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अपनी अपनी दुनिया

28 जुलाई 2024

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अपनी अपनी दुनिया में, मगन रहते हैं भाई।
नहीं टोहते दुख दूजे का, जतन नहीं है साई।
हर शख्स रहता अलग, जाने न  पीर   पराई।
खोया है अपनी दुनिया में, अपनी दुनिया सजाई।।

छाया है डिजिटल जमाना, मोबाइल हाथ लिए।
अपनी अपनी प्रोफाइल बने, ताला साथ लगाए।
महफूज़ अपनी दुनिया में, तस्वीर साथ सजाए।
लाइक कमेंट तारीफ पढ़े, मन ही मन मुस्काए।।

निहित स्वार्थ उलझा मानुष, अपनी दुनिया बसाए।
स्वयं दर्द  न  बांटें  मनवा,  आहत  भय  घबराए।
सचेत  अंतस  प्रबुद्ध  रहे,  अपनी दुनिया लुभाए।
अनभिज्ञ अरु अंजान बना, अभिलाषा अपनी सजाए।।

माना दुनिया सबकी अपनी, अपनी दुनिया भाए।
निमित्त मात्र वक़्त सही,  दूजा  अगर  सजाए।
कद्र वक़्त की तृण सी, विश्वास  स्वयं  जताए।
दुनियादारी भी होती कुछ, अबोध मन मुस्काए।।
✍️✍️✍️✍️✍️
स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा


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रचनाएँ
काव्य कुंज द्वितीय
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मेरी स्वरचित कविताओं का संग्रह
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बचपन

11 जनवरी 2023
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अबोध मन सा बचपन,निश्छल चंचल चितवन।पुष्प अंकुरित सा कोमल,ओस की बूंदों सा मनभावन।।घर आंगन महकाता बचपन,नादान परिंदे जैसा बचपन।गुलशन गुंजाएमान बालमन,बिन बात मुस्काए बालमन।।सूरज सा दमके बालमन,निश्छल भोला भ

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हिंदी भाषा

11 जनवरी 2023
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मैं हूं तुम्हारी हिंदी भाषा,इसको तुम पहचान लो।अस्तित्व हूं तुम्हारा मैं,मुझको तुम पहचान लो।।कर्म हूं और कृति भी मैं,अस्तित्व है यूं मुझसे जुड़ा।मर्म हूं और व्यथा भी मैं,अस्तित्व तुम्हारा मुझसे जुड़ा।।

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आज का युवा

12 जनवरी 2023
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आज का यह युवा भारत,लोकतांत्रिक मुख्य आधार।राजनीति और विकास पर,युवा अग्रसर और है तैयार।।आज का यह युवा भारत,शक्ति से यह परिपूर्ण है।देश स्वाधीनता इसकी,योगदान बेहतरी सम्पूर्ण है।।आज का यह युवा भारत,मार्ग

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कच्चे धागे

28 जुलाई 2024
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अजब गजब दुनिया का मेला। कभी रिश्ते नातों का झमेला। कभी भाई अरु बहन का बंधन, कच्चे धागे का ये खेल निराला।। रिश्ते नातों की डोर का खेला। लताएं की चढ़ती बेल का रेला। कच्चे धागे दिखते जैसे ये

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समय के खिलाफ

28 जुलाई 2024
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समय के खिलाफ कोई जाता नहीं। गीता का ज्ञान किसी को भाता नहीं। नदियों की लहरें वेग निर्बाध लिए हुए, विपरीत लहरों के इंसा भी तैरता नहीं।। समय की धारा निज अपना रुख लिए। कृष्ण ने अर्जुन क

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अपनी अपनी दुनिया

28 जुलाई 2024
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अपनी अपनी दुनिया में, मगन रहते हैं भाई। नहीं टोहते दुख दूजे का, जतन नहीं है साई। हर शख्स रहता अलग, जाने न पीर पराई। खोया है अपनी दुनिया में, अपनी दुनिया सजाई।। छाया है डिजिटल जमाना,

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मुस्कान

12 सितम्बर 2024
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मुस्कान कैसी भिन्न भिन्न होती।कभी मीठी मुस्कान छा जाती।।चेहरे का नूर गहरा असर दिखाए।देख मां अपने बच्चे पर मुस्काए।।कभी मन खिन्न खिन्न सा होता।किन्तु फीकी मुस्कान बिखेरता।।दुःखी मन संतप्त कोशिश हरता।दर

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मां की ममता

19 सितम्बर 2024
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मां की ममता अपार बरसती।कभी बच्चों में भेद न करती।चाहे रंग वर्ण में अंतर दिखे,सब स्नेह भाव एक रखती।।मां की ममता दूर छल कपट।खेल खिलौने होते छीन झपट।देख तनिक भ्रम में पड़ जाए,रोना चीखना हो मां को लपट।।मा

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