15 जून 2022
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आ री नींद, लाल को आ जा। उसको करके प्यार सुला जा।। तुझे लाल हैं ललक बुलाते। अपनी आँखों पर बिठलाते।। तेरे लिए बिछाई पलकें। बढ़ती ही जाती हैं ललकें।। क्यों तू है इतनी इठलाती। आ-आ मैं हूँ तुझे बुला

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मीठी बोली

15 जून 2022
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बस में जिससे हो जाते हैं प्राणी सारे। जन जिससे बन जाते हैं आँखों के तारे। पत्थर को पिघलाकर मोम बनानेवाली मुख खोलो तो मीठी बोली बोलो प्यारे।। रगड़ो, झगड़ो का कडुवापन खोनेवाली। जी में लगी हुई काई क

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एक तिनका

15 जून 2022
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मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ । एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा । आ अचानक दूर से उड़ता हुआ । एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।1। मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा । लाल होकर आँख भी दुखने लगी । मूँठ देने लोग

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एक बून्द

15 जून 2022
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ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी। मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में, चू पड़ूँगी या कमल के फूल में। बह गई उस

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जागो प्यारे

15 जून 2022
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उठो लाल अब आँखे खोलो पानी लाई हूँ मुँह धो लो बीती रात कमल दल फूले उनके ऊपर भंवरे डोले चिड़िया चहक उठी पेड़ पर बहने लगी हवा अति सुंदर नभ में न्यारी लाली छाई धरती ने प्यारी छवि पाई भोर ह

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चन्दा मामा

15 जून 2022
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चन्दा मामा दौड़े आओ, दूध कटोरा भर कर लाओ । उसे प्यार से मुझे पिलाओ, मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ । मैं तैरा मृग छौना लूँगा, उसके साथ हँसूँ खेलूँगा । उसकी उछल कूद देखूँगा, उसको चाटूँगा चूमूँगा ।

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कोयल

15 जून 2022
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काली-काली कू-कू करती, जो है डाली-डाली फिरती!        कुछ अपनी हीं धुन में ऐंठी        छिपी हरे पत्तों में बैठी जो पंचम सुर में गाती है वह हीं कोयल कहलाती है.         जब जाड़ा कम हो जाता है      

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फूल और काँटा

15 जून 2022
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हैं जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता। मेह उन पर है बरसता एक सा, एक सी उन पर हवाएँ हैं बही पर सदा ही यह दिखाता है हमें,

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आँख का आँसू

15 जून 2022
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आँख का आँसू ढलकता देख कर। जी तड़प करके हमारा रह गया। क्या गया मोती किसी का है बिखर। या हुआ पैदा रतन कोई नया।1। ओस की बूँदें कमल से हैं कढ़ी। या उगलती बूँद हैं दो मछलियाँ। या अनूठी गोलियाँ चाँद

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कर्मवीर

15 जून 2022
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देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले

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बादल

15 जून 2022
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सखी ! बादल थे नभ में छाये बदला था रंग समय का थी प्रकृति भरी करूणा में कर उपचय मेघ निश्चय का।। वे विविध रूप धारण कर नभ–तल में घूम रहे थे गिरि के ऊँचे शिखरों को गौरव से चूम रहे थे।। वे कभी

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संध्या

15 जून 2022
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दिवस का अवसान समीप था गगन था कुछ लोहित हो चला तरू–शिखा पर थी अब राजती कमलिनी–कुल–वल्लभ की प्रभा विपिन बीच विहंगम–वृंद का कल–निनाद विवधिर्त था हुआ ध्वनिमयी–विविधा–विहगावली उड़ रही नभ मण्डल मध्

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सरिता

15 जून 2022
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किसे खोजने निकल पड़ी हो। जाती हो तुम कहाँ चली। ढली रंगतों में हो किसकी। तुम्हें छल गया कौन छली।।1।। क्यों दिन–रात अधीर बनी–सी। पड़ी धरा पर रहती हो। दु:सह आतप शीत–वात सब दिनों किस लिये सहती हो

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जन्‍मभूमि

15 जून 2022
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सुरसरि सी सरि है कहाँ मेरु सुमेर समान। जन्मभूमि सी भू नहीं भूमण्डल में आन।। प्रतिदिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल। नहीं जन्म भर हम सके जन्मभूमि को भूल।। पग सेवा है जननि की जनजीवन का सार। मि

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अनूठी बातें

15 जून 2022
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जो बहुत बनते हैं उनके पास से, चाह होती है कि कैसे टलें। जो मिलें जी खोलकर उनके यहाँ चाहता है कि सर के बल चलें॥ और की खोट देखती बेला, टकटकी लोग बाँध लेते हैं। पर कसर देखते समय अपनी, बेतरह आँख

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हमारा पतन

15 जून 2022
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जैसा हमने खोया, न कोई खोवेगा ऐसा नहीं कोई कहीं गिरा होवेगा।। एक दिन थे हम भी बल विद्या बुद्धिवाले एक दिन थे हम भी धीर वीर गुनवाले एक दिन थे हम भी आन निभानेवाले एक दिन थे हम भी ममता के मतवाले।। ज

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दमदार दावे

15 जून 2022
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जो आँख हमारी ठीक ठीक खुल जावे। तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे। है पास हमारे उन फूलों का दोना। है महँक रहा जिनसे जग का हर कोना। है करतब लोहे का लोहापन खोना। हम हैं पारस हो जिसे परसते सोना। जो जो

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आँसू और आँखें

15 जून 2022
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दिल मचलता ही रहता है । सदा बेचैनी रहती है । लाग में आ आकर चाहत । न जाने क्या क्या कहती है ।।१।। कह सके यह कोई कैसे । आग जी की बुझ जाती है । कौन सा रस पाती है जो । आँख आँसू बरसाती है ।।२।।

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प्यासी आँखें

15 जून 2022
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कहें क्या बातें आँखों की । चाल चलती हैं मनमानी । सदा पानी में डूबी रह । नहीं रख सकती हैं पानी ।।१।। लगन है रोग या जलन है । किसी को कब यह बतलाया । जल भरा रहता है उनमें । पर उन्हें प्यासी ही पा

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विवशता

15 जून 2022
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रहा है दिल मला करे । न होगा आँसू आए । सब दिनों कौन रहा जीता । सभी तो मरते दिखलाए ।।१।। हो रहेगा जो होना है टलेगी घड़ी न घबराए। छूट जाएँगे बंधन से। मौत आती है तो आए।।२।।

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फूल

15 जून 2022
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रंग कब बिगड़ सका उनका रंग लाते दिखलाते हैं । मस्त हैं सदा बने रहते । उन्हें मुसुकाते पाते हैं ।।१।। भले ही जियें एक ही दिन । पर कहा वे घबराते हैं । फूल हँसते ही रहते हैं । खिला सब उनको पाते ह

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मतवाली ममता

15 जून 2022
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मानव ममता है मतवाली । अपने ही कर में रखती है सब तालों की ताली । अपनी ही रंगत में रंगकर रखती है मुँह लाली । ऐसे ढंग कहा वह जैसे ढंगों में हैं ढाली । धीरे-धीरे उसने सब लोगों पर आँखें डाली । अपनी-सी

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निर्मम संसार

15 जून 2022
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वायु के मिस भर भरकर आह । ओस मिस बहा नयन जलधार । इधर रोती रहती है रात । छिन गये मणि मुक्ता का हार ।।१।। उधर रवि आ पसार कर कांत । उषा का करता है शृंगार । प्रकृति है कितनी करुणा मूर्ति । देख लो

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अभेद का भेद

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खोजे खोजी को मिला क्या हिन्दू क्या जैन। पत्ता पत्ता क्यों हमें पता बताता है न।1। रँगे रंग में जब रहे सकें रंग क्यों भूल। देख उसी की ही फबन फूल रहे हैं फूल।2। क्या उसकी है सोहती नहीं नयन में सो

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प्रार्थना

15 जून 2022
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हे दीनबंधु दया-निकेतन विहग-केतन श्रीपते। सब शोक-शमन त्रिताप-मोचन दुख-दमन जगतीपते। भव-भीति-भंजन दुरित-गंजन अवनि-जन-रंजन विभो। बहु-बार जन-हित-अवतरित ऐ अति-उदार-चरित प्रभो।1। बहु-मूल्यता से वसन की

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कमनीय कामनाएँ

15 जून 2022
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वर-विवेक कर दान सकल-अविवेक निवारे। दूर करे अविनार सुचारु विचार प्रचारे। सहज-सुतति को बितर कुमति-कालिमा नसावे। करे कुरुचि को विफल सुरुचि को सफल बनावे। भावुक-मन-सुभवन में रहे प्रतिभा-प्रभा पसारती।

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आदर्श

15 जून 2022
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लोक को रुलाता जो था राम ने रुलाया उसे हम खल खलता के खले हैं कलपते। काँपता भुवन का कँपाने वाला उन्हें देख हम हैं बिलोक बल-वाले को बिलपते। हरिऔधा वे थे ताप-दाता ताप-दायकों के हम नित नये ताप से हैं

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गुणगान

15 जून 2022
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गणपति गौरी-पति गिरा गोपति गुरु गोविन्द। गुण गावो वन्दन करो पावन पद अरविन्द।1। देव भाव मन में भरे दल अदेव अहमेव। गिरि गुरुता से हैं अधिक गौरव में गुरुदेव।2। पाप-पुंज को पीस गुरु त्रिविध ताप कर

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माता-पिता

15 जून 2022
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उसके ऐसा है नहीं अपनापन में आन। पिता आपही अवनि में हैं अपना उपमान।1। मिले न खोजे भी कहीं खोजा सकल जहान। माता सी ममतामयी पाता पिता समान।2। जो न पालता पिता क्यों पलना सकता पाल। माता के लालन बिन

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हमारे वेद

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अभी नर जनम की बजी भी बधाई। रही आँख सुधा बुधा अभी खोल पाई। समझ बूझ थी जिन दिनों हाथ आई। रही जब उपज की झलक ही दिखाई। कहीं की अंधेरी न थी जब कि टूटी। न थी ज्ञान सूरज किरण जब कि फूटी।1। तभी एक न्य

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पुष्पांजलि

15 जून 2022
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राम चरित सरसिज मधुप पावन चरित नितान्त। जय तुलसी कवि कुल तिलक कविता कामिनि कान्त।1। सुरसरि धारा सी सरस पूत परम रमणीय। है तुलसी की कल्पना कल्पलता कमनीय।2। अमित मनोहरता मथी अनुपमता आवास। है तुलस

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उद्बोधन

15 जून 2022
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वेदों की है न वह महिमा धर्म ध्वंस होता। आचारों का निपतन हुआ लुप्त जातीयता है। विप्रो खोलो नयन अब है आर्यता भी विपन्ना। शीलों की है मलिन प्रभुता सभ्यता वंचिता है।1। सच्चे भावों सहित जिन के राम ने

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विद्यालय

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है विद्यालय वही जो परम मंगलमय हो। बरविचार आकलित अलौकिक कीर्ति निलय हो। भावुकता बर वदन सुविकसित जिससे होवे। जिसकी शुचिता प्रीति वेलि प्रति उर में बोवे। पर अतुलित बल जिससे बने जाति बुध्दि अति बलवती।

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जीवन-मरण

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पोर पोर में है भरी तोर मोर की ही बान मुँह चोर बने आन बान छोड़ बैठी है। कैसे भला बार बार मुँह की न खाते रहें सारी मरदानगी ही मुँह मोड़ बैठी है। हरिऔधा कोई कस कमर सताता क्यों न कायरता होड़ कर नाता

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परिवर्तन

15 जून 2022
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तिमिर तिरोहित हुए तिमिर-हर है दिखलाता। गत विभावरी हुए विभा बासर है पाता। टले मलिनता सकल दिशा है अमलिन होती। भगे तमीचर, नीरवता तमचुर-धवनि खोती। है वहाँ रुचिरता थीं जहाँ धाराएँ अरुचिर बहीं। कब परिव

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हमें चाहिए

15 जून 2022
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कपड़े रँग कर जो न कपट का जाल बिछावे। तन पर जो न विभूति पेट के लिए लगावे। हमें चाहिए सच्चे जी वाला वह साधू। जाति देश जगहित कर जो निज जन्म बनाये।1। देशकाल को देख चले निजता नहिं खोवे। सार वस्तु को

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हमें नहीं चाहिए

15 जून 2022
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आप रहे कोरा शरीर के बसन रँगावे। घर तज कर के घरबारी से भी बढ़ जावे। इस प्रकार का नहीं चाहिए हम को साधू। मन तो मूँड़ न सके मूँड़ को दौड़ मुड़ावे।1। मन का मोह न हरे, राल धान पर टपकावे। मुक्ति बहान

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क्या होगा

15 जून 2022
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बहँक कर चाल उलटी चल कहो तो काम क्या होगा। बड़ों का मुँह चिढ़ा करके बता दो नाम क्या होगा।1। बही जी में नहीं जो बेकसों के प्यार की धारा। बता दो तो बदन चिकना व गोरा चाम क्या होगा।2। दुखी बेवों

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एक उकताया

15 जून 2022
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क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता। बिन कहे भी रहा नहीं जाता।1। बे तरह दुख रहा कलेजा है। दर्द अब तो सहा नहीं जाता।2। इन झड़ी बाँधा कर बरस जाते। आँसुओं में बहा नहीं जाता।3। चोट खा खा मसक मसक करके।

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कुछ उलटी सीधी बातें

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जला सब तेल दीया बुझ गया है अब जलेगा क्या। बना जब पेड़ उकठा काठ तब फूले फलेगा क्या।1। रहा जिसमें न दम जिसके लहू पर पड़ गया पाला। उसे पिटना पछड़ना ठोकरें खाना खलेगा क्या।2। भले ही बेटियाँ बहनें

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दिल के फफोले -1

15 जून 2022
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जिसे सूझ कर भी नहीं सूझ पाता। नहीं बात बिगड़ी हुई जो बनाता। फिसल कर सँभलना जिसे है न आता। नहीं पाँव उखड़ा हुआ जो जमाता। पड़ेगा सुखों का उसे क्यों न लाला। सदा ही सहेगा न वह क्यों कसाला।1। रँगा

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अपने दुखड़े

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देश को जिस ने जगाया जगे सोने न दिया। आग घर घर में बुरी फूट को बोने न दिया।1। है वही बीर पिया दूध उसी ने माँ का। जाति को जिसने जिगर थाम के रोने न दिया।2। बन गये भोले बहुत, अपनी भलाई भूली। है इ

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चाहिए

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राह पर उसको लगाना चाहिए। जाति सोती है जगाना चाहिए।1। हम रहेंगे यों बिगड़ते कब तलक। बात बिगड़ी अब बनाना चाहिए।2। खा चुके हैं आज तक मुँह की न कम। सब दिनों मुँह की न खाना चाहिए।3। हो गयी मुद्

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उलटी समझ

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जाति ममता मोल जो समझें नहीं। तो मिलों से हम करें मैला न मन। देश-हित का रंग न जो गाढ़ा चढ़ा। तो न डालें गाढ़ में गाढ़ा पहन।1। धूल झोंकें न जाति आँखों में। फाड़ देवें न लाज की चद्दर। दर बदर फिर

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समझ का फेर

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है भरी कूट कूट कोर कसर। माँ बहन से करें न क्यों कुट्टी। लोग सहयोग कर सकें कैसे। है असहयोग से नहीं छुट्टी।1। मेल बेमेल जाति से करके। हम मिटाते कलंक टीके हैं। जाति है जा रही मिटी तो क्या। रंग म

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सेवा

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देख पड़ी अनुराग-राग-रंजित रवितन में। छबि पाई भर विपुल-विभा नीलाभ-गगन में। बर-आभा कर दान ककुभ को दुति से दमकी। अन्तरिक्ष को चारु ज्योतिमयता दे चमकी। कर संक्रान्ति गिरि-सानु-सकल को कान्त दिखाई। शोभ

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सुशिक्षा-सोपान

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जी लगा पोथी अपनी पढ़ो। केवल पढ़ो न पोथी ही को, मेरे प्यारे कढ़ो। कभी कुपथ में पाँव न डालो, सुपथ ओर ही बढ़ो। भावों की ऊँची चोटी पर बड़े चाव से चढ़ो। सुमति-खंजरी को मानवता-रुचि-चाम से मढ़ो। बन सोना

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भोर का उठना

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भोर का उठना है उपकारी। जीवन-तरु जिससे पाता है हरियाली अति प्यारी। पा अनुपम पानिप तन बनता है बल-संचय-कारी। पुलकित, कुसुमित, सुरभित, हो जाती है जन-उर-क्यारी। लालिमा ज्यों नभ में छाती है। त्यो

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अविनय

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ढाल पसीना जिसे बड़े प्यारों से पाला। जिसके तन में सींच सींच जीवन-रस डाला। सुअंकुरित अवलोक जिसे फूला न समाया। पा करके पल्लवित जिसे पुलकित हो आया। वह पौधा यदि न सुफल फले तो कदापि न कुफल फले। अवलोक

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कुसुम चयन

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जो न बने वे विमल लसे विधु-मौलि मौलि पर। जो न बने रमणीय सज, रमा-रमण कलेवर। बर बृन्दारक बृन्द पूज जो बने न बन्दित। जो न सके अभिनन्दनीय को कर अभिनन्दित। जो विमुग्धा कर हुए वे न बन मंजुल-माला। जो उनस

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बन-कुसुम

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एक कुसुम कमनीय म्लान हो सूख विखर कर। पड़ा हुआ था धूल भरा अवनीतल ऊपर। उसे देख कर एक सुजन का जी भर आया। वह कातरता सहित वचन यह मुख पर लाया।1। अहो कुसुम यह सभी बात में परम निराला। योग्य करों में पड

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कृतज्ञता

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माली की डाली के बिकसे कुसुम बिलोक एक बाला। बोली ऐ मति भोले कुसुमो खल से तुम्हें पड़ा पाला। विकसित होते ही वह नित आ तुम्हें तोड़ ले जाता है। उदर-परायणता वश पामर तनिक दया नहिं लाता है।1। सुनो इसलि

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एक काठ का टुकड़ा

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जलप्रवाह में एक काठ का टुकड़ा बहता जाता था। उसे देख कर बार बार यह मेरे जी में आता था। पाहन लौं किसलिए उसे भी नहीं डुबाती जल-धारा। एक किसलिए प्रतिद्वन्दी है और दूसरा है प्यारा। मैं विचार में डूबा ह

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नादान

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कर सकेंगे क्या वे नादान। बिन सयानपन होते जो हैं बनते बड़े सयान। कौआ कान ले गया सुन जो नहिं टटोलते कान। वे क्यों सोचें तोड़ तरैया लाना है आसान।1। है नादान सदा नादान। काक सुनाता कभी नहीं है क

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भाषा

15 जून 2022
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जातियाँ जिससे बनीं, ऊँची हुई, फूली फलीं। अंक में जिसके बड़े ही गौरवों से हैं पलीं। रत्न हो करके रहीं जो रंग में उसके ढलीं। राज भूलीं, पर न सेवा से कभी जिसकी टलीं। ऐ हमारे बन्धुओ! जातीय भाषा है वही

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हिन्दी भाषा

15 जून 2022
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पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा। हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा। बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती। कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती। आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही। इक्की

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उद्बोधन - 1

15 जून 2022
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सज्जनो! देखिए, निज काम बनाना होगा। जाति-भाषा के लिए योग कमाना होगा।1। सामने आके उमग कर के बड़े बीरों लौं। मान हिन्दी का बढ़ा आन निभाना होगा।2। है कठिन कुछ नहीं कठिनाइयाँ करेंगी क्या। फूँक से

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अभिनव कला

15 जून 2022
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प्यार के साथ सुधाधाार पिलाने वाली। जी-कली भाव विविधा संग खिलाने वाली। नागरी-बेलि नवल सींच जिलाने वाली। नीरसों मधय सरसतादि मिलाने वाली। देख लो फिर उगी साहित्य-गगन कर उजला। अति कलित कान्तिमती चारु

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उलहना

15 जून 2022
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वही हैं मिटा देते कितने कसाले। वही हैं बड़ों की बड़ाई सम्हाले। वही हैं बड़े औ भले नाम वाले। वही हैं अँधेरे घरों के उँजाले। सभी जिनकी करतूत होती है ढब की। जो सुनते हैं, बातें ठिकाने की सब की।1।

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आशालता

15 जून 2022
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कुछ उरों में एक उपजी है लता। अति अनूठी लहलही कोमल बड़ी। देख कर उसको हरा जी हो गया। वह बताई है गयी जीवन-जड़ी।1। एक भाषा देशभर को दे मिला। चाहती है आज यह भारत मही। मान यह हिन्दी लहेगी एक दिन। ह

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एक विनय

15 जून 2022
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बड़े ही ढँगीले बड़े ही निराले। अछूती सभी रंगतों बीच ढाले। दिलों के घरों के कुलों के उँजाले। सुनो ऐ सुजन पूत करतूत वाले। तुम्हीं सब तरह हो हमारे सहारे। तुम्हीं हो नई सूझ आँखों के तारे।1। तुम्ही

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वक्तव्य

15 जून 2022
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मति मान-सरोवर मंजुल मराल। संभावित समुदाय सभासद वृन्द। भाव कमनीय कंज परम प्रेमिक। नव नव रस लुब्धा भावुक मिलिन्द।1। कृपा कर कहें बर बदनारबिन्द। अनिन्दित छवि धाम नव कलेवर। बासंतिक लता तरु विकच कु

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भगवती भागीरथी

15 जून 2022
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कलित-कूल को धवनित बना कल-कल-धवनि द्वारा। विलस रही है विपुल-विमल यह सुरसरि-धारा। अथवा सितता-सदन सतोगुण-गरिमा सारी। ला सुरपुर से सरि-स्वरूप में गयी पसारी। या भूतल में शुचिता सहित जग-पावनता है बसी।

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पुण्यसलिला

15 जून 2022
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है पुनीत कल्लोल सकल कलिकलुष-विदारी। है करती शुचि लोल लहर सुरलोक-बिहारी। भूरि भाव मय अभय भँवर है भवभय खोती। अमल धावल जलराशि है समल मानस धाोती। बहुपूत चरित विलसित पुलिन है पामरता-पुंज यम। है विमल ब

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गौरव गान

15 जून 2022
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  वैदिकता-विधि-पूत-वेदिका बन्दनीय-बलि। वेद-विकच-अरविन्द मंत्र-मकरन्द मत-अलि। आर्य-भाव कमनीय-रत्न के अनुपम-आकर। विविध-अंध-विश्वास तिमिर के विदित-विभाकर। नाना-विरोध-वारिद-पवन कदाचार-कानन-दहन। हैं

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आँसू

15 जून 2022
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बाढ़ में जो बहे न बढ़ बोले। किसलिए तो बहुत बढ़े आँसू। जो कलेजा न काढ़ पाया तो। किसलिए आँख से कढ़े आँसू।1। अड़ अगर बार बार अड़ती है। तो रहे क्यों नहीं अडे आँसू। जो निकाले न जी कसर निकली। आँख स

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आती है

15 जून 2022
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जी न बदला न रंगतें बदलीं। चाल बदली नहीं दिखाती है। मौत को क्यों बुला रहे हैं हम। क्या बला पर बला न आती है।1। आँख खुल खुल खुली नहीं अब तक। बात खलती भी खुल न पाती है। है हमें देख भाल का दावा। क

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घर देखो भालो

15 जून 2022
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आँखें खोलो भारत के रहने वालो। घर देखो भालो सँभलो और सँभालो। यह फूट डालती फूट रहेगी कब तक। यह छेड़ छाड़ औ छूट रहेगी कब तक। यह धन की जन की लूट रहेगी कब तक। यह सूट बूट की टूट रहेगी कब तक। बल करो बल

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अपने को न भूलें

15 जून 2022
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बन भोले क्यों भोले भाले कहलावें। सब भूलें पर अपने को भूल न जावें। क्या अब न हमें है आन बान से नाता। क्या कभी नहीं है चोट कलेजा खाता। क्या लहू आँख में उतर नहीं है आता। क्या खून हमारा खौल नहीं है प

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पूर्वगौरव

16 जून 2022
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बल में विभूति में हमें कौन था पाता। था कभी हमारा यश वसुधातल गाता। फरहरा हमारा था नभ में फहराया। सिर पर सुर पुर ने था प्रसून बरसाया। था रत्न हमें देता समुद्र लहराया। था भूतल से कमनीय फूल फल पाया।

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दमदार दावे

16 जून 2022
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जो आँख हमारी ठीक ठीक खुल जावे। तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे। है पास हमारे उन फूलों का दोना। है महँक रहा जिनसे जग का हर कोना। है करतब लोहे का लोहापन खोना। हम हैं पारस हो जिसे परसते सोना। जो जो

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क्या से क्या

16 जून 2022
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क्यों आँख खोल हम लोग नहीं पाते हैं। क्या रहे और अब क्या बनते जाते हैं। थे हमीं उँजाला जग में करने वाले। थे हमीं रगों में बिजली भरने वाले। थे बड़े बीर के कान कतरने वाले। थे हमीं आन पर अपनी मरने वा

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लानतान

16 जून 2022
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 गयीं चोटें लगाई क्या कलेजा चोट खाता है। कलेजा कढ़ रहा है क्या कलेजा मुँह को आता है।1। हुए अंधेर कितने आज भी अंधेर हैं होते। अँधेरा आँख पर छाया है अंधापन न जाता है।2। रहा कुछ भी न परदा बेतरह ह

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प्रेम

16 जून 2022
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उमंगों भरा दिल किसी का न टूटे। पलट जायँ पासे मगर जुग न फूटे। कभी संग निज संगियों का न छूटे। हमारा चलन घर हमारा न लूटे। सगों से सगे कर न लेवें किनारा। फटे दिल मगर घर न फूटे हमारा।1। कभी प्रेम क

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मांगलिक पद्य

16 जून 2022
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सारी बाधाएँ हरें राधा नयानानंद। वृन्दारक बन्दित चरण श्री बृन्दावन चंद।1। चाव भरे चितवत खरे किये सरस दृग-कोर। जय दुलहिन श्री राधिका दूलह नन्द-किशोर।2। विवुध वृन्द आराधित वुध सेविता त्रिकाल। जय

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बांछा

16 जून 2022
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 बरस बरस कर रुचिर रस हरे सरसता प्यास। असरस चित को अति सरस करे सरस पद-न्यास।1। भावुक जन के भाल पर हो भावुकता खौर। अरसिक पाकर रसिकता बने रसिक सिरमौर।2। मिले मधुर स्वर्गीय स्वर हों स्वर सकल रसाल।

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जीवन

16 जून 2022
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विकच कमल कमनीय कलाधर। मंद मंद आन्दोलित मलय पवन। तरल तरंग माला संकुल जलधि। परम आनन्दमय नन्दन कानन।1। विपुल कुसुम कुल लसित बसंत। विविध तारक चय खचित गगन। कलित ललित किसलय कान्त तरु। श्यामल जलद जा

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कविकीर्ति

16 जून 2022
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रचती है कविता-सुधा सुधासिक्त अवलेह। लहता है रससिध्द कवि अजर अमर यश-देह।1। चीरजीवी हैं सुकवि जन सब रस-सिध्द समान। उक्ति सजीवन जड़ी को कर सजीवता दान।2। अमल धावल आनन्द मय सुधा सिता सुमिलाप। है क

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निराला रंग

16 जून 2022
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बनें बनायें किन्तु बिगड़ती बात बनावें। हँसें हँसावें किन्तु हँसी अपनी न करावें। बहक बहँकते रहें पर न रुचि को बहँकावें। खुल खेलें, पर खेल खोल आँखों को पावें। भर जायँ उमंगों में मगर बेढंगी न उमंग हो

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चतुर नेता

16 जून 2022
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बातें रख रख बात बात में बात बनावें। रंग बदल कर नये नये बहुरंग दिखावें। कर चतुराई परम-चतुर नेता कहलावें। मीठे मीठे वचन बोल बहुधा बहलावें। जो करें जाति हित नाम को बहु भूखे हों नाम के। वे बड़े काम क

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माधुरी

16 जून 2022
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अति-पुनीत-अलौकिकता भरी। विबुध-वृन्द अतीव-विनोदिनी। मधुरिमा गरिमा महिमा मयी। कथित है महिमामय-माधुरी।1। नयन है किस का न बिमोहती। गगन के तल की नव-नीलिमा। विमलता मय तारक-मालिका। जग-विमुग्ध करी वि

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बनलता

16 जून 2022
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कुसुम वे उस में बिकसे रहें। बिकसिता जिस से सु बिभूति हो। बस सदा जिन के बर-बास से। बन सके अनुभूति सुबासिता।1। बहु-विमोहक हो छबि-माधुरी। मिल गये अनुकूल-ललामता। सरसता उस की करती रहे। सरस मानस को

