shabd-logo

दशानन।

5 अक्टूबर 2022

17 बार देखा गया 17

वे कौन  से रावण  फूंके है,
रावण के पुतले पूंछे है,
हैं कौन जो मुझको छूते है,
हैं कोई  क्या राम सा पूंछे है।
क्या दिखता न इन्हे प्रतिबिंब अपना,
क्यूं बेशरम हुआ मानवता का सपना।।

कौन सा उत्सव है, जो मना ये रहे,
मेरे  पुतले को, ताकत  दिखला हैं रहे,
करके उससे भी ज्यादा ही गलत,
करतूते अपनी छिपा  है रहे।।

हैरत मे जलता वो "दशानन, "
है जोर जोर से हंस हैं रहा,
इक गलती पर मुझको फूंक रहे,
क्यूं ध्यान अपना इन्हे जरा न रहा।

मैने तो अबला का था हरण किया,
ये तो बच्चियों को हर है रहा,
भयभीत था उसके रोष से मै ।
यह क्यू न किसी से डर हैं रहा।

कर हत्या किसी भी भ्रूण की यह,
कोई  खौफ भी न ये कर हैं रहा।
बेधड़क कर अपराध को यह,
सिर अपना  कलम कोई  कर न रहा।

व्यापार  देह का कर है रहा,
अस्मत  से भी उनकी खेल रहा,
करके कलुषित अस्मत  फिर उनकी,
मार अंग तक उनके बेच रहा ।

करके घोर अपराध भी वो लज्जाता नही,
और मुझको अपराधी बता है रहा।
मैं तो इनसे ही कमतर हूं,
फिर  क्यूं यह मुझको  जला है रहा।

ये कौन  हैं जो मुझको फूंके हैं,
रावण के पुतले पूंछे हैं।
किस हक से  जलाए ये मुझको,
यहां राम है कौन  वो पूंछे हैं।

किया न किसी ने भी तप ही कोई,
बैठ ऊंचे सिहासन पर विराज जो रहे,
और कर विस्तार  अविद्या का,
विद्वान बन आदर पा है रहे।

किसको जो पूंछे यहा कोई,
क्या कोई  सीख  ये सिखा है रहे,
मैं तो बहुत  विद्वान  सा था,
यह कौन  सी विद्वता दिखा हैं रहे,

छल कपट तो मुझसे सीख लिया,
राम को सम्मानित न कयूं कर पा हैं रहे,
बुराई  का मै हुआ  अंत वहा,
यह अंत को क्यूं न है पा यह रहे।

ये क्यूं मुझको फिर  फूंके हैं,
रह रह पुतले यह पूंछे हैं।
यहा कोई  क्यूं न राम बना,
बनवास क्यू सबके छूटे है
बैठे धर वेष जो राम सा यह
रावण बन राम को लूटे हैं।।(2)
@#@#@
मै भी हूं रावण का  ही प्रतीक।

संदीप  शर्मा।।

13
रचनाएँ
चल आ कविता कहे ।
0.0
जयश्रीकृष्ण मित्रगण सुधिजन व पाठकगण यह पुस्तक एक काव्य प्रस्तुति है,,जो जीवन के रंग के कई दस्तावेज। आपको दिखाएगी, आप रंगरेज के रंगो का आनंद लीजिएगा। आप को समर्पित। है आपके प्यार को। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण
1

कशमकश। संदीप।

14 जून 2022
2
2
4

कशमकश मे हू मै,, दिल की सुनवाई से,,। कहता है जो वो ,,वो कर नही पाता ,, जो करता हू वो,, बेचारा सह नही पाता,, होकर अनमना सा ,, नाराज रहता है संग मेरे,, जैसे लिए हो इक लड़की ने ,,

2

दूसरा प्यार।

14 जून 2022
1
1
0

पहला प्यार मेरे मात पिता को ,दूसरा फिर गुरूजन समाज को,तीसरा जिन्हे ईश्वर है कहते,हम सब रिश्ते इनसे समझते,,फिर लगती इक लंबी लडी है बहन ,भाई,पडोस, व दोस्ती बडी है।किसी के प्यार मे नही ह

3

अशांत मन।

16 जून 2022
0
1
0

किधर भटकता इधर उधर, है क्या तुम्हे ये जरा खबर,, यह कोई सौम्य सा बालक नही है ,, यह तो है अशांत मन,,का सफर,। इसकी तो तुम कुछ न पूछो,, यह बच्चा बिगडैल जो बूझो,,, कब किस की जिद्द यह

4

सब्र।

18 जून 2022
0
1
0

सब्र की इंतिहा,, तुम्हारी,, हम सी न होगी,, देखा है तुम्हे रोज रूठते हुए। #### संदीप शर्मा। जय श्रीकृष्ण

5

छुट्टियो के दिनो का ,,मजा खूब होता था।

19 जून 2022
1
2
0

दादा,दादी,नाना नानी,मामा,मामी,काका,काकी,जाने कितने,रिश्ते जीवित होते थे,,जब छुट्टियो के दिन होते थे,।एक मेला सा सजता था,घर घर लगता था,,जब पीढियो के अंतर का नेह प्यार, व संस्कारो का स्

6

पिता।

19 जून 2022
1
1
2

ऐसे एहसास, को,, जो हो बहुत ही खास हो ,, जिसमे हो खुशी बिखेरने का दम,, अंदर ज्वालामुखी का, चाहे हो रहा हो दहन, नम्र से ह्रदय वाला,, कठोर सा दिखने वाला,, जो टूटा हो अंदर से,, बिल्कुल

7

घर की याद।

20 जून 2022
1
1
0

आती बहुत है घर की याद,, पर जाऊ कैसे ,बनती न बात,, करता हू जब इक हल ,,ऐसे ,, आ जाती बात ,,और ,, जाने किधर से ? इक घर सूना हुआ तब था,, जब मै निकला, लिए रोटी का डर था,। रोटी के लालच को

8

नदी किनारा।

21 जून 2022
0
0
0

नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी

9

बिछुडन।

31 जुलाई 2022
0
1
0

तिनका तिनका,,खुद ही जोड़कर,, घरौंदा एक सजाया जी।। हर इक बारी,चोगा चुग चुग,, कितनो को जिलाया जी।। पंख कभी मेरे थके नही थे,, हर बार हौसला पाया ही । दिल ही जाने जब " बिछड़न" देखी,,

10

वो कमतर तो कभी न थी।

4 अगस्त 2022
0
1
0

वो कमतर तो कभी न थी,, पर उसकी तारीफ कभी हुई न थी।। वैसे काम की थी वो बहुत , पर काम की उसकी कद्र हुई न थी।। किस्से कहानियों मे हर और उसकी चर्चा,, पूछे जरा कि कोई ,,घर कौन सा उसक

11

वो शाम जरूर आएगी।

14 अगस्त 2022
1
2
0

वंदे, वंदनीय , मां भारती ,, वो कैसी थी शाम ,जो लाल थी,, केसरी था रंग ,या स्याह सी,, हैरान है वतन, पूछे मेरा , कयू ऐसी ,,आई वो सांझ थी।। जश्न की ही तो ,वो रात थी,, फिर तडप सी क्यू ,थी क्यू

12

मेरी ख़ामोशी को न ही पढना।

20 अगस्त 2022
1
2
0

हो सके तो तुम ,, मेरी ख़ामोशी पढना, शोर बहुत करेगी , तो, तुम ऐसा करना। खोलना न लब अपने ,, बस उनको सिलना , पता न चले जो भीतर है , जब उससे हो मिलना।। हो सके तो तुम ,, इक बार मेरी ख़ामोशी पढन

13

दशानन।

5 अक्टूबर 2022
1
1
0

वे कौन से रावण फूंके है, रावण के पुतले पूंछे है, हैं कौन जो मुझको छूते है, हैं कोई क्या राम सा पूंछे है। क्या दिखता न इन्हे प्रतिबिंब अपना, क्यूं बेशरम हुआ मानवता का सपना।। कौन सा उत

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए