अपनी अपनी दुनिया में, मगन रहते हैं भाई।
नहीं टोहते दुख दूजे का, जतन नहीं है साई।
हर शख्स रहता अलग, जाने न पीर पराई।
खोया है अपनी दुनिया में, अपनी दुनिया सजाई।।
छाया है डिजिटल जमाना, मोबाइल हाथ लिए।
अपनी अपनी प्रोफाइल बने, ताला साथ लगाए।
महफूज़ अपनी दुनिया में, तस्वीर साथ सजाए।
लाइक कमेंट तारीफ पढ़े, मन ही मन मुस्काए।।
निहित स्वार्थ उलझा मानुष, अपनी दुनिया बसाए।
स्वयं दर्द न बांटें मनवा, आहत भय घबराए।
सचेत अंतस प्रबुद्ध रहे, अपनी दुनिया लुभाए।
अनभिज्ञ अरु अंजान बना, अभिलाषा अपनी सजाए।।
माना दुनिया सबकी अपनी, अपनी दुनिया भाए।
निमित्त मात्र वक़्त सही, दूजा अगर सजाए।
कद्र वक़्त की तृण सी, विश्वास स्वयं जताए।
दुनियादारी भी होती कुछ, अबोध मन मुस्काए।।
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स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा