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मुस्कान

12 सितम्बर 2024

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मुस्कान कैसी भिन्न भिन्न होती।
कभी मीठी मुस्कान छा जाती।।
चेहरे का नूर गहरा असर दिखाए।
देख मां अपने बच्चे पर मुस्काए।।

कभी मन खिन्न खिन्न सा होता।
किन्तु फीकी मुस्कान बिखेरता।।
दुःखी मन संतप्त कोशिश हरता।
दर्द बयां न कर कसक कचोटता।।

कभी जीत खुशी मुस्कान झलकती।
जैसे चांद पर पहुंचने चाह छलकती।।
चांद की सैर आज कोई सपना नहीं।
मुस्कान जीत की वहां घर हो कहीं।।

बच्चों की जीत मीठी मुस्कान छाती।
मात पिता हृदय एक संतोष जगाती।।
आबशार नूर सी मुस्कान बिखरती।
चेहरे मुस्कान सूर्य आभा निखरती।।
✍️✍️✍️✍️✍️
स्वरचित मौलिक 
अनुपमा वर्मा 
रायबरेली

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने बहन 😊🙏 पढ़ें मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां पढ़कर सभी भागों पर अपना लाइक और रिव्यू देकर आभारी करें 😊🙏

14 सितम्बर 2024

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रचनाएँ
काव्य कुंज द्वितीय
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मेरी स्वरचित कविताओं का संग्रह
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बचपन

11 जनवरी 2023
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अबोध मन सा बचपन,निश्छल चंचल चितवन।पुष्प अंकुरित सा कोमल,ओस की बूंदों सा मनभावन।।घर आंगन महकाता बचपन,नादान परिंदे जैसा बचपन।गुलशन गुंजाएमान बालमन,बिन बात मुस्काए बालमन।।सूरज सा दमके बालमन,निश्छल भोला भ

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हिंदी भाषा

11 जनवरी 2023
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मैं हूं तुम्हारी हिंदी भाषा,इसको तुम पहचान लो।अस्तित्व हूं तुम्हारा मैं,मुझको तुम पहचान लो।।कर्म हूं और कृति भी मैं,अस्तित्व है यूं मुझसे जुड़ा।मर्म हूं और व्यथा भी मैं,अस्तित्व तुम्हारा मुझसे जुड़ा।।

3

आज का युवा

12 जनवरी 2023
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आज का यह युवा भारत,लोकतांत्रिक मुख्य आधार।राजनीति और विकास पर,युवा अग्रसर और है तैयार।।आज का यह युवा भारत,शक्ति से यह परिपूर्ण है।देश स्वाधीनता इसकी,योगदान बेहतरी सम्पूर्ण है।।आज का यह युवा भारत,मार्ग

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कच्चे धागे

28 जुलाई 2024
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अजब गजब दुनिया का मेला। कभी रिश्ते नातों का झमेला। कभी भाई अरु बहन का बंधन, कच्चे धागे का ये खेल निराला।। रिश्ते नातों की डोर का खेला। लताएं की चढ़ती बेल का रेला। कच्चे धागे दिखते जैसे ये

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समय के खिलाफ

28 जुलाई 2024
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समय के खिलाफ कोई जाता नहीं। गीता का ज्ञान किसी को भाता नहीं। नदियों की लहरें वेग निर्बाध लिए हुए, विपरीत लहरों के इंसा भी तैरता नहीं।। समय की धारा निज अपना रुख लिए। कृष्ण ने अर्जुन क

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अपनी अपनी दुनिया

28 जुलाई 2024
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अपनी अपनी दुनिया में, मगन रहते हैं भाई। नहीं टोहते दुख दूजे का, जतन नहीं है साई। हर शख्स रहता अलग, जाने न पीर पराई। खोया है अपनी दुनिया में, अपनी दुनिया सजाई।। छाया है डिजिटल जमाना,

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मुस्कान

12 सितम्बर 2024
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मुस्कान कैसी भिन्न भिन्न होती।कभी मीठी मुस्कान छा जाती।।चेहरे का नूर गहरा असर दिखाए।देख मां अपने बच्चे पर मुस्काए।।कभी मन खिन्न खिन्न सा होता।किन्तु फीकी मुस्कान बिखेरता।।दुःखी मन संतप्त कोशिश हरता।दर

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