अबोध मन सा बचपन,
निश्छल चंचल चितवन।
पुष्प अंकुरित सा कोमल,
ओस की बूंदों सा मनभावन।।
घर आंगन महकाता बचपन,
नादान परिंदे जैसा बचपन।
गुलशन गुंजाएमान बालमन,
बिन बात मुस्काए बालमन।।
सूरज सा दमके बालमन,
निश्छल भोला भाला बचपन।
धूप छांव न देखता बालमन,
खेल खिलौने में मगन बालमन।।
चांद की चांदनी रात में रौशन,
जगमग उजियारे सा बचपन।
जगमगाती रात में खेले मन,
तारों को गिनता है बालमन।।
बिन बात भय गर खाता,
मां की गोद छूपता बालमन।
दादी नानी की आती याद,
कहानियों में खोता बचपन।।