महंगाई की मार सही न जाए,
गृहलक्ष्मी को चूल्हा चौका कैसे सुझाए।
सिलेंडर महंगा, महंगी है कैरोसिन,
लगी लाइन में ,धूप खून झुलसाए।।
महंगाई की मार सही न जाए,
चूल्हे की लकड़ी की सुध आए।
माचिस महंगी, है महंगी लकड़ी,
माचिस की तीली बुझ बुझ जाए।।
महंगाई की मार सही न जाए,
घर की लक्ष्मी रसोई कैसे बनाए।
चिंतन मनन मगन सुध खोई,
कैसे आटा, दाल चावल मिल जाए।।
महंगाई की मार सही न जाए,
महंगाई से राहत, कोई युक्ति न सुझाए।
टेंट में पैसे अंटी भर बांधे,
बाजार से राशन आधा थैला लाए।।
महंगाई की मार सही न जाए,
आधा थैला महीना न चल पाए।
आम आदमी तरसे रोटी को,
कैसे यह सुख साधन लुभाए।।
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स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा
रायबरेली