हो सके तो तुम ,,
मेरी ख़ामोशी पढना,
शोर बहुत करेगी ,
तो, तुम ऐसा करना।
खोलना न लब अपने ,,
बस उनको सिलना ,
पता न चले जो भीतर है ,
जब उससे हो मिलना।।
हो सके तो तुम ,,
इक बार मेरी ख़ामोशी पढना।।
जानता हू जबकि,
खामोश तुम रह न पाओगे,,
पढोगे जो अंदर का,,
तो दिल से भर जाओगे ।।
खुद को रोक न पाओगे,,
संवेदनशील होने को,,
जान कर ऐसा खामोश ,,
भी तो ,रह न पाओगे।।
यह भी जानता हूं बड़ा खूब,,
देखे व सुने होगे ,,
दुख के तुमने कितने किस्से,,
पर वो सब बौने होगे ,,
पढोगे जो आए मेरे हिस्से,,
यह सब जान कर पढ कर ,,
तुम खुद को रोक न पाओगे,,
करना चाहोगे खुद पर ,,
कितना भी नियत्रंण ,,
पर वो नही कर पाओगे,,
देख कर मेरी ख़ामोशी के कारण को ,,
तुम खुद न खामोश रह पाओगे।।
चाहोगे चिल्लाना,,
पर फिर खाकर तरस सा ,,
खुद ही खामोश हो जाओगे।।
सो तुम ऐसा न ही करना,,
मेरी मानो,,
मेरी खामोशी को न ही पढना।।(2)
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संदीप शर्मा।।