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पिता।

19 जून 2022

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ऐसे एहसास, को,,
जो हो बहुत ही खास हो ,,
जिसमे हो खुशी बिखेरने का दम,,
अंदर ज्वालामुखी का,
चाहे  हो रहा हो दहन,
नम्र  से ह्रदय  वाला,,
कठोर सा दिखने वाला,,
जो टूटा हो अंदर से,,
बिल्कुल  ही जार जार,,
तब भी रखे सशक्त,,बंधन का ,,आधार,,
पूछ लेते है कभी सज्जन मित्र  साथी,
तूसी साढे लई  कित्ता की,
दस्सो ता पिता जी।।

यह सब भी सुन कर ,,
और हौसले  बुनकर  ,,
जो खडा रहे दिवार सा,,
उलझा  हो बेशुमार  सा,,
उसी चट्टान  को ,,
कर रहे सम्मान  जो,,
तो कहिए  फिर ,,मै रिझा जी ,,
आप पर और पिता जी।।

आने वाली घडी,,
का लगाता अंदाजा,,
अपने ख्वाब  रख किनारे,,
दूसरो के रहता सजाता,,
करके अपनी सांसे कम,
भरता हिम्मत  सब मे दम,
मेरे बाद ,, न तंग रहे,,
परिवार  मेरा ,,हरदम बढे,,

मेरे बाद भी परेशानी न हो ,,
इसीलिए लुटाता जवानी वो,,
रहता सदा बेआराम,,
सोते  मे भी सोचे ,,यह काम,,
कैसे मिले सबको  आराम,,
परिवार  की चिंता  को ,,
ढोता चिता तक जो ,,
वही एक अदद सा शख्स,,
नाम है जिसका  पिता ,,
जिसके कभी माथे पर,,
न दिखे बल शिकन सा।

बेनजीर रखता वो प्यार
नजर किसी को आता न यार,,,
रखता ऐसा छिपा सब यार ।।
प्यार इसका झुकता नही।
बस करता रहता कुछ न कुछ,
पर सुनता कुछ भी करता नही।।

खोया खोया गुम सा,,
डांटने मे निपुण  सा,,
दिखाता बडा रौब,है,
अंदर का जो शोर है,,
उसे रहता सदा छिपाए,,
चुपचाप  भट्टी मे ,
वो खुद  को ही ,,
रहता  सुलगाए,,।

ऐसे दृढ, निश्चय वाला,,
परिवार  के लिए  हुआ मतवाला,,
करते जाए पुण्य,,पाप ,,
तब भी नही, होता उदास,,
इसकी जरा कहानी तो सुन,,।
कहते हो पिता जी ,,
क्या कर रहे तुम।।

ब्याह से लेकर ,,आखिर तक,,
सुनता,,सबकी ,,पर न फारिग  कब,,
आती जाती फर्माइशो का,,
चुभने वाली  शिकायतो का,,
सब की सब वो झेलता,,
बना लेता एक खेल सा,,

आऊट वो हुआ नही,,
सपोर्ट  उसे कभी मिला नही,,
भावनात्मक  होकर भी ,,
रखता उन्हे भींचता ,,
कैसा है न शख्स यह ,,
जिसे कह रहे सख्त है यह पिता ।

जिम्मेवारियो  मे भी  खुश  सा ,,
रहता बना बुत सा,
रखकर चेहरे पर झूठी हॅसी,
छिपाए  रखता ,चिंता  अपनी,,
बस रखता मकसद  एक,,
परिवार  मेरा बने नेक,,
सबकुछ  मै उसके लिए  कर जाऊ,,
खुश  रहे हर जन यहा,,
भले ही मै मर  क्यू न जाऊ,,।

ऐसी भावनाओ  का लिए, साथ ,,
रखता जो आत्मविश्वास,,
उस शख्सियत  का नाम है पिता,,जी,,
औलाद कभी कभी ,,तब भी है कहती,,
तूसी साढे लई  कि कित्ता  ,पिता जी।(2)

जोडकर  सबकुछ,,
छोड़कर  सबकुछ, 
जो हो जाता है खुश ,,
वो शख्स है पिता,,
जी वो शख्स है पिता।।[२]
##@##@##
मौलिक रचनाकार,,
संदीप  शर्मा,।


Papiya

Papiya

शानदार👌

20 जून 2022

Sundeiip Sharma

Sundeiip Sharma

31 जुलाई 2022

धन्यवाद आदरणीय जयश्रीकृष्ण

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रचनाएँ
चल आ कविता कहे ।
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जयश्रीकृष्ण मित्रगण सुधिजन व पाठकगण यह पुस्तक एक काव्य प्रस्तुति है,,जो जीवन के रंग के कई दस्तावेज। आपको दिखाएगी, आप रंगरेज के रंगो का आनंद लीजिएगा। आप को समर्पित। है आपके प्यार को। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण
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कशमकश। संदीप।

14 जून 2022
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कशमकश मे हू मै,, दिल की सुनवाई से,,। कहता है जो वो ,,वो कर नही पाता ,, जो करता हू वो,, बेचारा सह नही पाता,, होकर अनमना सा ,, नाराज रहता है संग मेरे,, जैसे लिए हो इक लड़की ने ,,

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14 जून 2022
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अशांत मन।

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किधर भटकता इधर उधर, है क्या तुम्हे ये जरा खबर,, यह कोई सौम्य सा बालक नही है ,, यह तो है अशांत मन,,का सफर,। इसकी तो तुम कुछ न पूछो,, यह बच्चा बिगडैल जो बूझो,,, कब किस की जिद्द यह

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सब्र।

18 जून 2022
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सब्र की इंतिहा,, तुम्हारी,, हम सी न होगी,, देखा है तुम्हे रोज रूठते हुए। #### संदीप शर्मा। जय श्रीकृष्ण

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छुट्टियो के दिनो का ,,मजा खूब होता था।

19 जून 2022
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दादा,दादी,नाना नानी,मामा,मामी,काका,काकी,जाने कितने,रिश्ते जीवित होते थे,,जब छुट्टियो के दिन होते थे,।एक मेला सा सजता था,घर घर लगता था,,जब पीढियो के अंतर का नेह प्यार, व संस्कारो का स्

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आती बहुत है घर की याद,, पर जाऊ कैसे ,बनती न बात,, करता हू जब इक हल ,,ऐसे ,, आ जाती बात ,,और ,, जाने किधर से ? इक घर सूना हुआ तब था,, जब मै निकला, लिए रोटी का डर था,। रोटी के लालच को

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नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी

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वंदे, वंदनीय , मां भारती ,, वो कैसी थी शाम ,जो लाल थी,, केसरी था रंग ,या स्याह सी,, हैरान है वतन, पूछे मेरा , कयू ऐसी ,,आई वो सांझ थी।। जश्न की ही तो ,वो रात थी,, फिर तडप सी क्यू ,थी क्यू

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5 अक्टूबर 2022
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