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ललितललाम

16 जून 2022
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सरस भाव मन्दार सुमन से समधिक हो हो सौरभ धाम। नन्दन बन अभिराम लोक अभिनन्दन रच मानस आराम। लगा लगा कर हृतांत्री में मानवता के मंजुल तार। सूना सूना कर वसुधा-तल को सुधा भरा उसकी झनकार।1। गा गा कर

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मयंक

16 जून 2022
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प्रकृति देवि कल मुक्तमाल मणि गगनांगण का रत्न प्रदीप। भव्य बिन्दु दिग्वधू भाल का मंजुलता अवनी अवनीप। रजनि, सुन्दरी रंजितकारी कलित कौमुदी का आधार। बिपुल लोक लोचन पुलकित कर कुमुदिनि-वल्लभ शोभा सार

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खद्योत

16 जून 2022
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प्रकृति-चित्र-पट असित-भूत था छिति पर छाया था तमतोम। भाद्र-मास की अमा-निशा थी जलदजाल पूरित था व्योम। काल-कालिमा-कवलित रवि था कलाहीन था कलित मयंक। परम तिरोहित तारक-चय था, था कज्जलित ककुभ का अंक।1

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ललना-लाभ

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खुला था प्रकृति-सृजन का द्वार। हो रही थी रचना रमणीय। बिरचती थी अति रुचिकर चित्र। तूलिका बिधि की बहु कमनीय।1। रंग लाती थी हृदय-तरंग। बह रहा था चिन्ता का सोत। मंद गति से अवगति-निधि मधय। चल रहा

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जुगनू

16 जून 2022
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पेड़ पर रात की अँधेरी में। जुगनुओं में पड़ाव हैं डाले। या दिवाली मना चुड़ैलों ने। आज हैं सैकड़ों दिये बाले।1। तो उँजाला न रात में होता। बादलों से भरे अँधेरे में। जो न होती जमात जुगनू की। तो न

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विषमता

16 जून 2022
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मंगल मय है कौन किसे कहते हैं मंगल। फलदायक है कौन सफलता है किस का फल। मंगल कितने लोग अमंगल में हैं पाते। विविधा विफलता सहित सफलता के हैं नाते। पादप सब पत्र विहीन हो पा जाते हैं नवल दल। विकसित कुसु

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घनश्याम

16 जून 2022
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श्याम रंग में तो न रँगे हो जो अन्तर रखते हो श्याम। तो जलधार हो नहीं विरह-दव में जो जल जल जीवें बाम। जीवनप्रद हो तभी करो जो तुम चातक को जीवन दान। कैसे सरस कहें हम तुमको ऊसर हुआ न जो रसवान।1| कैसे

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विकच वदन

16 जून 2022
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जो न परम कोमलता उसकी रही विमलता में ढाली। जो माई के लाल कहाने की न लसी उस पर लाली। कातर जन की कातरता हर होती है जो शान्ति महा। उसकी मंजु व्यंजना द्वारा जो वह व्यंजित नहीं रहा। लोकप्यार-आलोकों से

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मर्म-व्यथा

16 जून 2022
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कहाँ गया तू मेरा लाल। आह! काढ़ ले गया कलेजा आकर के क्यों काल। पुलकित उर में रहा बसेरा। था ललकित लोचन में देरा। खिले फूल सा मुखड़ा तेरा। प्यारे था जीवन-धान मेरा। रोम रोम में प्रेम प्रवाहित होता

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मनोव्यथा - 1

16 जून 2022
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कुम्हला गया हमारा फूल। अति सुन्दर युग नयन-बिमोहन जीवन सुख का मूल। विकसित बदन परम कोमल तन रंजित चित अनुकूल। अहह सका मन मधुप न उसकी अति अनुपम छबि भूल।1। बंद हुई ऑंखों को खोलो। अभी बोलते थे तु

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स्वागत

16 जून 2022
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क्यों आज सूरज की चमक यों है निराली हो रही। क्यों आज दिन आनन्द की धारा धरातल में बही। क्यों हैं चहक चिड़िया रहीं क्यों फूल हैं यों खिल रहे। क्यों जी हरा कर पेड़ के पत्तो हरे हैं हिल रहे।1। क्यों

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