मैं हूं तुम्हारी हिंदी भाषा,
इसको तुम पहचान लो।
अस्तित्व हूं तुम्हारा मैं,
मुझको तुम पहचान लो।।
कर्म हूं और कृति भी मैं,
अस्तित्व है यूं मुझसे जुड़ा।
मर्म हूं और व्यथा भी मैं,
अस्तित्व तुम्हारा मुझसे जुड़ा।।
शर्म हूं और झिझक भी मैं,
आज ये तुम पहचान लो।
नर्म हूं और कठोर भी मैं,
मुझको तुम पहचान लो।।
चर्म हूं और हाड़ भी मैं,
मुझसे अलग न हो पाओगे।
गर्म हूं और शीतल भी मैं,
छोड़ कहां तुम पाओगे।।
बिंदी मां भारती के माथे की,
आन बान और शान हूं मैं।
भाषा हिन्दी हूं भारत की,
संस्कृति और सभ्यता हूं मैं।।
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स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा