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मेरी ख़ामोशी को न ही पढना।

20 अगस्त 2022

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हो सके तो तुम ,,
मेरी ख़ामोशी पढना,
शोर बहुत  करेगी ,
तो,  तुम ऐसा करना।
खोलना न लब अपने ,,
बस उनको सिलना ,
पता न चले जो भीतर है ,
जब उससे हो मिलना।।
हो सके तो तुम ,,
इक बार मेरी ख़ामोशी पढना।।

जानता हू जबकि,
खामोश  तुम रह न पाओगे,,
पढोगे जो अंदर का,,
तो दिल से भर जाओगे ।।
खुद को  रोक न पाओगे,,
संवेदनशील  होने को,,
जान कर ऐसा खामोश  ,,
भी तो ,रह न पाओगे।।

यह भी जानता हूं बड़ा  खूब,,
देखे व सुने होगे ,,
दुख के तुमने कितने किस्से,,
पर वो सब बौने होगे ,,
पढोगे जो आए मेरे हिस्से,,

यह सब जान कर पढ कर ,,
तुम खुद  को  रोक  न पाओगे,,
करना चाहोगे खुद  पर ,,
कितना भी नियत्रंण ,,
पर  वो  नही कर पाओगे,,

देख कर मेरी ख़ामोशी के कारण को  ,,
तुम खुद  न खामोश  रह पाओगे।।
चाहोगे चिल्लाना,,
पर फिर खाकर  तरस सा ,,
खुद ही खामोश  हो जाओगे।।
सो तुम ऐसा न ही करना,,
मेरी मानो,,
मेरी खामोशी को न ही पढना।।(2)
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संदीप  शर्मा।।


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रचनाएँ
चल आ कविता कहे ।
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जयश्रीकृष्ण मित्रगण सुधिजन व पाठकगण यह पुस्तक एक काव्य प्रस्तुति है,,जो जीवन के रंग के कई दस्तावेज। आपको दिखाएगी, आप रंगरेज के रंगो का आनंद लीजिएगा। आप को समर्पित। है आपके प्यार को। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण
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